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“हम सबने अपनी-अपनी व्यक्तिगत राजनैतिक महत्वाकांक्षाओं के चलते मानवता को भुला दिया है”

हम सबने अपनी-अपनी व्यक्तिगत राजनैतिक महत्वाकांक्षाओं के चलते मानवता को भुला दिया है

 एक बड़े से मैदान में भव्य सभा का आयोजन किया गया और उस सभा में अनगिनत नए-पुराने अतिथि शामिल हुए। उस सभा का नाम है “बारी-बारी सुनाओ अपनी कहानी” नाम से ही प्रतीत होता है कि इसमें शामिल लोगों को अपनी कहानी सुनानी है, जो वो आज तक नहीं सुना पाए हैं।

सभा की कारवाई शुरू हो चुकी है और बीच-बीच में लोगों के आने का सिलसिला भी बदस्तूर जारी है। इस सभा में इस बार आने वाले लोगों में नौजवानों की संख्या कुछ ज़्यादा है। सभा में सब लोग अपनी-अपनी कहानी बता रहे हैं और बड़े ही शांति और धैर्य के साथ सभी कान लगाये सुन रहे हैं, क्योंकि फिलहाल अब दूसरा कोई काम नहीं बचा है।

सभा में मंच पर सबने अपने घर की कहानी से ही शुरू किया, लेकिन महेश ने राजनीति के इर्द-गिर्द घूमती हुई अपनी कहानी शुरू की और खत्म की। यूं कहें कि उसकी पूरी कहानी एक राजनीतिक पार्टी के नाम ही रही, जिसका वह समर्थक है।  उसने यह बताने में कोई कसर नहीं छोड़ी कि समाज में चौतरफा बदलाव का कारण उसकी पार्टी ही रही है। ऐसी ही बहुत सी बातें बताते हुए, वह अचानक लड़खड़ाया और गिरते हुए कहा “रेमडेसिविर” और यहीं कहानी खत्म हो गई।

रीना, जो एक राजनीतिक पार्टी की समर्थक ही नहीं, बल्कि उसकी प्रवक्ता भी है। उसको लगा कि यहां पर वक्त है कि अपनी पार्टी की साख को बचाने का, क्योंकि महेश और रीना दोनों ही अलग-अलग पार्टी से सम्बन्ध रखते थे।  रीना को कभी पार्टी में अच्छी जगह, तो नहीं मिली, लेकिन फिर भी उसने अपनी हार नहीं मानी और एक बार फिर पार्टी में अपनी वफादारी का सबूत पेश करने का असफल प्रयास किया। इसके बावजूद भी उसके हाथ कुछ भी  नहीं लगा। उसने अपनी पार्टी की बहुत सी गलतियों के ऊपर पर्दा डालते हुए और कई तरह की कहानियां और उपलब्धियां सुनाईं। कहानी खत्म होने के बाद उसके लबों पर आखिरी शब्द थे,  हॉस्पिटल और यहीं पर कहानी खत्म यानी आवाज़ बंद हो गई।

 इन दोनों की कहानी सुनने के बाद राजेन्द्र ने हर बार कि तरह यहां भी अपनी तथाकथित पुरानी पार्टी के पक्ष में बोलना शुरू किया, जिसको उसके पुरखे बहुत समय से समर्थन देते आ रहे थे। देश और समाज में अभी तक जो कुछ भी अच्छी चीज़ हुईं हैं, वो उसकी पार्टी ने ही की है। ऐसा कहते हुए, वह कुछ देर तक बिना रुके एक सांस में अपनी पार्टी की उपलब्धियां गिनाते-गिनाते आखिर में हॉस्पिटल, बेड और दवा पर चुप हो गया।

इन तीनों के साथ-साथ औरों की कहानी सुनने के बाद पलक बोली मुझे मंच पर आने दो (बाकी लोग अपनी- अपनी जगह से ही सभा में कहानियां सुना रहे थे) मंच पर पहुंचते ही कुछ लोगों ने उसके लिए तालियां बजानी शुरू कर दी। पलक ने अपने इशारे से सबको शांति बनाए रखने को कहा और कुछ देर खुद भी शांत हो गई। पलक ने कहा कि हम सब मर चुके हैं और स्वर्ग-नर्क के द्वार खुलने का इंतजार कर रहे हैं।

लेकिन, आप सोच रहे होंगें कि मुझे ये बात कैसे पता? मैं आप सबको यह बताना चाहूंगी कि मैंने किसी भी राजनीतिक पार्टी का चश्मा नहीं पहना है। मेरी उम्र महज़ पांच साल थी और अब पांच ही रहेगी, क्योंकि आप सब के जैसे ही मैं भी मर चुकी हूं। मुझे नहीं पता मेरी लाश के साथ ज़िंदा लोगों ने क्या किया? बोरे में भर कर फेंक दिया या किसी हॉस्पिटल के रूम में रख दिया या जानवरों के लिए कहीं दूर जंगल में रख आए या फिर ससम्मान अंतिम संस्कार कर दिया!

मैं यह बात इसलिए भी कह रही हूं, क्योंकि आपने महेश, रीना और राजेन्द्र की जो राजनीति से ओतप्रोत कहानियां सुनी। वो मेरे पिता, माता और दादा जी हैं। वो मुझे अकेला छोड़कर कुछ दिन पहले ही यहां आ चुके थे, फिर भी आप लोगों ने देखा जिस राजनीति ने उनको बिना कहे मौत के मुंह में धकेल दिया लेकिन वो अभी भी उसका ही गुणगान कर रहे हैं। पूरी ज़िन्दगी में इन लोगों ने राजनीति की ही बातें की और किसी ना किसी राजनितिक पार्टियों का समर्थन करते आए।

इनको इन सब के बदले इनाम में क्या मिला? असमय मौत। मेरे आप सब से कुछ सवाल हैं कि इन सब में मेरी क्या गलती थी? मेरे जैसे हज़ारों लोगों की जानें गईं आखिर क्यों? उनको बचाने की कोशिश क्यों नहीं की गई? आखिर इसकी ज़िम्मेदारी किसकी थी? मेरी नन्ही सी जान को समय से ऑक्सीजन क्यों नहीं मिली? यही पूछते हुए पलक भी सब के सामने  मंच पर ही गिर गई। 

अब वहां भी कोई नहीं बचा अपनी कहानी सुनाने वाला, तभी एक साहब आते हैं और वो मंच पर रखे माइक को संभालते हुए अपना जोरदार भाषण देते हैं।

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