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पर्यावरण को बेहतर बनाने में लोगों  की क्या भागीदारी हो?

पांच जून विश्व पर्यावरण दिवस के तौर पर मनाया जाता है. इसका उद्देश्य लोगों के बीच पर्यावरण को लेकर जागरूकता फैलाना है. प्रकृति से प्रेम करनेवालों के कमी नहीं है. इसमें हर उम्र के लोग शामिल होते हैं. स्कूलों और कॉलेजों में पढ़नेवाले स्टूडेंट्स ही नहीं गांवों और शहरों में रहनेवाले लोग भी इसमें शामिल हैं. ये सभी लोग धरती के प्रदूषण मुक्त और हरा-भरा करने की मुहीम में जुटे हुए हैं.

पिछले 33 सालों से पर्यावरण सरंक्षण के लिए कर रहा कार्य
तरुमित्र अपने आप में एक कहानी की तरह है. यहां मौजूद हर एक चीज अलग तरह की कहानी को ब्यां करती हैं. बिल्डिंग से लेकर यहां इस्तेमाल होने वाली हर सुविधा पर्यावरण से जुड़ी हुई है. बता दे कि तरुमित्र की स्थापना 1988 में की गयी थी जिसके फाउंडर फादर रोबर्ट एथिकल थे. तब से लेकर आज तक तरुमित्र लगातार पर्यावरण संरक्षण और इससे जुड़ी एक्टिविटी में शहर के स्कूल और कॉलेजों के बच्चों को जोड़ने का काम कर रही है. 18 एकड़ की जमीन पर फैले तरुमित्र में 450 विभिन्न प्रकार के 1000 से ज्यादा पेड़ और पौधे मौजूद हैं. हरा-भरा होने के कारण यहां आपको 100 से ज्यादा प्रजाति की पक्षियां नजर आ जाती हैं. तरुमित्र के निदेशक फादर टोनी पेंडानाथ ने बताया कि तरुमित्र में इस साल विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर ऑनलाइन कार्यक्रम आयोजित किये जायेंगे. विभिन्न राज्यों  में तरुमित्र से जुड़े वॉलेंटियर्स, पर्यावरण संरक्षण में योगदान देने वालों के अलावा भारत के बाहर कार्य कर रहे प्रकृतिप्रेमी इसका हिस्सा बनेंगे.
सांकेतिक डेमोन्सट्रेशन के जरिये पौधारोपण और पर्यावरण संरक्षण का दे रहें संदेश
समस्तीपुर के रहने वाले राजेश कुमार सुमन साल 2008 से पौधारोपण कर रहे हैं. अब चतक उन्होंने बिहार के अलग-अलग जिलों में एक लाख  दस हजारे से ज्यादा पौधों को लगाया है. यह गुण उन्होंने अपने पिता से सीखा जो हर साल उनके जन्मदिन पर उनसे पौधा लगवाया करते थे. 2008 में उन्होंने गरीब बच्चों के लिए बिनोद स्मृति स्टडी क्लब की शुरुआत की. इस क्लब के अंतर्गत उन्होंने पौधारोपण और जरूरतमंद बच्चों को मु्फ्त शिक्षा देने की मुहीम छेड़ी. उन्होंने समस्तीपुर का गांव आलमपुर और बेगूसराय का गांव सागी को खोद लेकर ग्रीन वीलेज में तबदिल करने की मुहीम की शुरुआत की है.   जिन गांवों के घरों में बेटियां होती थी उनके घरवालों से बेटी के नाम का आम का पेड़ लगवाते हैं. इसके अलावा वे पिछले दो साल से गांवों, जिलों और शहरों में घुम-घुम कर सांकेतिक डेमोन्सट्रेशन के जरिये जिसमें वे पीठ पर पौधा और  नाक में ऑक्सीजन मास्क लगाकर वे आम लोगों को पौधारोपण और पर्यावरण जागरूकता के प्रति अभियान चला रहे हैं.
– अपनी जिंदगी में पौधारोपण जरूर करें
