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कविता : महिला सशक्तिकरण और हमारी सामाजिक रूढ़ियां

कविता : महिला सशक्तिकरण और हमारी सामाजिक रूढ़ियां

विश्व स्तर पर अपनी संस्कृति और विरासत के लिए प्रसिद्ध, भारत विविध संस्कृतियों से भरा हुआ देश है, लेकिन भारतीय समाज हमेशा से एक पुरुष प्रधान रहा है। यही वजह है कि महिलाओं को शिक्षा और समानता जैसे बुनियादी मानवाधिकारों से लगातार वंचित रखा गया है।

 लैंगिक समानता की धारणा पुरुषों और महिलाओं के बीच समानता की मांग करती है, लेकिन महिलाओं को उनके अधिकारों से वंचित रखा गया है। भारत जैसे देश के लिए, इसके विकास और विकास में महिला सशक्तिकरण की बड़ी भूमिका होगी।

क्यों होती है निराश
तू तो सहनशीलता का प्याला है
तो क्या हुआ तू मलाला नहीं
तूने घर तो संभाला है

तू निकले गलियों से
वो देखे बुरी नज़रों से
उसका कुछ नही कर सकते ये ही हमेशा कहा जाए
बस तू याद रख
बस तू याद रख
तेरा दुपट्टा ना सरक पाए

यह कैसी विडंबना है
समान होने के बावजूद हमें पीछे चलना है
लड़के घूमे कम कपड़ों में
तो वो सुंदर लगते हैं
लड़कियां पहने छोटे कपड़े
संस्कार नहीं है यहीं फब्तियां कसते हैं

महिला सशक्तिकरण अब हमें करना होगा
आगे हमें बढ़ना होगा
कंक्रीट से भरे रास्तों में भी नंगे पांव चलना होगा
अब हमें बढ़ना होगा
बहुत लोग हैं रोकने वाले
झांसी की रानी अब बनना होगा
महिलाओं जाग जाओ
सशक्तिकरण अब हमें करना होगा।

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