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मासूमों की हत्या कब रुकेगी।

मासूमों की हत्या कब रुकेगी।

          राजस्थान के कोटा शहर के सरकारी अस्पताल में पिछले एक महीने में 100 से ज्यादा नवजात बच्चों की मौत हो गयी या इसको ये कहा जाए कि ये असमानता पर आधारित लुटेरी व्यवस्था उन बच्चों को खा गई या ये भी कहना गलत नही होगा कि इन बच्चों की हत्या इस असमानता पर आधारित व्यवस्था ने कर दी। 

राजस्थान में कॉग्रेस पार्टी सता में है। भाजपा विपक्ष में है वो इन मौतों के लिए कॉग्रेस सरकार को दोषी ठहरा रही है। इससे पहले उत्तर प्रदेश में सैंकड़ो बच्चों की मौत सुर्खियां बनी थी। उतर प्रदेश में भाजपा सत्ता में थी। वहाँ कॉग्रेस, सपा, बसपा सत्ताधारी भाजपा को दोषी ठहरा रही थी। भाजपा ने अपनी गर्दन बचाने के लिए ईमानदार और बच्चों को बचाने में एक बड़ी भूमिका निभाने वाले डॉ काफिल की गर्दन शिकंजे में दे कर अपना पल्ला छाड़ लिया। 

          गरीब मजदूर-किसान के बच्चों की हत्याओं का ये खूनी मंजर प्रत्येक राज्य में, राज्य और केंद्र सरकारों में हो रहा है। सत्ता में किसी भी पार्टी की सरकार हो। समाजवादी, बसपा, कॉग्रेस, भाजपा, तृणमूल, RJD, BJD या कोई दूसरी-तीसरी पार्टी हो हत्याओं का सिलसिला बराबर जारी रहता है। उस समय का मौजूदा विपक्ष जो चुप रहता है। लेकिन जब ऐसी घटनाएं मीडिया के कारण सामने आती है तो वो सत्ता में विराजमान पार्टी को जिम्मेदार ठहरा कर उसको सत्ता से बाहर करने व खुद की पार्टी को सत्ता में लाने की बात करता है। जब भविष्य में विपक्ष सत्ता में होता है और सत्ताधारी, विपक्ष बन जाता है। लेकिन स्वास्थ्य के हालात सुधरने की बजाए खराब ही होते जाते है। विपक्ष से सत्ता बने और सत्ता से विपक्ष बने दलों की भाषाएं भी बदल जाती है। जो कल तक विपक्ष में रहते हुए स्वास्थ्य पर बजट बढ़ाने, निजीकरण न करने, डॉ की संख्या बढ़ाने की बात करता था वो सत्ता में आते ही इसके विपरीत डॉ हटाने, निजीकरण करने, स्वास्थ्य बजट घटाने के काम में लग जाता हैं। 

 

          विश्व शक्ति व परमाणु शक्ति भारत में 2018 में नवजात या अलग-अलग  बीमारियों के कारण 8 लाख 80 हजार, प्रत्येक घण्टे 100 बच्चों की मौत हुई है। 

देश के अलग-अलग हिस्सों से खबरे आती रहती है। एम्बुलेंस न मिलने के कारण साइकिल पर गठड़ी में बांध कर शव ले जाता मजदूर, बीमार गरीब महिला को हॉस्पिटल प्रशासन ने जमीन पर ही खाना परोसा, हॉस्पिटल के बाहर महिला ने बच्चे को जन्म दिया, हॉस्पिटल में नवजात को सुहरो या कुतो ने नोचा, हॉस्पिटल के खिड़कियां, दरवाजे टूटे हुए। 

लेकिन ये खबरें बहुमत देशवासियों को विचलित नहीं करती हैं। अगर विचलित करती तो इन हत्याओं का सिलसिला कब का रुक चुका होता। जिनके घर से बच्चा मरा है या जिसको इस लुटेरी व्यवस्था ने मारा है उसका परिवार ही कुछ समय के लिए रोता बिलखता है। कुछ समय बाद वो परिवार फिर उसी भीड़ का हिस्सा बन जाता है। जो सुबह से शाम तक हिन्दू-मुस्लिम या पाकिस्तान-कश्मीर करती रहती है। 

