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राहुल कि युवा टीम क्यों छोड़ रही है कांग्रेस का हाथ..

 

भारत की राजनीति में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस बहुत ही अहमियत रखने वाली राजनीतिक पार्टी है।

इस राजनीतिक पार्टी से सबसे ज्यादा व्यक्ति देश के प्रधानमंत्री बन चुके हैं। अपने राजनीतिक जीवन में इस पार्टी ने बहुत सारे उतार और चढ़ाव भी देखे हैं।

पंडित जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी,राजीव गांधी यह सारे लोग एक ही परिवार के और इस देश के आधुनिकीकरण के लिए अपने कठोर निर्णय क्षमता के लिए जाने जाते हैं। यह बात भी सच है कि इस परिवार के साथ जुड़े रहना और इन लोगों का विश्वास हासिल करना आसान बात नहीं है राजीव जी के देहांत के बाद सोनिया गांधी जी ने राजनीति में किसी भी पद पर काम करने से इंकार कर दिया और मनमोहन सिंह की सरकार पुरे दो बार सत्ता में रही दोनों ही बार राहुल गांधी युवराज और कांग्रेस के प्रधानमंत्री पद के प्रमुख दावेदार बताए गए। लेकिन उन्होंने किसी भी तरीके से मंत्री पद पर केंद्र में काम करने से इंकार कर दिया और अपने आपको संगठन में काम करने के लिए व्यस्त बनाकर रखा। एक ऐसा भी दौर आया जिसमें राहुल गांधी युवा बनाम पार्टी के सभी बुजुर्ग नेता इसमें विचारधारा में दरार एवं आपसी तालमेल में कमी ऐसी बातें भी मीडिया में सुर्खियों में रही। 

 

किसको कब क्या मिला

 

राहुल गांधी ने अपने कार्यकाल के शुरुआती दौर में कुछ कांग्रेस परिवार के साथ साथ गांधी परिवार की पूर्वी लोगों के साथ जिनकी वफादारी और संगठन एवं विभिन्न पदों पर काम करने वाले वरिष्ठ व्यक्तियों के घर से आने वाले जितनी भी युवा साथी है उनके साथ अपने आपको जोड़ लिया। भारतीय राष्ट्रीय विद्यार्थी कांग्रेस, युवा कांग्रेस और संगठनों में उन्हें विभिन्न पदों पर काम करने की अहम जिम्मेदारी दी गई। उनके साथ रहकर राहुल गांधी ने अपनी छवि भी बनाने की कोशिश की। यह राहुल गांधी का अपना खुद का प्लान था और इस प्लान के मुताबिक उन्हें काम करने में दिलचस्पी भी होती थी संघर्ष के साथी जब सत्ता में आते हैं तब सत्ता का लाभ सभी सभी को मिलता है यह बात भी उतनी ही सच है। जैसे ही वाजपेई सरकार चली गई और मनमोहन सिंह की सरकार आई तब राहुल गांधी के यही साथी लोगों को मनमोहन सिंह के सरकार में अलग अलग राज्य मंत्रालय एवं महत्वपूर्ण मंत्रालयों की जिम्मेदारी जानबूझकर दी गई और यह दिखाने की कोशिश की गई कि आने वाले समय में जब देश के प्रधानमंत्री राहुल गांधी जी बनेंगे तब यह उनकी पूरी टीम पूरे दमखम से देश को चलाएगी। उनमें से बहुत बड़े पूंजीपति घरानों से आए हुए कुछ चंद गिने-चुने नाम जिनको पहले से ही राजनीति में महारत हासिल थी ऐसे लोगों को कांग्रेस का चेहरा बनाने की कोशिश सही मायने में चल रही थी। ऐसे लोगों को संगठन के साथ-साथ लोकसभा राज्यसभा और अलग-अलग राज्यों में प्रभारी बनकर एवं राहुल जी का सबसे वफादार सीफे सालार बनकर काम करने के लिए जिम्मा दिया गया और वह उसमें खरे भी उतरे जिन लोगों की उम्र बहुत ही कम थी ऐसे लोगों को भी बुजुर्ग एवं तजुर्बे कार लोगों के समकक्ष लाकर खड़ा कर दिया गया। बहुत लोगों का ऐसा मानना है कि जिनका तजुर्बा 30-30 सालों का है उनके सामने सिर्फ 30 साल के उम्र वाले नौजवान को बहुत बड़ी जिम्मेदारी देने की भूल राहुल गांधी जी ने की हैं। 

