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नोबेल विजेता श्री कैलाश सत्‍यार्थी की देन है अंतरराष्ट्रीय बाल श्रम विरोधी दिवस 

फ़ोटो साभार कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फ़ाउंडेशन

 

शिव कुमार शर्मा

हरेक साल 12 जून को अंतरराष्ट्रीय बाल श्रम विरोधी दिवस मनाया जाता है। इस दिन को अंतरराष्ट्रीय बाल श्रम विरोधी दिवस घोषित करवाने के पीछे श्री कैलाश सत्यार्थी की मेहनत, दृढ इच्छाशक्ति और बच्चों के प्रति उनका समर्पण है।

श्री सत्यार्थी का जन्म मध्य प्रदेश के विदिशा शहर में 11 जनवरी 1954 को एक साधारण परिवार में हुआ था। इनके पिता मध्यप्रदेश पुलिस में कांस्टेबल थे। श्री सत्यार्थी तीन भाइयों तथा एक बहन में सबसे छोटे हैं। इनकी शादी आर्यसमाज के नेता वेद भिक्षु श्री भारतेन्दु जी की बेटी सुमेधा आर्य से हुई है। शादी के बाद सुमेधा आर्य, सुमेधा कैलाश बन गईं। श्री सत्यार्थी 1980 में सहायक प्राध्यापक की नौकरी छोडकर सपत्‍नीक दिल्ली आ गए और शोषित बच्चों की जिंदगी बदलने के काम में लग गए और आज तक लगे हुए हैं।

श्री सत्यार्थी ने जब बाल मजदूरों के जीवन में पसरे अंधेरे को दूर करने का काम आरंभ किया, उस समय भारत में बाल-मजदूरी कोई मुद्दा नहीं था और ना ही इसे रोकने का कोई कानून ही था। श्री सत्यार्थी ने सिविल सोसाइटी के अपने साथियों से बाल मजदूरी के विरुद्ध कानून बनवाने की बात कही। यह बात सुनकर श्री सत्यार्थी के कई साथियों ने व्‍यंग्‍य किया और कहा कि श्री सत्यार्थी ना तो आप एमएलए हो और ना ही एमपी। आप कभी वार्ड मेम्बर का चुनाब तक नहीं लड़े हैं। तब आप संसद और विधानसभाओं में बाल मजदूरी के विरुद्ध कानून का निर्माण कैसे करवाएंगे? अपने दोस्तों की इन बातों से श्री सत्यार्थी का मनोबल कमजोर नहीं हुआ बल्कि वे और शिद्दत के साथ के साथ समर्थन जुटाने में लग गए।

श्री सत्यार्थी जी के प्रयासों से ही 1986 में भारतीय संसद में बाल श्रम (निषेध व नियमन) कानून पास हुआ। यह कानून 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को किसी भी अवैध पेशे और 57 प्रक्रियाओं में, जिन्हें बच्चों के जीवन और स्वास्थ्य के लिए अहितकर माना गया है, नियोजन को निषिद्ध बनाता है। इसी तरह 2001 में बाल मजदूरी की रोकथाम के लिए भारतीय संसद में एक कानून पास हुआ। इस तरह श्री सत्यार्थी ने अपने उन मित्रों की आशंकाओं को निर्मूल साबित कर दिया, जो कहते थे कि कानून निर्माण के लिए एमएलए और एमपी होना आवश्यक है।

अब श्री सत्यार्थी का फोकस बाल मजदूरी के विरुद्ध एक अंतरराष्‍ट्रीय कानून बनवाना था, जिसकी आवश्यकता काफी वर्षों से महसूस की जा रही थी। वैसे तो श्री सत्यार्थी ने भारत तथा पड़ोसी देशों जैसे नेपाल, पाकिस्तान में भी बाल मजदूरी के खिलाफ जन जागरुकता हेतु यात्राएं निकाली हैं, लेकिन अब वे एक बड़ी जन जागरुकता यात्रा उन देशों से निकालना चाहते थे जहां पर बाल मजदूरी की समस्या विकट रूप धारण कर चुकी है। यह कार्य आसान नहीं था क्योंकि इतनी बड़ी यात्रा के लिए काफी धन की आवश्यकता थी। श्री सत्यार्थी के पास धन तो था नहीं लेकिन उनके पास हिम्मत की कमी नहीं थी। किसी शायर ने कहा भी है- हिम्मते मर्दा मददे खुदा, यानी जिनके पास हिम्मत होती है, उनकी मदद खुदा करता है। श्री सत्यार्थी ने इस विश्व यात्रा का नाम ग्लोबल मार्च अगेंस्‍ट चाइल्ड लेबर रखा और इसके आयोजन की रूपरेखा बनाकर दुनियाभर के सिविल सोसाइटी से चर्चा की। श्री सत्यार्थी की बातों का लोगों पर सकारात्मक असर हुआ। उन्‍होंने श्री सत्यार्थी का खुले दिल से सहयोग किया।

