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कविता : धर्म और आम आदमी

कविता : धर्म और आम आदमी

काश इस मुल्क में,  मैं मुसलमान पैदा ना होता
तो अखलाक, जुनेद, तबरेज, आसिफ मैं बना ना होता
ना मेरा राज्य गुजरात होता, ना मेरा शहर मुजफ्फरनगर होता, ना मेरा मोहल्ला सीलमपुर होता

काश इस मुल्क में मैं मुसलमान पैदा ना होता

ना मैं शहाबुद्दीन बनता, ना मैं आजम खान बनता
ना मैं मुख्तार बनता, शायद मैं कलाम बनने की कोशिश भी ना करता
काश इस मुल्क में, मैं मुसलमान पैदा ना होता

ना मेरे लिए डिटेंशन सेंटर बनाए जाते
ना मुझे देश से भगाने की तैयारी की जा रही होती
ना मेरे धर्म पर उंगली उठाई जाती
ना मेरी मां-बहनों की अस्मत लूटी जाती
ना मेरा भाई आतंकवाद के आरोप में 10 साल बाद जेल से बाइज्जत बरी होता
ना मेरे अब्बू कोर्ट के चक्कर काटते काटते इस दुनिया को अलविदा कहते
काश इस मुल्क में, मैं मुसलमान पैदा ना होता

ना मेरे धार्मिक स्थलों को तोड़ा जा रहा होता
ना मुझे यह धमकियां दी जा रही होती की बाबरी, तो झांकी है काशी मथुरा बाकी है
ना मुझसे जबरदस्ती जय श्री राम कहलवाया जा रहा होता
ना मुझे नीच दिखाने के लिए भगवान राम की गरिमा को ठेस पहुंचाई जा रही होती
काश इस मुल्क में, मैं मुसलमान पैदा ना होता।

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