भारत में स्वास्थ्य सेवाओ के क्या हालात है इसका अंदाजा इन मौतों से लगाया जा सकता है। स्वास्थ्य पर GDP का खर्च 6% होना चाहिए लेकिन हो रहा 1% के आस-पास है। जो पाकिस्तान और बंग्लादेश से भी कम है। 

कोटा अस्पताल का ही निरीक्षण किया गया तो वहां 

 

 

 

 

          कोटा के इस अस्पताल में 174 बैड है। ICU गाईडलाइन के अनुसार कोटा के इस अस्पताल में 60 डॉक्टर और 300 नर्स होनी चाहिए लेकिन है सिर्फ 7 डॉक्टर 12 नर्स

ये इतने बुरे हालात क्यो बने हुए है इसके पीछे क्या कारण है।

          लोकतंत्र लोगों द्वारा चुनी हुई सरकार जो लोगों के प्रति जवाबदेह होती है। लोकतंत्र जिसमे सत्ता, लोगों और संसाधनों से इकठ्ठा हुए पैसों को जनता की मूलभूत जरूरतों पर खर्च करती है। शिक्षा-स्वास्थ्य-पानी को इंसान की मूलभूत और प्राथमिक जरूरतों में शामिल किया गया। सरकार ने शिक्षा-स्वास्थ्य-पानी फ्री देने का फैसला किया। इसके लिए आम जनता ने इसके लिए संसाधन इकठ्ठे किये। किसी ने जमीन दी, किसी ने ईंट, बजरी, रोड़ी तो किसी ने फ्री में मजदूरी करके अपना योगदान दिया। देश के आवाम के प्रयासों से स्कूल, कालेज, अस्पताल, जल घर इन सब का ढांचा पूरे देश में खड़ा हुआ। सरकार ने मशीन और कर्मचारियों का प्रबंध किया। सब कुछ सही दिशा में चल रहा था। लेकिन जैसे ही देश-विदेश के पुंजिपतियो ने शिक्षा-स्वाथ्य-पानी के क्षेत्र में जनता को लूटने के लिए कदम रखा। उसी दिन से सरकारी तंत्र इन तीनो जगह चरमराता चला गया। कार्पोरेट लॉबी ने अपनी दुकान को चलाने के लिए इन संसधानों को सरकार के साथ मिली-भगत करके बर्बाद कर दिया। हमारे पूर्वजों द्वारा कड़ी मेहनत से बनाये गए इन संसधानों को और ज्यादा मजबूत करने की जिम्मेदारी हमने जिन नेताओ को दी उन्होंने आम जनता से गद्दारी करते हुए, कार्पोरेट से दलाली खा कर उनसे हाथ मिला लिया। धीरे-धीरे जनता के इन संस्थानों को निजी मालिको को नमक के भाव दिया जाने लगा।  

लेकिन सवाल यहां ये उठता है कि जनता इस लूट के खिलाफ चुप क्यों है

जिस मुल्क में एक साल में 8 लाख 80 हजार बच्चों की मौत हो जाती हो। 

जिस मुल्क में एम्बुलेंस न मिलने के कारण मृत व्यक्ति की लाश को साइकिल पर बांधकर ले जाया जाता हो। 

          जिस मुल्क में अस्पताल में सुअर अंदर घुस कर नवजात बच्चों, बुजर्गो को खा जाते हो। अस्पताल में बैड की जगह बैड और दरवाजे-खिडकियों की जगह दरवाजे खिडकियां न हो। 

डॉक्टर नर्स नाम मात्र हो और जो हो वो भी बहुमत में निजी अस्पतालों की गुलामी करते हो। उनका व्यवहार भी जनता के प्रति सही न होकर जालिम वाला हो।

उस मुल्क में अमन-चैन कैसे रह सकता है। दिवाली, होली, ईद, क्रिसमस डे, नया साल कैसे मनाया जा सकता है। लेकिन यहाँ तो ये सब ऐसे मनाया जा रहा है जैसे यहाँ पिछले 100 सालों में कोई बच्चा मरा ही न हो। जैसे दुनियां का सबसे खुशहाल मुल्क हमारा हिन्दुस्तान ही हो। 

