Site icon Youth Ki Awaaz

क्या कोरोना संक्रमण के बाद भारत में बढ़ जाएगी बाल तस्करी?

situation of child labour in india

situation of child labour in india

“ए छोटू, चाय ला जल्दी”, “ए राजू, समोसे ला कितनी देर हो गया दुकान पर आए। अभी तक तू लाया नहीं।” इतने में दुकान का मालिक डपटते हुए बोलता है, “दे जल्दी से सामान।”

फिर इस डांट को सुनने के बाद छोटू या राजू मन मसोसकर चाय या समोसे ग्राहक को परसोते हैं। इस तरह की घटना से हम सबका साक्षात्कार कभी ना कभी होटलों, चाय की दुकानों आदि जगहों पर ज़रूर हुआ होगा।

बचपन इंसान की ज़िन्दगी का सबसे खूबसूरत पल होता है। इस उम्र में ना किसी चीज़ की चिंता होती है और ना ही कोई ज़िम्मेदारी। ये उम्र मस्ती और धमा-चौकड़ी करने का होता है लेकिन ऐसे बच्चों को ये सब शायद ही नसीब होता है।

अपने हाथों में कलम या खिलौने पकड़ने की उम्र में ये बच्चे अशिक्षा और गरीबी के कारण बाल श्रम के दलदल में फस जाते हैं। गरीब माता-पिता जीवनयापन के लिए अपने बच्चों को ऐसे कार्यों पर भेजते हैं, तो कुछ अनाथ बच्चों को ये सब मजबूरी में करना पड़ता है।

भारत में एक करोड़ बच्चे बाल मज़दूरी की गिरफ्त में

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Getty Images

आज पूरे विश्व में बाल श्रम एक प्रमुख समस्या है। भारत में बाल श्रम को लेकर स्पष्ट आकंड़े उपलब्ध नहीं हैं लेकिन 2011 के जनगणना के आंकड़ों के अनुसार 5 से 14 वर्ष की आयु वर्ग के लगभग एक करोड़ बच्चे बाल श्रम की दलदल में धकेले गए हैं।

जबकि अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार, पूरे विश्व में लगभग 15.2 करोड़ बच्चे बाल श्रम में फसे हुए हैं।भारत में सबसे ज़्यादा बाल मज़दूर उत्तर प्रदेश और बिहार में हैं। उत्तर प्रदेश में इनकी संख्या 21.80 लाख और बिहार में 10.9 लाख है।

क्यों मनाया जाता है बाल श्रम निषेध दिवस?

बाल श्रमिकों की इस दयनीय दशा पर लोगों को जागरुक करने के उद्देश्य से हर साल 12 जून को विश्व बाल श्रम निषेध दिवस मनाया जाता है।

इसकी शुरुआत साल 2002 में अंतरराष्ट्रीय श्रम संघ नें की थी, जिसका उद्देश्य लोगों को इस बात के लिए जागरुक करना है कि वे 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को श्रम ना कराकर उन्हें शिक्षा दिलाने की ओर प्रेरित हों।

क्या है बाल श्रम अधिनियम?

भारत में भी बाल श्रम की दयनीय दशा को देखते हुए सन् 1986 में बाल श्रम निषेध और नियमन अधिनियम पारित किया गया। इस अधिनियम के तहत 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों से श्रम कराना गैर-कानूनी घोषित कर दिया गया। इस अधिनियम में संसोधन करते हुए बाल श्रम निषेध और नियमन अधिनियम 2016 पारित कर इसे और कठोर किया गया।

इसके तहत कानून को और कठोर बनाते हुए 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को काम करवाना संज्ञेय अपराध बना दिया गया। इस संसोधन के तहत 14 से 18 वर्ष के बीच के बच्चों को किशोर के रूप में परिभाषित किया गया और यह व्यवस्था की गई कि इन्हें किसी खतरनाक काम में नहीं लगाया जा सकता है।

कैद की अवधि 6 माह से बढ़ाकर 2 वर्ष की गई। इस कानून के अतिरिक्त भारतीय संविधान के ‘मौलिक अधिकारों के तहत अनुच्छेद-23 में बलातश्रम को प्रतिबंधित करने के साथ अनुच्छेद-24 में कारखानों अथवा जोखिम वाले कार्यों में 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों के नियोजन का प्रतिषेध किया गया है।

