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गंगा में बहती लाशों के लिए ज़िम्मेदार कौन?

गंगा में बहती लाशें, सरकार की नरसंहार को मूक सहमति है

इन दिनों दिल रो रहा है और चेहरे पर गुस्सा है। मरे हुए इंसानों की लाशों की बोटी उधेड़ते हुए कुत्ते। एक, दो, तीन, चार, पांच। गिनते जाइए क्यों विचलिच हो गए? घबरा गए? बीते मंगलवार को बिहार के बक्सर और उत्तर प्रदेश के गाजीपुर में कुल मिलाकर सौ से ज़्यादा लाशें गंगा किनारे बहती हुई दिखाईं दी। बक्सर से 71 लाशों को निकाला जा चुका है। वहीं गाजीपुर ज़िले से कम-से-कम 45 लाशें मिली हैं। शुरूआती जांच में ये सारी लाशें कोविड से ग्रस्त बताई जा रही हैं। बक्सर ज़िला उत्तरप्रदेश और बिहार राज्य का सीमावर्ती ज़िला है। गंगा किनारे बसे इस ज़िले के उत्तर में यूपी का बलिया ज़िला और पश्चिम में गाजीपुर ज़िला है।

अधजली, फूली हुई लाशों को देखकर आज माँ गंगा भी शर्मसार होगी। बिहार के चौसा श्मशान घाट में कुत्ते लाशों को नोंच-नोंच कर खा रहे हैं। अरे, उस सरकार को चुल्लू भर पानी में डूब मरना चाहिए, जो जीते जी मरीज़ों का इलाज नहीं करवा पाई, लेकिन मरने के बाद भी उनको सम्मान से अंतिम संस्कार भी नहीं दे पाई। चौसा के प्रखंड विकास अधिकारी अशोक कुमार ने माना कि लाशें गंगा में मिली हैं, लेकिन सरकारी बाबू ने ब्लेम गेम खेलने में देर नहीं लगाई। उन्होंने कहा कि लाशें उत्तर प्रदेश से बहकर आई हैं। बक्सर के विधायक संजय कुमार तिवारी कहते हैं, पहली बात तो ये लाशें यूपी से आई हैं। अब लाशें यूपी से बिहार ना आ सकें, इसके लिए हमने दो जगह नदी में जाल बिछवा दिया है।

मतलब लाशों ने सोचा काहे योगी जी को बदनाम करें, इसके लिए नीतीश कुमार जी के राज्य चलो। बेशर्मी का इससे बड़ा तर्क आपको शायद ढूंढने से भी ना मिले।

इस मानवता की मृत्यु के लिए कौन ज़िम्मेदार है?

यूपी में भी हालात बदतर हैं। गाजीपुर के गहमार और बारा गाँव में गंगा किनारे 45 से ज़्यादा लाशें मिली हैं। ज़िला अधिकारी अदिति सिंह ने बताया कि मामले को गंभीरता से लिया गया है और एसडीएम मामले की जांच करेंगे। ज़िले के एसपी (पुलिस अधीक्षक) ने बाकायदा हवा की दिशा से बता दिया कि लाशें बिहार से आई है। बिहार में वैसे भी जल समाधि की परंपरा है। खैर, प्रशासन की नींद खुल गई है और बराय मेहरबानी कि अब लाशें दफनाई जा रही हैं। दफनाने से संक्रमण का खतरा भी है, लेकिन यह सिस्टम है। कानून के नियमों को जूते की नोंक पर रखता है।

अभी गंगा जी के पानी में धार नहीं है, पुरवैया हवा चल रही है। यह पछिया का, तो समय नहीं है। ऐसे में लाश बहकर कैसे आ सकती हैं?  दरअसल, बक्सर के घाट का पौराणिक महत्व है। कोरोना की वजह से वहां जगह नहीं मिल रही है। इसीलिए लोग आठ किलोमीटर दूर चौसा के घाट पर आ रहे हैं। ये कहना है स्थानीय पत्रकार सत्यप्रकाश का

सिस्टम तो सिस्टम लोगों ने भी कम हैवानियत नहीं दिखाई है। कोई कैसे अपनी माँ, बहन, बेटी, बेटा ,पति ,पत्नी को यूं ही फेंक सकता है। सोचकर ही सिरहन का एहसास होता है, लेकिन फिर दिमाग में ख्याल आता है कि कोई तो मज़बूरी उनकी भी रही होगी। घाट पर रहने वाले पंडित दीन दयाल पांडे बताते हैं कि अमूमन घाट पर दो या तीन लाशें आती थी। बीते 15 दिनों से यहां रोज़ तकरीबन 20 लाशें आती हैं। प्रशासन ने चौकीदार लगाया है, लेकिन लोग नहीं मानते।

शवों को गंगा मैया को सौंपने की मज़बूरी स्थानीय निवासी चंद्रमोहन ने बीबीसी को बताई। क्या बताएं? प्राइवेट अस्पताल में लूट मची है। आदमी के पास इतना पैसा नहीं बचा की श्मशान घाट जाकर पैसा लुटाए। एंबुलेंस वाला शवों को उतारने के लिए दो हज़ार रुपये ले रहा है। ऐसे में गंगा जी ही आसरा हैं।

अब बड़ा सवाल यह है कि क्या नदी से इस पर असर पड़ेगा?

नदी विशेषज्ञ दिनेश मिश्र बताते हैं कि “अगर ये कोविड संक्रमित लोगों की लाशें है, तो नदी के पानी पर तो बेशक असर पड़ेगा। पानी मर्ज़ वगैरह अपने साथ ही लेकर चलेगा। लाशों की संख्या जितनी दिख रही है, उस हिसाब से तो इस पानी का ट्रीटमेंट भी असंभव सी बात है। सवाल यह भी है कि क्या प्रशासन ने इन जगहों का पानी लेकर कोई जांच की है ? ”

वहीं स्वास्थ्य विशेषज्ञ और आईएमए बिहार के सीनियर वाइस प्रेसिडेंट डॉक्टर अजय कुमार कहते हैं, “अभी नदी के पानी को किसी भी काम के लिए इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। ना तो अपने लिए और ना ही जानवरों के लिए। अगर लोग इस पानी का इस्तेमाल करेंगें, तो लोगों को बैक्टीरिया से होने वाली बीमारियों के अलावा कोविड तक हो सकता है। ये जानलेवा साबित हो सकता है।”

भूपेन हज़ारिका जी की एक कविता याद आ गई-

                                        विस्तार है अपार, प्रजा दोनों पार

                                        करे हाहाकार नि:शब्द सदा

                                        ओ गंगा तुम बहती हो  क्यों

 

ये तो बस कुछ शव हैं। गंगा नदी का प्रवाह 2025 किलोमीटर में फैला है। कितनी लाशें माँ गंगा अपने साथ ले गई पता भी नहीं। अरे नहीं चाहिए, ऐसा विकास और सुशासन जिसमें मरकर भी चैन नहीं। सरकारें चिकना घड़ा होती हैं। इतना सब हो जाने के बावजूद, इंसानियत के लिए ही सही, कुछ तो करो सरकार! कुछ तो करो!

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