Site icon Youth Ki Awaaz

“महिलाओं में माहवारी तो प्राकृतिक है, फिर ये शुद्ध-अशुद्ध का मामला क्यों आ जाता है?”

हम लड़कियों से जुडे पीरियड्स के वो पांच दिन

मुझे आज सुबह पूजा नहीं करनी है। अब तो पूजा करने के लिए कम से कम 5 दिन का इंतजार करना पड़ेगा, अब इन 5 दिनों तक, तो मुझे घड़े का पानी भी नहीं छूना है। माँ तो पूरे 5 दिन तक मेरे हाथ का खाना भी नहीं खाएगी, अपने बिस्तर भी सबसे अलग करने पड़ेंगे। वैसे, तो हमारे समाज में इन सब बातों पर कोई चर्चा नहीं होती है।

यह बातें सबसे बहुत छुपा कर ही रखी जाती हैं, पर आचरण इस तरह किया जाता है कि दुनिया को खबर हो जाती है कि सामने वाला अशुद्ध है। सबसे बड़ी बात यह है कि हम लड़कियों / महिलाओं के जीवन में यह अशुद्ध, शब्द बार-बार आता क्यों है? यह तो प्रकृति का नियम है, जो निरंतर चलता आ रहा है और चलता ही रहेगा, अगर प्रकृति के यह नियम ना होते, तो हमारी इस सृष्टि का निर्माण कैसे होता?

इस धरती पर मानव सभ्यता जन्म कैसे लेती? वो कहते हैं ना औरत ही औरत की दुश्मन होती है। इसका तो पक्का यकीन है मुझे, क्योंकि एक औरत, जो ऐसी हालत में दूसरी औरत को अशुद्ध कैसे कह सकती है? और फिर उसे इस तरह से प्रताड़ित करना कि वह अगले 5 दिनों तक वह किसी भी धार्मिक कार्यों में नहीं जा सकती और ना ही घर में रखे खाद्य पदार्थों को छू सकती है। यह  प्रताड़ना नहीं, तो और क्या है? जो हमारे तथाकथित सभ्य समाज में सभ्यता और संस्कृति के नाम पर एक नारी के द्वारा दूसरी नारी पर किए जा रहे हैं।

हमारे समाज में महिलाओं पर अत्याचार करने में पुरुष, तो बाद में आते हैं, लेकिन सबसे पहले तो एक महिला ही दूसरी महिला के खिलाफ उंगली उठाने के लिए खड़ी होती है। हमारे समाज में इतने सामाजिक सुधार हुए, पर इस मामले में कोई सुधार क्यों नहीं दिखाई दिया? खैर, यह मामला यहीं खत्म नहीं हो जाता है। भारत के बाद बाहर कई देशों में महिलाओं को कार्यस्थलों पर इन 5 दिनों(पीरियड्स) में कम से कम 3 दिन की छुट्टी दी जाने लगी है।

क्योंकि, इन दिनों(पीरियड्स) महिलाएं मानसिक और शारीरिक रूप से अस्वस्थ फील करती हैं। परंतु, भारत में अभी इस दिशा में कोई नियम नहीं बनाए गए हैं क्यों? क्योंकि इस तरह की कोई परेशानी किसी पुरुष को नहीं होती है और अगर यह परेशानी (पीरियड्स) पुरुषों को होती, तो अवकाश मिलने लग जाते। 

 हमारा पुरुष प्रधान(पितृसत्तात्मक) समाज नारी के सम्मान के लिए महिला दिवस मना कर गुलदस्ते देकर सम्मानित तो करता है। परंतु, इस मामले में महिलाओं के लिए पुरुष प्रधान समाज के द्वारा सम्मान जैसी कोई चीज़  सामने नहीं आ रही है। कब तक यूं ही चलता रहेगा? और महिलाएं तो इन दिनों में(पीरियड्स) में सीधे-सीधे  नापाक मान ली जाती हैं। अरे !उनका कसूर क्या है? कोई बताए तो सही, औरतों को उपयोग करने वाली वस्तु की श्रेणी में रखा जाता है क्यों? क्योंकि वह इस प्राकृतिक खास संरचना के लिए ज़िम्मेदार हैं! क्योंकि उसने इस सृष्टि को जन्मा इसलिए इस मुद्दे पर पैडमैन जैसी सामाजिक फिल्म भी हमारे देश में महिलाओं की स्थिति में कोई खास बदलाव नहीं ला सकी, क्यों?

क्योंकि, हमारे समाज में पुरुषों से पहले महिलाओं को इस क्षेत्र में मानसिक तौर पर तैयार होना होगा और इसका नव संचार करना ही होगा। हमारे आने वाली पीढ़ी इस प्रताड़ना से अवगत हो, आने वाली पीढ़ियों  में हमारी बेटियों को यह शर्मिंदगी ना उठानी पड़े, जो समाज में हमें आज उठानी पड़ रही है।

मनोवैज्ञानिक तौर पर इस समय(पीरियड्स के दौरान) महिलाएं थोड़ी मानसिक और शारीरिक रूप से अस्वस्थ होती हैं। ऐसे समय में उन्हें आराम की सख्त आवश्यकता होती है। इसलिए उन्हें धर्म से जोड़ा गया था, ताकि उन्हें आराम दिया जा सके, परंतु अब इसने सामाजिक प्रताड़ना और शर्म का रूप धारण कर लिया है।

अतः सभी महिलाएं, जो पुरुषों से कंधे से कंधा मिलाकर सहयोग कर रही हैं। उनके लिए हमारे देश में पीरियड्स के दौरान कार्यस्थलों पर अवकाश की उचित व्यवस्था करनी चाहिए। मेरा अनुरोध है समाज के उन ठेकेदारों से जो महिलाओं के सम्मान के लिए महिला दिवस जैसे कार्यक्रम संचालित करते हैं। आप सब  कृपया महिलाओं की समस्याओं पर ध्यान दें, शर्म नहीं मान दें। हमें हमारे समाज में एक बहुत बड़े बदलाव की आवश्यकता है।

Exit mobile version