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अम्बेडकर का लोकतंत्र और उनके अनुयाई

KOLKATA, INDIA - JANUARY 8: A woman holds a portrait of BR Ambedkar during a sit-in protest against Citizenship Amendment Act (CAA), National Population Register (NPR), National Register of Citizens (NRC) and attacks on students of Jamia Millia Islamia (JMI) and Jawaharlal Nehru University (JNU), at Park Circus Maidan on January 8, 2020 in Kolkata, India. The agitation, akin to the one at Delhis Shaheen Bagh, has been ongoing since Tuesday. (Photo by Samir Jana/Hindustan Times via Getty Images)

 

आज भारत में लाखों करोड़ों की संख्या में बाबा साहेब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जी के अनुयाई मौजूद हैं और दहाई की संख्या में ऐसे दल भी मौजूद हैं जो स्वयं को अंबेडकर अनुयायियों के वोटों के हकदार बनते हैं या स्वयं को समझते हैं।

 

आज जब पूरे भारत में संविधान और लोकतंत्र बचाने जैसी बातें हो रही हैं तब हमारा ध्यान संविधान निर्माता के अनुयायियों और उनके दलों की तरफ भी जाता है। जो दल स्वयं को अंबेडकर का राजनीतिक उत्तराधिकारी दर्शाने की कोशिश कर रहे हैं क्या वह वाकई में अंबेडकर के राजनीतिक उत्तराधिकारी है या नहीं? जो कि विचारणीय प्रश्न है जिस पर सभी बहुजन समाज के लोगों को मंथन करना चाहिए।

 

अंबेडकर ने संविधान के द्वारा भारत में लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए प्रत्येक नागरिक को वोट का अधिकार दिया और इस अधिकार में किसी के भी साथ लिंग, जाति, धर्म, क्षेत्र के आधार पर भेदभाव नहीं किया। वो चाहते थे कि देश में एक मजबूत और सशक्त लोकतंत्र हो और केवल देश में ही नहीं अपितु देश की सत्ता पर काबिज पार्टियों में भी लोकतंत्र हो। डॉक्टर अंबेडकर कहा करते थे कि अब वह जमाना गया जब राजा का बेटा ही राजा बना करता था अब राजा वो बनेगा जिसको जनता चाहेगी। किंतु आज के समय में यदि आप भारत के राजनीतिक दलों की ओर देखेंगे तो पता चलता है की भारत के राजनीतिक दल उसी पद्धति का अनुसरण कर रहे हैं जिसमें उनका ही पुत्र उनके राजनीतिक दल का नेतृत्व करें। इसमें भी सबसे ज्यादा अफसोसजनक वह बात है जिसमें उनके अनुयाई होने का दावा करने वाले लोगों का दल ही वंशवाद की प्रथा को आगे बढ़ाने लगे।

 

आज उन दलों में कहीं भी लोकतंत्र नहीं दिखाई देता जो दल स्वयं को अंबेडकरवादी मूवमेंट से जुड़े होने का दावा करते हैं जिले से लेकर राष्ट्रीय इकाई तक सभी पहले से ही तय होती हैं और उन्हीं तय नामों को नियुक्त कर दिया जाता है जैसे कि एक तानाशाह करता है जबकि बाबासाहेब लोकतंत्र के समर्थक थे और उन्हीं के अनुयाई अपनी ही पार्टियों में लोकतंत्र स्थापित करने में नाकाम रहे हैं।

 

आखिर वह लोग कैसे इस देश के संविधान और लोकतंत्र कि रक्षा कर पाएंगे जिन लोगों के दलों में ही लोकतंत्र नहीं है। जब तक वह लोकतंत्र अपने दलों में लागू नहीं कर देते हैं तब तक लोकतंत्र बचाने जैसी बातें उनके द्वारा कहना एक बेमानी सी लगती है। अंबेडकर अनुयायियों के दलों को चाहिए के सर्वप्रथम वे अपने दलों में एक स्वस्थ लोकतंत्र की स्थापना करें ताकि आम जनता यह देख पाए कि उनका दल केवल बातें ही नहीं करता बल्कि उन बातों को सबसे पहले स्वयं से प्रारंभ करने के लिए भी प्रतिबद्ध है।

 

जब तक यह कार्य नहीं हो जाता है तब तक संविधान बचाने और लोकतंत्र बचाने जैसी बातें करने वाला भारत का कोई भी दल केवल जनता से झूठ बोलने का कार्य कर रहा है इसलिए लोकतंत्र को सर्वप्रथम दलों में स्थापित करना होगा ताकि सही लोगों को राजनीति में मौका मिल सके ना कि चापलूसों को।

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