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कोरोना की भयावहता, मानवता और मानवीय रिश्तों में पड़ती दरारें

कोरोना की भयावहता, मानवता और मानवीय रिश्तों में पड़ती दरारें

वक्त ने फसाया है, लेकिन परेशान ना हो

यह अजीब बीमारी का इलाज

सिर्फ दूरी है, तन्हाई है और जुदाई है। 

हमारे जीवन में बहुत सारी चीज़े ऐसी हैं, जिन्हें हम अच्छी तरह से समझते हैं। जीवन में मुश्किलें तब होती हैं, जब हमारे लिए चीज़ें अनजान होती हैं। ऐसी मुश्किल घड़ी में हमें करना क्या है? यह जानना बहुत ज़रूरी होता है। पिछले एक वर्ष से हम बहुत कुछ देश-दुनिया एवं अपने आसपास देख रहे हैं। दरअसल, कोरोना संक्रमण महामारी की ऐसी कई घटनाएं हैं, जो हमें शर्मसार कर रही हैं।

महामारी के समय अपने देश, घर-परिवार, समाज, पड़ोसी, दोस्त व सारे अपनों की अब पहचान हो रही है। जिनसे रिश्तों में अनायास दूरी भी बढ़ रही है। कोरोना संक्रमण का डर ऐसा है कि हम सही से यह भी नहीं जानते हैं कि हमें करना क्या है? अगर कोई सेवाभाव करना भी चाहे, तो इसका डर ऐसा है कि एक पल के लिए मन की स्थिति  पर घर के अपनों की परिस्थिति का प्रभाव पड़ता है। अगर मैं अपनी बात कहूं, तो बीते कई दिनों से मैं रातों को सो नहीं पाता बस जागता रहता हूं।

मुझे बहुत घबराहट भी होती है और सोचता रहता हूं कि मेरे माता-पिता का या मेरी बीवी-बेटे का मेरे अपनों का और मेरा भविष्य क्या होगा? यह बड़े दुर्भाग्य की बात है कि जिस कोरोना वायरस की शुरुआत दिसंबर 2019 के मध्य में शुरु हुई थी और कुछ हफ्तों में ही यह हमारी पूरी दुनिया में फैल गया। वर्ष 2021 में इसकी दूसरी लहर की भयावहता से बच्चों की पढ़ाई, नौकरी, व्यवसाय, पर्व-त्यौहार का उल्लास सारा जन-जीवन ठहर सा गया है। अभी  इस वायरस की दूसरी लहर का अभी अंत भी नहीं हुआ है और तीसरी लहर के आने की संभावना तेज़ है कि उससे सबसे अधिक बच्चे प्रभावित होंगे।

महामारी का यह एक भयावह पहलू है कि अक्सर बीमारी अकेली नहीं होती है। बीमारी के साथ मृत्यु और मृत्यु के साथ भय होता है। आज हमारे आसपास एक ऐसा ही माहौल बनता जा रहा है। भय और डर, जो बहुत ज़्यादा  हमारे ऊपर हावी होता जा रहा है। कोरोना की परिस्थिति में सारे रिश्ते-नाते और कसमें, वादे, प्यार,वफा, सब बातें हैं।

वैसे, बातों का क्या? कोई किसी का नहीं यह सब झूठे नाते हैं और नातों का क्या? किसी भी संकट के समय गर हमारे पुराने रिश्ते तड़कते हैं, तो हमारे नए रिश्ते बनते भी हैं। शायद, इसलिए कभी-कभी लगता है कि सब उस रब पर छोड़ दें और यह सोचकर जिएं कि एक दिन हमारी ज़िन्दगी बेहतर होगी, लेकिन उसके लिए हमें शांत, स्थिर और निडर रहना ज़्यादा ज़रूरी है

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