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अमेरिका और भारत का एक जैसा अलग अलग सफर: क्या भारतीयों के लिए कोई संदेश ला रहा है ?

बचपन से ही किताबों में किसी और देश के बारे में पढ़ाया गया हो ना हो लेकिन अमेरिका के बारे में ज़रूर पढ़ाया जाता था जिसका कारण है कि अमेरिका को एक सुपर पावर माना जाता था इसलिए भारत अमेरिका के रिश्तों के बारे में भी हमेशा विस्तार से पढ़ाया जाता था । मुझे हमेशा से यह तो पता था कि अमेरिका एक सुपर पावर देश है जो कि हर देश के काम काज में अपना दखल ज़रूर देता है और जो देश उसकी आँखों से उतर जाए उसको रौंदने के लिए भी तैयार रहता है । मेरे लिए यह एक सुपर पावर होने से ज़्यादा एक दादा या बुल्ली होना था । इसलिए अमेरिका जिस तरह दुनिया में अपनी ताकत का इस्तेमाल करता था यह मुझे कभी पसन्द नहीं आया । बाकी रेसिस्म का भी अमेरिका का एक पुराना इतिहास रहा है जो कि एक और वजह थी की अमेरिका की पावर को मैंने कभी महान नहीं माना ।

लेकिन अमेरिका के बारे में मेरी यह मंशा तब बदलना शुरू हुई जब मैंने देखा कि वहाँ के नागरिक बहुत ज़ोर शोर से बैरक ओबामा को प्रेसिडेंट बनाने में जुट गए । बैरक ओबामा की रैलियाँ और उनकी कही हुई हर बात पर बजती तालियाँ इस बात की गवाह थीं कि अमेरिका के नागरिकों में अपनी गलतियों को सुधारने की छमता थी । अमेरिका के नागरिक वहाँ के पूर्व राजनेताओं की करी हुई ग़लतीयों को मानने और उन्हें बदलने की छमता रखते थे और वो उन्होंने बैरक ओबामा को प्रेसिडेंट बना के कर दिखाया । बैरक ओबामा ने बखूबी अपना काम कर के भी दिखाया और एक प्रेसिडेंट के तौर पर अमेरिका को और तरक्की और स्थिरता की राह पर ले गए । यह स्थिरिता उस वक्त सिर्फ अमेरिका में नहीं बल्कि भारत में भी देखी गयी थी और यही समानता दोनो देशों के लिए एक बहुत बड़ी मुसीबत भी बनी जिसने आगे जाके दोनो देशों को बहुत सी मुश्किलों में भी डाला । भारत में मनमोहन सिंह ने बतौर प्रधानमंत्री देश को स्थिरता दी तरक्की दी। उनके कार्यकाल में जी डी पी लगातार बढ़ती रही । इसके साथ लोगों में और माहौल में एक वैज्ञानिक सोच का विस्तार आया । मानव अधिकारों के प्रति भी लोगों में एक संवेदना बढ़ी ।

दिक्कत यह रही की इतनी स्थिरता जो उस समय भारत और अमेरिका को मिली उसकी वजह से इन दोनों देशों को नागरिक कुछ और बेहतर ढूढ़ने पर मजबूर हो गए । आसान शब्दों में कहें तो जब दोनों देश के नागरिकों ने लगातार तरक्की और स्थिरिता देखी तो वो बोर हो गए । उन्हें चाहिए था कुछ नया कुछ ऐसा जो सब कुछ बदलने की बात करे जो कि ऐसे सपने दिखा दे जो बैरक ओबामा और मनमोहन सिंह जैसे कुशल शासक कभी नहीं दिखा सकते थे क्योंकि चुनावी जुमलों के नाम पर वो झूठ नहीं बोल सकते थे । यह उनके व्यक्तित्व के खिलाफ था । अमेरिका को डोनाल्ड ट्रम्प के रूप में वह सपनो को सौदागर मिला और भारत को नरेंद्र मोदी के रूप में । दोनों देशों के नागरीकों ने खुशी खुशी अपना नया नेता चुन लिया और उसी के साथ अपने अपने देशों की स्थिरता और तरक्की को खोना शुरू कर दिया ।

डोनल्ड ट्रम्प के अंदर अमेरिका ने मानव अधिकारों और वैज्ञानिक सोच के छेत्र में बहुत से निचले मुकाम देखे तो भारत ने नरेंद्र मोदी के अंदर अपनी अर्थव्यवस्था, मानव अधिकार, स्थिरता को बुरी तरह गिरते हुए देखा । बस दोनों देशों में अंतर एक रहा । अमेरिका के नागरिकों ने दिखा दिया कि वह अपनी गलतियाँ सुधारने की ताकत रखते हैं और उन्होंने साल 2020 में डोनाल्ड ट्रम्प को चलता कर उनसे बेहतर विकल्प जो बिडेन को चुन लिया । इस बात का संकेत अमेरिका की जनता ने जॉर्ज फ्लॉयड के लिए स्टैंड लेके ही दे दिया था । वहाँ ब्लैक लाइव्स मैटर आंदोलन खड़ा कर के अमेरिका की जनता ने दिखा दिया कि वह मनमानी और मानव अधिकारों का उल्लंघन नहीं सहेगी । वहाँ के श्वेत नागरिकों ने दुनिया के सामने झुक कर आंदोलनकारियों से सदियों से चली आ रही रेसिस्म के लिए माफी माँगी । यहाँ तक कि अमेरिकी पुलिस ने भी आंदोलनकारियों के सामने सर झुकाया और एक तरह से आंदोलन को समर्थन दिया । डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने बल द्वारा इस आंदोलन को दबाने की और इसे बदनाम करने की कोई कसर नहीं छोड़ी पर क्योंकि आम से आम अमेरिकी भी इस आंदोलन के साथ जुड़ गया था इसलिए यह आंदोलन बहुत सफल साबित हुआ और यही से अंदेशा हो गया था कि अमेरिका की जनता डोनॉल्ड ट्रम्प को बाहर का रास्ता दिखा देगी और वही हुआ भी ।