पाटलिपुत्र कॉलोनी के रहने वाली विजय शंकर दुबे बताते हैं कि  पिछले 35 सालों से पौधारोपण कर रहे हैं. उनका बचपन और युवा अवस्था गांव के परिवेश में बीता है. वे गांव में खेत, बागीचे और आस-पास पिता के साथ फलों का पौधा लगाया करते थे. नौकरी के दौरान उन्हें अलग-अलग शहरों में रहने का मौका भी मिला.इस दौरान उनका बस एक ही मकसद था वह यह कि वे जहां भी रहे कुछ पौधों को लगाते रहें. यहां तक रिटारयमेंट के बाद भी वे पाटलिपुत्र कॉलोनी के आस-पास पौधारोपण करते रहते हैं. वे कहते हैं कि जीवन एक है ऐसे में आप हर साल में कुछ पौधे जरूर लगाये. पौधों का संरक्षण शुरुआत सात-आठ साल करना जरूरी है क्योंकि इस वक्त तक उनकी जड़े मजबूत हो जाती हैं और आसानी से फल-फूल सकते हैं.
– रॉबिनहुड आर्मी एकेडमी के जरिये बच्चों को मिल रही पर्यावरण संरक्षण की जानकारी
पिछले चार साल सुमंत और उनकी टीम शहर के 6 जगहों पर रॉबिनहुड आर्मी एकेडमी चला रही है. यहां बच्चों को शिक्षित करने के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक किया जाता है. सुमंत बताते हैं कि पिछले चार सालों में हमने बच्चों को साथ कई जगहों पर प्लांटेशन किया. बच्चों ने इसकी देख-रेख की जिम्मेदारी भी ली. इससे वे रेंसपॉसिवल होने के साथ-साथ प्रकृति से प्रेम करने लगते हैं. बच्चों के साथ उनके अभिभावकों भी इस मुहीम से जोड़ा गया जिससे जागरूकता के साथ-साथ पौधारोपण भी होता रहे.
– 21 सालों से गांवों और अपने आस-पास पौधे लगाने का कार्य कर रहें
कदमकुआं के रहने वाले रुपेश कुमार गणितज्ञ पिछले 21 सालों से गांवों और शहर में पौधारोपण का कार्य कर रहे हैं. शुरुआत में वे हर महीने 30 पौधे लगाने का लक्षय निर्धारित कर साल भर में 365 पौधे लगाया करते थे लेकिन कोरोना की वजह से इस लक्षय में थोड़ा अंतर आया है. बावजूद इसके इस साल उन्होंने तय किया है कि वे विश्व पर्यावरण दिवस से लेकर विश्व पृथ्वी दिवसके बीच आने वाले 66 दिनों में वे शहर के विभिन्न जगहों पर  366 पौधे लगायेंगे. वे आगे बताते हैं कि उनके दादाजी एक स्वतंत्रता सेनानी थे और गांव में वे अकसर फलदार पौधों को अलावा अन्यय पौधे लगाया करते थे. पौधे लगाने की प्रेरणा उनसे ही मिली. वे चाहते हैं कि जो लोग सक्षम है वे इस पौधारोपण में अपना योगदान और प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करें.
 अपने और अपने आने वाले के भविष्य के लिए कर रहें पौधारोपण
पटना सिटी के रहने वाले सुशील राणा बिहार पुलिस में सिपाही हैं. वे 12 साल की उम्र से पौधारोपण कर रहे हैं. पटना सिटी, पटना, गुजरात और बंगाल के कई जगहों पर उन्होंने पौधों को लगाया है. वे बताते हैं कि पौधा लगाना उनका शौख हैं और उन्होंने इसकी कभी गिनती नहीं की. बस अपना योगदान देते चले गये. ज्यादातर जगहों पर उन्होंने पीपल, बड़, गुल्लर, पाकर, नीम और महुआ(जो विलपुप्ति के कगार पर है) लगाया है. उनका कहना हैं जिस तरह से शहरीकरण बढ़ रहा है और पेड़ कम हो रहे हैं ऐसे में सभी लोगों को प्रकृति को बचाने की मुहीम से जुड़ना होगा जिसकी शुरुआत के अपने आस-पास पौधारोपण करने से कर सकते हैं. अपना और आने वाले भविष्य को सुरक्षित रखने के लिए पौधा लगाएं.