 

क्या होनी चाहिए थी रणनीति कहां हुई चूक।

 

कॉन्ग्रेस एक राजनीतिक पार्टी होने के बावजूद पार्टी में राजनीति यह सबसे बड़ा खेल कांग्रेस के अंदर चलता है जिस राजनेता का जितना ज्यादा कद बड़ा है उतनी ही उसकी पार्टी के अंदर राजनीति करने की ताकत बढ़ी है यह बात कांग्रेस के लिए सबसे घातक और अपने आप में खुद को खत्म करने वाली है।

देश के स्वतंत्रता संग्राम में कांग्रेस का योगदान सबसे बड़ा रहा है लेकिन उसके बाद जब कांग्रेस सत्ता में आई तब से लेकर आज तक कांग्रेस को हर बार एक विशिष्ट विचारधारा वाले लोग चलाते थे और इस विचारधारा वाले लोगों का एक बहुत बड़ा गुट कांग्रेस में आलाकमान को संभालने का भी काम करता था।

बहुत बार चर्चा ऐसी भी होती है कि किसी एक विशिष्ट जाति समुदाय के लोगों के द्वारा कांग्रेस चलाई जा रही है जो कि अपने खुद की विचारधारा को जब तक बहुत ताकतवर बना कर कांग्रेस को ही पर्याय देने वाली पार्टी खड़ी नहीं करते तब तक वह कांग्रेस में काम करते रहे और जब भाजपा का जन्म हुआ और कांग्रेस में रहने वाले भाजपा की विचारधारा वाले लोग कांग्रेस को अकेला छोड़ कर अपनी विचारधारा और अपने आलाकमान को ताकतवर बनाने के लिए कांग्रेस को कमजोर कर कर बाहर निकलने लगे तब भी कांग्रेस को समझ में नहीं आ रहा है कि कौन अपना है और कौन पराया है।

अपने आप को सेक्युलर बनाने की और दिखाने के चक्कर में कांग्रेस कभी दलित तो कभी मुसलमान को अपने सिर पर चढ़ाकर बिठाती है ऐसे आरोप भी बार-बार लगते रहे और कांग्रेसका बहुत बड़ा वोट बैंक भी इसी 2 जाति से आता है यह भी साबित होता रहा है लेकिन जो अपने आप को आर एस एस विचारधारा को सबल और संगठित करने में लगे हुए कांग्रेस की ही अंदर के लोगों ने यह विचारधारा और यह भ्रम फैलाने का बहुत बड़ा काम भी कांग्रेसमें रहते किया है।

अलग-अलग दौर में अलग-अलग लोगों को युवा कहकर देश के आने वाले समय के लिए तैयार करने में कांग्रेस के लोगों को कभी भी दिलचस्पी और नए लोगों को मौका देकर उनको बढ़ाना हर जाति हर वर्ग के लोगों को संगठन से जोड़कर उसको नेता बनाना यह काम कभी भी कांग्रेस ने नहीं किया। जो जितने बड़े-बड़े घर से आता है उसको ही कांग्रेस के बड़े बड़े लोगों ने पारिवारिक कांग्रेस बना दिया।

हर राज्य में एक परिवार और हर परिवार का एक राज्य इस तरीके का ढांचा कांग्रेसमें बन गया था यह भी बात सामने आई कि अगर राज्य में सताती है तो उस परिवार से कोई मुख्यमंत्री नहीं बनता है तो वह कांग्रेस को तोड़कर अपने खुद के दम पर वहां सत्ता हासिल करने का दावा कांग्रेस आलाकमान को ही करता था।