इस स्थिति के विपरीत भारत की जनता ने गिरती हुई अर्थव्यवस्था, मानव अधिकार और वैज्ञानिक सोच के बीच भी नरेंद्र मोदी को 2019 में एक और मौका दे दिया जिसका ख़ामियाजा उन्होंने अगले दो सालों में हर प्रकार से भुगता है । मोदी सरकार कोरोना महामारी में बिल्कुल असफल साबित हुई जिसका प्रमाण ऑक्सीजन और अस्पतालों में बेड्स की कमी के कारण होने वाली मृत्यु हैं । गंगा में बहती लाशें इस बात का प्रमाण हैं कि भारत की जनता से 2019 में बहुत बड़ी भूल हो गयी है । जिन्होंने अपनी जान देके कीमत नहीं चुकाई उन्होंने भी कुछ कम नहीं खोया है । महंगाई सर चढ़ कर बोल रही है और कमाने के साधन सिमटते जा रहे हैं । बेरोज़गारी अपने चरम पर है । एल पी जी गैस, पेट्रोल, डीज़ल सबके मूल्य आसमान छू रहे हैं । केंद्रीय कर्मचारियों की डी ए बढ़ोतरी फ्रीज़ कर दी गयी है । वृद्धों को रेलवे टिकट में मिलने वाली छूट बन्द कर दी गयी है और इन सब के बीच एक नया पार्लियामेंट बन रहा है । जो सरकार की नाकामी और अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाता है उसे उठा के जेल में डाल दिया जाता है । सीधे शब्दों में कहें तो भारत की जनता को हर तरह से निचोड़ा जा रहा है और लोग मायूस हैं अपने अपने दुखों में डूबे हुए हैं किसी तरह अपना जीवन चलाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं । इस बीच सवाल ये है कि अमेरिका की जनता की तरह भारत की जनता ने भी समय रहते मोदी सरकार को 2019 में ही बाहर का रास्ता क्यों नहीं दिखा दिया ? सवाल यह भी है कि आगे क्या भारत की जनता अमेरिका की जनता की तरह अपनी गलती सुधारने की छमता रखती है ?

इन सवालों के जवाब पाने के लिए हमें अमेरिका और भारत के नागरिकों के बीच के अंतर को समझना होगा । अमेरिका एक विकसित देश है वहाँ की जनता का जीवन स्तर काफी अच्छा है । वहाँ शिक्षा, स्वास्थ, बिजली, पानी सड़क जैसी मूल सुविधाओं की कोई कमी नहीं है । जाहीर सी बात है कि इन्हीं कारणों की वजह से वहाँ की जनता राजनीति में और अपना प्रतिनिधि चुनने में गहरी दिलचस्पी भी रखती है और हिस्सा भी लेती है । वहाँ की जनता सरकार से सवाल भी करती है और अपना अधिकार भी माँगती है । जबकि भारत का एक बहुत बड़ा वर्ग रोज़ कमा के खाता है । यहाँ मूल सुविधाएं सबको नहीं मिलती । बहुत बड़ा वर्ग अपनी ज़िन्दगी जीने की जद्दोजहद में लगा हुआ है । यहाँ तक कि भारत के किसी भी चुनाव में 60 से 70 प्रतिशत तक वोटिंग ही होती है मतलब कम से कम 30 से 35 प्रतिशत जनता ऐसी भी है जो राजनीति से इतनी दूर ही गयी है कि वोट तक डालने नहीं आती । जो वोट डालते हैं उनमें से भी 2019 में बी जे पी को वोट डालने वाले 37 % ही थे इसलिए भारत की पूरी जनता को मोदी सरकार को चुनने के लिए कटघरे में खड़ा करना गलत होगा । मतलब दायरा बहुत आराम से छोटा करा जा सकता है यह पहचानने के लिए कि आखिर वो कौन लोग थे जिन्होंने नोटबंदी और जी एस टी की अपार विफलता बढ़ती महंगाई, धर्म की गंदी राजनीति सबको अनदेखा कर एक बार फिर से मोदी सरकार को 2019 में चुन लिया । यह लोग हैं भारत के बहुसंख्यक समाज के मिडिल क्लास लोग जो कि अपने घरों में न्यूज़ चैनल्स के मोदी गुड़गान और साम्प्रदायिक खबरों का शिकार हैं और इसकी कीमत इन लोगों ने पिछले दो साल में बहुत चुकाई है और अब भी चुका ही रहे हैं । बहुत से ऐसे बहुसंख्यक मिडिल क्लास परिवारों ने कोविड महामारी में हर तरह की मुश्किल उठाई है कई परिवारों ने तो अपने करीबी भी इस महामारी में खो दिए हैं । इस बहुसंख्यक मिडिल क्लास समाज के नागरिकों की ही मैं बात कर रहा हूँ कि यह अमेरिका की जनता से बहुत अलग हैं । जैसे कि अमेरिका के श्वेतों ने अश्वेतों के सामने झुक कर माफी माँगी वैसे कभी भी भारत का बहुसंख्यक मिडिल क्लास अल्पसंख्यक समाज के सामने झुक कर माफी नहीं मांगेंगा की पिछले सात सालों से अल्पसंख्यक समाज के कितने लोगों की मॉब लिनचिंग करके हत्या कर दी गई उसके लिए वो शर्मिंदा हैं उन्हें माफी चाहिए । ऐसा भारत में होगा नहीं और यहीं अंतर है भारत के नागरिकों में और अमेरिका के नागरिकों में ।

