तेजस्वी : एक नए युग की शुरुआत
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युवा नेता का ब्रांड बनना यूं आसान नहीं
वह लालू की छवि से बाहर निकल चुके हैं, जो कि बहुत मुश्किल काम था, क्यूंकि लालू की ताकत के साथ साथ एक बैगेज था जो लालू ने अपने बच्चों को दिया था। जी हां बात तेजस्वी यादव की हो रही है जो युवा हैं तो जोशीले भी हैं, यही नहीं युवाओं के आइकन भी हैं। बहरहाल पिता से हर पुत्र की तुलना होती है लेकिन लालू तेजस्वी से अलग कैसे हैं यह समझने के लिए पढ़िए यह लेख।
लालू एक आक्रामक पॉलिटिशियन थे, अपने समय में उन्होंने जितने दोस्त बनाये, उतने ही दुश्मन भी। खासकर RSS मांसिकता के लोगों में, जो लालू को न कल पसंद करते थे और न आज।
बहरहाल तेजस्वी का स्वभाव आक्रामक नहीं है, इसी वजह से जो हेट उन्हें मिलनी चाहिए थी वह शुरू-शुरू में मिलकर अब कम या यूं कहें कि खत्म ही हो गयी है। चूंकि तेजस्वी अब नेता बन चुके हैं इस लिए राजद अब लालू की राजद नहीं बल्कि तेजस्वी की राजद है। यह राजनीतिक ट्रांसफॉर्मेशन पिछले कुछ महीने में ही हुआ है। वैसे याद होगा कोछ इस तरह की छाया से निकलने के लिए अखिलेश ने बहुत बड़ी कीमत चुकाई थी। शिवपाल की टीम का सपा से बाहर जाना वह कीमत थी। शिवपाल से लड़कर अखिलेश ने अपनी छवि बनाई थी, उस से पहले तक वह बस मुलायम के लड़के ही थे।
उसका खामियाजा भी अखिलेश भुगत रहे हैं और शायद आगे भी भुगतेंगे। जबकि तेजस्वी को कुछ भी नहीं भुगतना पड़ा, वह मक्खन की तरह अपने बाप की छाया से बाहर निकल आए।
बड़े नेता की छाया से निकलने की छटपटाहट कितने मुश्किल है यह कोई राहुल गांधी से पूछे। सोनिया जैसा स्ट्रांग व्यक्तित्व जिसकी माँ के रूप में हो उसके लिए बहुत ही मुश्किल था। राहुल अभी भी बहुत कोशिश करने के बावजूद सोनिया की कांग्रेस से आगे नहीं बढ़ पाए हैं। हालांकि वह देश के सबसे इंटेलीजेंट राजनीतिज्ञों में से एक हैं लेकिन उनका पब्लिक परसेप्शन अभी भी नहीं बन पाया है जिसके वह हकदार हैं। मुझे याद है जब जगन मोहन रेड्डी ने अपनी पार्टी बनाई थी तो मेरी आंध्रा की ही सहपाठी ने कहा था कि वह कामयाब नहीं हो पाएंगे क्योंकि इसमें अपने बाप वाली बात नहीं है।
और मैं उस समय भी यही सोच रहा था की ये तो अच्छी चीज़ है।
बाप वाली बात होती तो इसको बाप के दुश्मन विरासत में मिलते। तबसे अब तक उस लड़के ने ज़बरदस्त मेहनत की है। उसपर अनाप शनाप केस भी लगाए गए, सभी तरह की प्रताड़ना मिली लेकिन लड़का तो फाइटर निकला। ऐसा ही एक लड़का अपनी मेहनत से उभर के आया था वो दुष्यंत चौटाला था। उसके पिता और दादा की स्टेट में उतनी अच्छी इमेज नहीं थी जितनी कि उसके पrदादा की थी। यानी कि खानदान डाउनहिल था पब्लिक परसेप्शन के मामले में लेकिन उस बन्दे के इंटरव्यूज़ में ही दिखाई देता था कि यह राजनीति के लिए ही बना है।
अभी जो थोड़ा बहुत उसे नेगेटिव पब्लिसिटी मिल भी रही है बीजेपी के साथ जाने की वह मुझे नहीं लगता कि लम्बे समय तक रहेगी। जिन हालातों में वह परिवार से लड़कर फिर राज्य की राजनीति में जगह बना पाया है वह काबिले तारीफ है।
बहरहाल एक जिस लड़के से मुझे काफी उम्मीदें हैं वह जयंत चौधरी हैं। उनकी किस्मत फिलहाल साथ नहीं दे रही है लेकिन वह अपने पिता से एक स्टेप आगे हैं। बहरहाल चरण सिंह वह नहीं बन सकते लेकिन उनमें दम है बड़ा नेता बनने का, उसे बस सही समय चाहिए।