दिनांक 17 जनवरी 1998 को फिलीपीन्स की राजधानी मनीला से इस विश्‍व यात्रा की शुरुआत हुई। इस यात्रा ने कुल 103 देशों से होकर 80000 किलोमीटर की दूरी तय की। इस यात्रा में जगह-जगह 100 से अधिक वैश्विक नेताओं, राष्ट्राध्यक्षों, प्रधानमंत्रियों तथा राजा-रनियों ने शिरकत की। यात्रा का समापन 6 जून 1998 को संयुक्त राष्ट्र संघ के मुख्यालय जेनेवा में संपन्‍न हुआ। श्री सत्यार्थी ने अपने 600 कार्यकर्ताओं के साथ, जिनमें कई बाल मजदूर तथा सामाजिक कार्यकर्ता थे, संयुक्त राष्ट्र संघ के अंतरराष्‍ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) के दफ्तर में प्रवेश किया। उस समय वहां आईएलओ का सालाना अधिवेशन चल रहा था जिसमें दुनिया के 150 देशों के श्रम मंत्री उपस्थित थे। श्री सत्यार्थी तथा अन्य यात्रियों का स्वागत खुद आइएलओ के महानिदेशक श्री हेनसन ने मुख्य द्वार पर किया। श्री सत्यार्थी तथा उनके साथियों के स्वागत में उपस्थित लोग खड़े हो गए और तालियां बजाने लगे। उस समय हाल में 2000 लोग उपस्थित रहे होंगे। श्री सत्यार्थी तथा दो पूर्व बाल मजदूरों ने आईएलओ के सालाना अधिवेशन को संबोधित करके, इतिहास रच दिया। श्री सत्यार्थी ने मांग की कि बाल श्रम के खिलाफ एक अंतरराष्‍ट्रीय कानून बनाया जाए व साल में एक दिन उन बच्चों को समर्पित हो जो गुलामी, बाल-दासता के शिकार रहे हैं। 

सत्यार्थी जी, ग्लोबल मार्च अगेन्स्ट चाइल्ड लेबर यात्रा के दौरान अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के भवन में जाते हुये। फोटो;साभार कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फ़ाउंडेशन

आखिरकार 17 जून 1999 को श्री सत्यार्थी की दोनों मांगें मान ली गईं।   आईएलओ ने बाल श्रम और बाल दासता के खिलाफ सर्वसम्मति से आईएलओ कनवेंशन-182 कानून पारित किया। यह कानून बाल दासता और बंधुआ बाल मजदूरी पर पूरी तरह से रोक लगाता है तथा बच्चों के बाल सैनिक बनाने और पोर्नोग्राफी आदि में शोषण को पूरी तरह से प्रतिबंधित करता है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने श्री सत्यार्थी की दूसरी मांग भी मान ली और 12 जून को विश्व बाल श्रम विरोधी दिवस के रूप में मनाने की घोषणा कर दी।

आईएलओ कन्‍वेंशन-182 पर दुनिया के सभी देशों ने हस्ताक्षर कर दिए हैं। सबसे बाद में हस्ताक्षर करने वाले देश का नाम किंगडम ऑफ टोंगा है। इस तरह श्री सत्यार्थी के अथक प्रयासों से बाल मजदूरी के खिलाफ एक अंतरराष्‍ट्रीय कानून बना तथा 12 जून को बाल मजदूरी के शिकार बच्चों को समर्पित किया गया।

 (लेखक प्रोग्रेसिव डेमोक्रेटिक पार्टी के राष्‍ट्रीय अध्यक्ष हैं)

 

 

 

 

 

 

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