 

क्या आवाम सच में खुश है।

          संसद जिसका मुख्य काम मुल्क को जन कल्याणकारी राज्य को मजबूत करना था। आवाम की मूलभूत जरूरतों को पूरा करना था।  

लेकिन हमारी संसद दहाड़ रही है पाकिस्तान को मिटा देंगे। जनता ताली बजा रही है।

संसद जिसने जनता द्वारा सरकार के खजाने में इकठ्ठे किये रुपये में से जनता के लिए रोटी-कपड़ा-मकान-शिक्षा-स्वास्थ्य-पानी पर खर्च करना था। लेकिन सरकार उस रुपये से मानव को खत्म करने वाले हथियार खरीद रही है। जनता सरकार के इस फैसले पर जयकारा लगा कर खुशी का उदघोष कर रही है। 

हर-हर मोदी, घर-घर मोदी।

          जो सबसे ज्यादा पीड़ित समाज है आदिवासी, दलित, पिछड़ा और मुस्लिम जिसको सरकारी अस्पताल की सबसे ज्यादा जरूरत रहती है। उसको अपने पूर्वजों द्वारा संचित की गई इस सम्पति को बचाने के लिए और अपने व अपनी आने वाली नश्लो के बेहतर भविष्य के लिए इकठ्ठा होकर लड़ना चाहिये ताकि अस्पतालों में हो रही इन हत्याओं को रोका जा सके। 

लेकिन उम्मीद की चिंगारी कहीं भी नही दिख रही हैं। आदिवासी जरूर इन सबके लिए आवाज बुलंद करता आ रहा है लेकिन उसको सरकार माओवादी कह कर जेल में डाल देती है या झूठी मुठभेड़ में मार दे रही है।  

          मुल्क का दलित जो बहुमत मजदूर है। राजनीतिक तौर पर दलित नेताओ का मानसिक गुलाम बना हुआ है। वो शिक्षा-स्वास्थ्य, रोटी-कपड़ा-मकान, मेहनत का पूरा दाम इन सब मुद्दों पर एकजुट होकर लड़ने की बजाए। उसकी लड़ाई सामाजिक मुद्दों तक सीमित होकर रह गयी है, उनका दलित नेता या नेत्री कोट-पैंट पहन ले ये ही उनके लिए बहुत बड़ी खुशी है, दलित महापुरूषो के स्टेचू बनाये जा रहे इसी बात पर गर्व करके खुशी मनाता रहता है। ऐसा ही कुछ हाल पिछड़ी जातियों और मुस्लिमो का है। 

चुनाव में जन मुद्दों पर न नेता कुछ बोलते है न जनता मांग करती है की नेता कुछ बोले

 

अब जैसा बोवोगे, वैसा ही तो काटोगे। 

          जब आपके द्वारा अपने प्रतिनिधि को चुनते हुए उसकी जिम्मेदारी ही तय नही की गयी कि वो उस पद पर जाकर आपके लिए क्या काम करेगा या क्या नही करेगा। अगर आपने चुनाव में मंदिर-मस्जिद, पाकिस्तान, कश्मीर, पुलवामा पर चर्चा करने की बजाए शिक्षा-स्वास्थ्य मांगा होता, पानी-बिजली मांगी होती तो आज हालात इतने अमानवीय नही होते। ऐसे सैंकड़ो बच्चो की मौते नही होती। उन बच्चों को एक नई दुनिया देखने का अवसर मिलता। इन बच्चों की मौत में जाने-अनजाने आप सब भी शामिल है। इन मासूमो की हत्या का सिलसिला तब तक नही रुकने वाला, जब तक मेहनतकश आवाम इन हत्याओं को रोकने के लिए इकठ्ठा होकर हत्यारो को कटघरे में खड़ा नही करता। जिस दिन इकठ्ठा हुआ उसी दिन से मुल्क अंधरे से उजाले की ओर चल पड़ेगा।

Uday Che

 

 

 

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