अमेरिका में जनता को अपने सारे अधिकार सरकार से चाहिए जबकि भारत में यह बहुसंख्यक मिडिल क्लास अपने अधिकार किसी और समाज के उत्पीड़न और अत्याचार में ढूंढ रहा है । इस सोच की वजह से सिर्फ अल्पसंख्यक समाज ही नहीं बल्कि गरीब और अनुसूचित जाति से आने वाले लोगों को भी लगातार मुष्किलों का सामना करना पड़ रहा है और उनके मानव अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है । मज़बूत और अत्याचारी सरकार से लोहा लेने की जगह कमज़ोर और शोषित अल्पसंख्यक समाज को अपना दुश्मन मानना यह जो भारत के बहुसंख्यक मिडिल क्लास ने अपना लिया है ऐसा अमेरिका के नागरिक नहीं करते । वह मज़बूत सरकार के खिलाफ खड़े रहते हैं और अपने कमज़ोर और शोषित समाज का साथ देते हैं । बेशक उनका रेसिस्म का एक इतिहास है पर वह उस इतिहास से लड़ना चाहते हैं ।

यह जो अंतर भारतीय और अमेरिकी नागरिकों के बीच है इसका नतीजा आपके सामने है । अमेरिका में लगभग 40 प्रतिशत जनता को वैक्सीन लग चुकी है और अब वह देश मास्क फ्री होने की राह पर बढ़ चुका है । यह इसलिए नहीं हुआ कि जो बिडेन से अच्छा प्रधानमंत्री अमेरिका को इससे पहले मिला नहीं । यह इसलिए हुआ क्योंकि बिडेन को पता है कि उन्हें चुनने वाली जनता उनसे जवाब भी मांगेंगी और गद्दी से भी उठा देगी अगर उसे उसके अधिकार नहीं मिले । लेकिन भारत में सत्ता के शीर्ष पर बैठे लोगों को पता है कि उन्हें चुनने वाला बहुसंख्यक मिडिल क्लास मर जाएगा लेकिन उनसे जवाब नहीं मांगेगा और ना ही उनसे अपना कोई अधिकार मांगेगा । यही कारण है कि भारत में आज सिर्फ लगभग 4 प्रतिशत जनता ही वैक्सीनेटेड है और मास्क फ्री होना तो दूर यहाँ तो कार में अकेले बैठे व्यक्ति का भी मास्क ना लगाने के लिए दो हज़ार का चालान ठोक दिया जाएगा तो भी कोई आवाज़ नहीं उठेगी चाहे प्रधान मंत्री और ग्रह मंत्री हज़ारों लोगों की भीड़ इखट्टा कर के खुद बिना मास्क उनके बीच रैलियाँ करें ।

वो एक कहावत है ना कि हमें वैसा ही प्यार मिलता है जिसके हम लायक होते हैं इसी तरह हमें सरकार भी वैसी ही मिलती है जिसके हम लायक होते हैं । अगर देश का एक महत्वपूर्ण वर्ग खुद को बदल लेगा तो सरकार भी बदल जाएगी । लेकिन मुझे पूरी उम्मीद है कि जैसे अमेरिका अपना इतिहास बदल रहा है और अपनी गलतियाँ सुधार रहा है वैसे ही आने वाली भारत के बहुसंख्यक मिडिल क्लास की भी पीढ़ी अपना इतिहास बदलेगी । इस समाज की एक बड़ी खासियत इस समय यह भी बनी हुई है कि परिवार की नई पीढ़ी अपने साथ होने वाले नुकसान को समझ रही है और सही समय आने पर जवाब देने के लिए बैठी है तो अब चाहे पाँच साल लग जाएं या दस साल लेकिन जो नफरत और अहिसहिष्णुता भारत में पिछले सात सालों में फैली है वह आने वाले दस साल में खत्म भी ज़रूर होगी ।

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