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महान क्रांतिवीर और शूरवीर श्री गुरु गोबिंद सिंह जी का पूरा जीवन है प्रेरणादायी

महान क्रांतिवीर और शूरवीर श्री गुरु गोबिंद सिंह जी का पूरा जीवन है प्रेरणादायी

आततायी मुगलों के इस्लाम को ना अपनाने और धर्म रक्षा में अपना सर्वस्व बलिदान देने वाले महान शूरवीर का नाम गुरु गोबिंद सिंह है।

जानिए ऐतिहासिक चमकौर का युद्ध 

जब कोई भी व्यक्ति गुरु गोबिंद सिंह जी का नाम सुनता है, तो उसके मन में सिर्फ उनकी एक ही व्याख्या आती है संत और शूरवीर सिपाही। शौर्य और साहस के प्रतीक गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म 22 दिसंबर 1666 को सिख गुरु तेगबहादुर जी के यहां बिहार के पटना में हुआ था। उनके बचपन का नाम गोविंद राय था। उनके जन्म के समय औरंगज़ेब के अत्याचार चरम सीमा पर थे। दिल्ली का शासक हिन्दू धर्म तथा संस्कृति को समाप्त कर देना चाहता था।

औरंगज़ेब ने हिन्दुओं पर जजिया कर लगाया गया और इसके साथ ही हिन्दुओं को शस्त्र धारण करने पर भी प्रतिबन्ध लगा दिया था। ऐसे समय में कश्मीर प्रांत से पांच सौ ब्राह्मणों का एक जत्था गुरु तेगबहादुरजी के पास पहुंचा। पंडित कृपाराम इस दल के मुखिया थे। कश्मीर में हिन्दुओं पर जो अत्याचार हो रहे थे, उनसे मुक्ति पाने के लिए वे गुरुजी की सहानुभूति व मार्गदर्शन प्राप्ति के उद्देश्य से उनके पास आए थे। गुरु तेगबहादुर उन दुःखी जनों की समस्या सुनकर बहुत चिंतित हुए। बालक गोविन्द ने सहज एवं साहस भाव से सभी लोगों से इस्लाम धर्म स्वीकार ना करने की बात कही।

 बालक गोबिंद के इन निर्भीक व स्पष्ट वचनों को सुनकर गुरु तेगबहादुर का हृदय गदगद हो गया। उन्हें इस समस्या का समाधान मिल गया। उन्होंने कश्मीरी पंडितों से कहा- आप औरंगज़ेब को संदेश भिजवा दें कि यदि गुरु तेगबहादुर इस्लाम स्वीकार लेंगे, तो हम सभी इस्लाम स्वीकार कर लेंगे और फिर दिल्ली में गुरुजी का अमर बलिदान हुआ। जो हिन्दू धर्म की रक्षा के महान अध्याय के रूप में भारतीय इतिहास में अंकित हो गया। गुरु तेग बहादुर सिंह जी ने इस्लाम में परिवर्तित होने से इनकार कर दिया और उन्होंने मुगल शासकों के विरुद्ध भी काफी युद्ध लड़े। अंततः मुगलों ने इस्लाम की दासता स्वीकार ना करने पर उनका सिर काट दिया।

9 वर्ष के गुरु गोबिंद सिंह को औपचारिक रूप से सिखों के गुरु के रूप में स्थापित किया गया। वे दसवें सिख गुरु थे। एक आध्यात्मिक गुरु होने के साथ-साथ वे एक निर्भयी योद्धा, कवि और दार्शनिक भी थे।

गुरु गोविन्द सिंहजी ने युद्ध लड़ने के लिए कुछ अनिवार्य ककार धारण करने की घोषणा भी की थी। सिख धर्म के यह पांच प्रमुख ककार हैं- केश, कडा, कंघा, कच्छा और कटार। ये शौर्य, शुचिता तथा अन्याय के विरुद्ध संघर्ष के संकल्प के प्रतीक हैं।

22 दिसंबर, सन्‌ 1704 को सिरसा नदी के किनारे चमकौर नामक जगह पर सिक्खों और मुगलों के बीच एक ऐतिहासिक युद्ध लड़ा गया जो इतिहास में चमकौर का युद्ध नाम से प्रसिद्ध है। इस युद्ध में सिक्खों के दसवें गुरु गोबिंद सिंह जी के नेतृत्व में 40 सिक्खों का सामना वजीर खान के नेतृत्व वाले 10 लाख मुगल सैनिकों से हुआ था। वजीर खान किसी भी सूरत में गुरु गोबिंद सिंह जी को ज़िंदा या मुर्दा पकड़ना चाहता था, क्योंकि औरंगज़ेब की लाख कोशिशों के बावजूद गुरु गोविंद सिंह मुगलों की अधीनता स्वीकार नहीं कर रहे थे।

 लेकिन, गुरु गोबिंद सिंह के दो बेटों सहित 40 सिक्खों ने गुरुजी के आशीर्वाद और अपनी वीरता से वजीर खान को अपने मंसूबो में कामयाब नहीं होने दिया और 10 लाख मुगल सैनिक भी गुरु गोबिंद सिंह जी को नहीं पकड़ पाए। यह युद्ध इतिहास में सिक्खों की वीरता और उनकी अपने धर्म के प्रति आस्था के लिए जाना जाता है। इस घनघोर युद्ध की अगली सुबह प्रकाश होने पर शत्रु सेना को भारी निराशा हुई, क्योंकि हज़ारों असंख्य शवों में केवल पैंतीस शव सिक्खों के थे। उसमें भी उनको गुरु गोबिन्द सिंह जी कहीं दिखाई ही नहीं दिए। क्रोधातुर होकर शत्रु सेना ने गढ़ी पर पुनः आक्रमण कर दिया। असंख्य शत्रु सैनिकों के साथ जूझते हुए गढ़ी के अन्दर के पांच सिक्ख भी वीरगति को प्राप्त हुए।

इस युद्ध में भाई जीवन सिंह जी भी शहीद हो गए, जिन्होंने शत्रु को झांसा देने के लिए गुरुदेव जी की वेशभूषा धारण की हुई थी। शव को देखकर मुग़ल सेनापति बहुत प्रसन्न हुए कि अन्त में गुरु गोबिंद सिंह को मार ही लिया गया। परन्तु, जल्दी ही उनको मालूम हो गया कि यह शव किसी अन्य व्यक्ति का है और गुरु तो सुरक्षित निकल गए हैं।

मुगल सत्ताधारियों को यह एक करारी चपत थी कि कश्मीर, लाहौर, दिल्ली और सरहिन्द की समस्त मुगल शक्ति सात महीने आनन्दपुर का घेरा डालने के बावजूद भी ना, तो गुरू गोबिन्द सिंह जी को पकड़ सकी और ना ही सिक्खों से अपनी अधीनता स्वीकार करवा सकी। इस युद्ध में सरकारी खजाने के लाखों रुपये व्यर्थ व्यय हो गए ।
गुरु गोविंद सिंह के इस युद्ध का वर्णन “जफरनामा” में करते हुए लिखा है-

 चिड़ियों से मैं बाज लड़ाऊं गीदड़ों को मैं शेर बनाऊं 
सवा लाख से एक लड़ाऊं तभी गोबिंद सिंह नाम कहांउ

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