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रमाबाई आंबेडकर, जिनकी बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका रही

रमाबाई आंबेडकर, जिनकी बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका रही

रमाबाई आंबेडकर वह महिला थीं, जिन्होंने डॉ.आंबेडकर के जीवन में प्रेरणा का काम किया। रमाबाई के जिक्र के बिना उनकी सफलता की कहानी अधूरी है। माता रमाबाई आंबेडकर भारत रत्न डॉ.भीमराव अंबेडकर की पहली पत्नी थीं। दोनों का विवाह छोटी उम्र में ही कर दिया गया था।

विवाह के दौरान रमाबाई की उम्र 9 वर्ष थी और डॉक्टर आंबेडकर की उम्र 14 वर्ष थी, वह पांचवी कक्षा में पढ़ रहे थे। रमाबाई के मायके में उन्हें सब रामीबाई के नाम से बुलाते थे। शादी के बाद उनका नाम रमाबाई पड़ा। डॉ. अंबेडकर रमाबाई को प्रेम से रामू कहकर पुकारते थे और रमाबाई उन्हें साहेब कहकर पुकारती थीं। रमाबाई और डॉ.अंबेडकर के 5 बच्चे थे।

उस समय परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत खराब थी

शादी के बाद रमाबाई ने समझ लिया था कि पिछड़े वर्गों का उत्थान ही बाबासाहेब आंबेडकर के जीवन का लक्ष्य है। यह तभी संभव था, जब डॉ आंबेडकर इतने शिक्षित हों कि पूरे देश में शिक्षा की मशाल जला सकें। डॉक्टर आंबेडकर जब पढ़ाई पूरी करने के लिए लंदन चले गए तब रमाबाई अकेले घर और बच्चों को संभालती थीं।

 वह घर- घर जाकर उपले बेचती थी, तो बहुत बार दूसरों के घरों में काम भी किया करती थीं। कभी-कभी पैसों की तंगी के चलते उन्हें भरपेट खाना भी नसीब नहीं होता था। वो हर छोटे-बड़े काम कर अपनी जीविका चलाती थीं और इसके साथ ही डॉक्टर आंबेडकरकी शिक्षा पूरी करने में भी उन्हे अपना पूरा समर्थन देती थीं।

वर्ष 1934 में डॉ. आंबेडकर मुंबई में अपने आवास राजगृह में परिजनों के साथ। बाएं से यशवंत (पुत्र), डॉ. आंबेडकर, रमाबाई (पत्नी), लक्ष्मीबाई (बड़े भाई आनंद की पत्नी) व भतीजा मुकुंदराव आंबेडकर(सबसे दाएं)। तस्वीर में डॉ. आंबेडकर का प्यारा कुत्ता टॉबी
इस मुश्किल घड़ी में बाबासाहेब के 5 बच्चों में से सिर्फ यशवंत ही जीवित रह पाए, पर फिर भी रमाबाई ने हिम्मत नहीं हारी, बल्कि वे खुद बाबासाहेब का मनोबल बढ़ाती रहीं।

रमाबाई यह बात बहुत अच्छे से समझती थीं कि बाबासाहेब को अपनी पढ़ाई पूरी करना अत्यंत महत्वपूर्ण है ताकि वह भारत लौट कर पिछड़े वर्गों को शिक्षित कर उन्हें सामाजिक भेदभाव से मुक्त करवा सकें।

अपनी पत्नी रमाबाई के निधन एवं आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण फूट-फूटकर रोए बाबा साहेब

आंबेडकर के भारत आने के बाद उनके पास अपनी गृहस्थी के लिए समय नहीं रहता था। जब-जब समय मिलता था, वह परिवार के साथ अपना समय बिताया करते थे। धीरे-धीरे उनके घर की आर्थिक हालत में थोड़ा सुधार हुआ, लेकिन रमाबाई का स्वास्थ्य बिगड़ता जा रहा था।

रमाबाई को हवा बदलने के लिए वह धाखाड़ ले गए, लेकिन उनके स्वास्थ्य में कोई सुधार नहीं हो पा रहा था। पत्नी के स्वास्थ्य में सुधार करने के लिए उन्होंने हर मुमकिन प्रयास किया, लेकिन इलाज का कोई असर नहीं हुआ और धीरे-धीरे उनका शरीर कमज़ोर पड़ता गया।

रमाबाई को वैवाहिक जीवन के शुरुआती वर्षों में भूखे पेट रहना और चार बच्चों की मौत ने उन्हें भीतर से तोड़ दिया था, अंत में उनकी रामू उन्हें 27 मई 1935 को सदा के लिए छोड़ कर चली गईं। रमाबाई की मृत्यु के 1 दिन पहले ही बाबासाहेब भारत लौटे थे।

रमाबाई आंबेडकर व डॉ. भीमराव आंबेडकर की पेंटिंग

वे उनकी मृत्यु के समय उनकी शैय्या के पास बैठे रहे। भारी दिल से गंभीर मुद्रा के विचार और दुख से व्याकुल मन से शव यात्रा के साथ धीमे-धीमे चलते रहे। शमशान यात्रा से लौट कर वह दुख से व्याकुल होकर एक छोटे बच्चे की तरह फूट-फूटकर रोए।

रमा बाई के व्यक्तित्व पर बनी फिल्में और नाटक

रमाबाई के व्यक्तित्व और कृतित्व को लेकर कई फिल्में बनाई गईं हैं और नाटक भी लिखे गए हैं। मराठी में लिखी कुछ किताबें भी उनके व्यक्तित्व पर रोशनी डालती हैं।

2011 में प्रकाश जाधव के निर्देशन में बनी मराठी फिल्म ‘रमाबाई भीमराव अंबेडकर’। जो पूरी तरह से रमाबाई के व्यक्तित्व पर केंद्रित है।

2016 में रंगनाथन के निर्देशन में बनी ‘रमई’ फिल्म। इस फिल्म का केंद्रीय चित्रण भी रमाबाई हैं।

शशिकांत नालवाड़े के निर्देशन में 1993 में बनी मराठी फिल्म ‘युगपुरुष डॉ.अंबेडकर’ में भी रमाबाई की अहम भूमिका को दिखाया गया है।

जब्बार पटेल ने वर्ष 2000 में अंग्रेजी में डॉक्टर बाबासाहेब आंबेडकर नामक फिल्म बनाई। जिसमें रमाबाई के व्यक्तित्व को प्रभावशाली तरीके से प्रस्तुत किया गया है।

1990 में मराठी फिल्म भीम गर्जना का  निर्माण हुआ। इसमें अंबेडकर के जीवन में रमाबाई की भूमिका को प्रस्तुत किया गया।

1992 में अशोक गवाली के निर्देशन में मराठी में चर्चित नाटक ‘रमाई’ सामने आया।

बाबासाहेब आंबेडकर के जीवन में रमाबाई का असामान्य योगदान रहा है। अक्सर कहा जाता है कि एक सफल और कामयाब पुरुष के पीछे एक स्त्री का हाथ होता है और मतॎा रमाबाई ने इस कहावत को सच कर दिखाया था।

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