इन्हीं मौलिक अधिकारों के भाग में 86 वें संविधान संशोधन अधिनियम 2002 के ज़रिये अनुच्छेद- 21 ‘क’ जोड़कर 6 से 14 वर्ष तक की आयु के बच्चों को निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा को मौलिक अधिकार का दर्ज़ा दिया गया।

बाल तस्करी बढ़ने की आशंका

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Flickr

इन सबके बावजूद भी बाल श्रम की स्थिति दयनीय बनी हुई है। इस कोरोना काल की बात की जाए तो स्थिति और भी दयनीय है। इस साल की बाल श्रम निषेध दिवस की थीम भी ‘वैश्विक संकट का बाल श्रम पर प्रभाव’ है।

जानकारों की मानें तो उनका कहना है कि कोरोना महामारी के बाद बाल तस्करी बढ़ने की आशंका है। भारत में काम करने वाली कुछ गैर-सरकारी संस्थाओं ने इस बाल तस्करी पर नियंत्रण हेतु सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी डाली है।

याचिका में कहा गया है कि लाखों प्रवासी मज़दूरों और दिहाड़ी मज़दूरों पर कोरोना एक आफत की तरह आया है। इनमें से बहुत सारे अपने गाँवो की और लौट आए हैं। हालांकि ये हृदयविदारक सच्चाई है कि वहां भी गरीबी व्याप्त है।

जो शहरों में फंस गए, उनकी स्थिति और दयनीय है। वे पूरी तरह से कर्ज़ में डूब गए। इस संकट ने उनकी गरीबी और बढ़ाई है। ऐसे में बाल तस्कर इनकी दयनीय स्थिति का फायदा उठाते हुए बच्चों को अपने चंगुल में लाने का प्रयास करेंगे।

लॉकडाउन में हज़ारों फैक्टरियां बन्द हैं, जिन्हें चलाने के लिए मालिकों को मज़दूरों की ज़रूरत है। वे भी बिचौलियों के माध्यम से सस्ते श्रम की खोज में बच्चों पर ही नज़र गड़ाए हुए हैं। कुछ तस्कर तो परेशान परिवारों को एडवांस में पैसे देकर लॉकडाउन हटने के बाद उनके बच्चों को काम पर लगाने की गारंटी भी ले रहे हैं।

लॉकडाउन के दौरान देह व्यापार में भी काफी नुकसान हुआ है। इसलिए याचिका में यह भी कहा गया है कि इस नुकसान की भरपाई के लिए हाई रिटर्न इन्वेस्टमेंट अर्थात कम उम्र की लड़कियों से पूरा करने के लिए नाबालिग लड़कियों को खरीदकर वेश्यावृत्ति के लिए बेचा जाएगा।

इस याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायालय ने भी केन्द्र सरकार और राज्य सरकारों से जबाब मांगा है। सुनवाई के दौरान न्यायालय ने कहा कि सभी कॉन्टैक्टर को रजिस्टर किया जाए। उनके यहां काम करने वालों की लिस्ट मांगी जाए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि उन्होंने किसी बच्चे को काम पर तो नहीं रखा है।

इस याचिका में व्यक्त की गई आशंकाओं में काफी दम भी दिखता है। ऐसे में सरकार के लिए ज़रूरी हो जाता है कि इस स्थिति को रोकने के लिए वह कोई कदम उठाए।

साथ ही साथ बच्चों के अभिभावकों को भी इस बात का ध्यान रखना होगा कि वे तस्करों के चंगुल में ना फंसें। अगर इन बच्चों को तस्करी से बचाया नहीं जाता है, तो लॉकडाउन के बाद उनके साथ होने वाली हिंसा और उत्पीड़न से उन्हें बचाना मुश्किल हो जाएगा।

संदर्भ- दैनिक जागरण, आज तक (यूपी और बिहार वाले हिस्से के लिए), बीबीसी हिन्दी, आज तक, जागरण जोश

Exit mobile version