आज पर्यावरण में आये बदलाव की वजह से हम इस परिस्तथिति में हैं. पिछले दस साल में हमने पर्यावरण को जिस तरह से हानि पहुंचाया है इसकी भरपायी करने में 40 साल लगेंगे.इसलिए लोगों को समझना होगा कि जो लॉस हो गया है इससे सीखे और भविष्य को ध्यान में रखते हुए संरक्षण करें. संरक्षण में सबसे बड़ा योगदान पॉलिसी मेकिंग की होती है.वेटलैंड, जंगल, नदियां आदि का संरक्षण करना है तो सरकार को ऐसी पॉलिसी बनानी होगी जिसमें लंबे समय के इंपैक्ट के साथ ससटेनेबल डेवलपमेंट हो.  जिस तरह जनसंख्या बढ़ी है इसकी वजह से पलायन बढ़ा है जिसका सीधा असर रिसोर्सेस पर पड़ा है.  आज खेती और जल संरक्षण के जितने भी ट्रेडिशनल मेथड थे वे विलुप्त हो चुके हैं. उन्हें फिर से अपनाने की जरूत है.

डॉ समीर कुमार सिन्हा, उप निदेशक, वाइल्डलाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया
अभी के प्रेजेंट फेज में आप देख रहें हैं कि एयर क्वालिटी इंडेक्स  बड़ा अच्छा हो गया है. इसका कारण लॉकडाउन है. पिछले पांच साल में पटना के हवा में पार्टिकुलेट मैटर पीएम 10 , पीएम 2.5 का कंसनट्रेशन ज्यादा है. इसका कारण प्राइवेट और पब्लिक कंस्ट्रक्शन एक्टिविटी का तेजी से होना. इस दौरान रेत गाड़ियों और अन्य कारणों से हवा में मिल जाता  है. इसके साथ ही बायलेन और सड़क निर्माण में सिमेंट का इस्तेमाल होता है जो कुछ समय के बाद टूट जाता है इसका डस्ट पार्टिकल हवा में घुलता रहता है. जिस तरह से शहर में डेवलपमेंट का कार्य हुआ है इस दौरान कई पेड़ों को काटा गया है.सरकार के साथ पब्लिक पार्टिसिपेशन बेहद जरूरी है. नदिया तबतक जीवित है जब तक इसमें रेत है. गंगा नदी के किनारे अब दूर हो रहे हैं और उत्तर से आने वाली हवाएं अपने साथ नदी का रेत लेकर आती है. अगर हवा को शुद्ध रखना है तो दानापुर से लेकर फतुहा तक आपकों बड़े पैमाने पर प्लांटेशन की जरूरत है. इससे रेत जो शहर में आ रही है इसे पेड़ों के माध्यम से रोका जा सकता है जिससे नदियां जीवित रहेंगी.
डॉ प्रशांत, असिस्टेंट प्रोफेसर डिपार्टमेंट ऑफ एन्वार्यमेंट साइंस, सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ साउथ बिहार, गया

पर्यावरण को बेहतर बनाने में लोगों  की क्या भागीदारी हो?
तरुमित्र और पर्यावरण संरक्षण के  लिए काम करने वाली संस्थाओं ने इन बिंदुओं पर बल दिया है
– तीन आर- रीसाइकल, रीड्यूज और और रीयूज के कॉन्सेफ्ट पर कार्य करने की जरूरत है.
– कोविड 19 ने हमें उपयुक्त संसाधनों का इस्तेमाल करना सीखा दिया है. साधारण जीवशैली अपनाएं.
– बच्चों को बचपन से ही प्रकृति और उससे जुड़े आपदाओं के बारे में बताएं.
– शिक्षा में पर्यावरण से जुड़ा प्रैक्टिल वर्क शामिल होने चाहिए.
– शहरों के बच्चों को ग्रामीण परिवेश में टूर कराने की जररूत है क्योंकि यहां प्रकृति का जुड़ाव देखने को मिलेगा.
– वेस्ट मैनेटमेंट और ऑर्गेनिक खाद पर बल देने की जरूरत है.
– जैव विविधता बचाने की जरूरत है.
– प्राकृतिक बीजों के संरक्षण करने की जरूरत है.
– जितना हो सके पौधा लगाएं और पेड़ों को कटने से रोकें.
– सिर्फ एक दिन के बजाये साल में कई बार पौधारोपण करें
– इसके संरक्षण में अपना योगदान दें क्योंकि पौधे 6-8 सालों के बाद ही  उनकी जड़ें मजबूत होती है.
– रोड के साथ नाले का निर्माण करें साथ ही दोनों ओर पौधे और पेड़ लगाये
– पौधों में फलदार पेड़ जरूर लगाये इससे चिड़ियों का खाना और आसरा दोनों मिलेगा और बॉयोडायवर्सिटी में बैलेंस आयेगा.
– नदियों के संरक्षण के लिए बालू का खनन रोकना और तटों पर पौधा लगाना होगा.

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