हर जगह ऐसे ही बगावत कर क्षेत्रीय पार्टियां बनाकर कांग्रेस को राष्ट्रीय पार्टी होते हुए भी हर क्षेत्रीय छोटे-छोटे बिखरे हुए पार्टियों के सामने घुटने टेकने की नौबत कांग्रेस में ही पले बढ़े परिवारों के लोगों ने की है।

 

क्यों छोड़ रहे हैं हाथ का साथ।

कांग्रेस के हर एक दौर में कांग्रेस के ही दम पर कांग्रेस के साथ रहकर गांधी परिवार का संपूर्ण विश्वास संपादन कर अपने आप की छवि बनाना और उसके बाद कांग्रेस को छोड़ देना यह बात कांग्रेस के लिए नहीं नहीं है।

संगठन में कहीं ऐसे मौके आए हैं जब संगठन का कोई एक विशिष्ट व्यक्ति पूरे संगठन पर भारी पड़ जाता था। इसके आने को उदाहरण इतिहास में झांक कर देखे तो हमें मिलते हैं। लेकिन वह दौर और था यह दौर और है। तब भी जातिवाद था आज भी जातिवाद है और कल भी जातिवाद रहेगा। यह समझने में कांग्रेस हर बार चूक करती है।

 

क्या हो आगे की रणनीति।

 

कांग्रेस की रणनीति पूरे देश में एक जैसी होनी चाहिए। हर क्षेत्र हर राज्य की हिसाब से अलग-अलग जगहों पर अलग अलग तरीके के लोगों को इस्तेमाल करना और हर एक समाज हर एक वर्ग की व्यक्ति को ऐसा लगना चाहिए कि मैं जिसके साथ जुड़ा हूं उसमें मेरे भी समाज का एक व्यक्ति सर्वोच्च पद धारण करने व्यक्ति के बहुत ही करीब है और वह गरीब एवं मेरे समाज से आता है ना की किसी अमीर के घर पैदा हुआ और आसमान से टिकट लेकर गिरा है।

सबसे गंभीर बात यह सामने आई है कि जब राहुल गांधी जी ने कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में इस्तीफा देकर जिम्मेदारी छोड़ दी थी तब उनके साथ राष्ट्रीय एवं राज्य स्तर पर किसी ने भी कांग्रेसमें में अपना पद नहीं छोड़ा था और आखिर में राहुल गांधी ने पार्टी की मीटिंग लेकर उन्हे कहा कि मैंने इस्तीफा दे दिया है आप भी अपने अपने पद खाली कर दीजिए यहां पर नए लोगों को युवाओं को काम करने का मौका दीजिए तब भी पदों पर बैठे लोगों ने अपनी कुर्सियां नहीं छोड़ी थी यह बात भी उतनी ही सच है। ऐसे हालात में संगठन में पदों पर कोई भी किसी भी तरह का काम न करते हुए सालों साल बैठे रहना इसमें बदलाव आना चाहिए हर किसी को 2 या 3 साल ज्यादा एक पद पर रहने अधिकार नहीं होना चाहिए।

बहुत बार ऐसा देखा गया है कि जब जब कांग्रेस सत्ता में आई है तब तब कांग्रेस ना कि अपने राजनीतिक वजूद के कारण सत्ता में आई है बल्कि कांग्रेस की लहर आई थी देश आजाद होने के बाद आजादी के लहर में पंडित जवाहरलाल नेहरू, पंडित जवाहरलाल नेहरू के गुजर जाने के बाद उनकी लहर में इंदिरा गांधी, इंदिरा गांधी के हत्या के बाद पैदा हुई लहर में राजीव गांधी, राजीव गांधी जी के हत्या के बाद उस लहर में कांग्रेस जीत कर आई यह हर बार देखा गया है। एक राजनीतिक पार्टी किसी एक लहर के सहारे खुद को ज्यादा दिनों तक संजो कर नहीं रख सकती। और यह भी उतना ही सही है कि बार-बार लहरें आने की संभावना भी बहुत कम रहती है। इसलिए कड़े संघर्ष और भविष्य की पूरी जानकारी लेने वाली टीम बनाकर एक चुनाव जैसे ही खत्म होता है तो दूसरे चुनाव की तैयारियां तुरंत शुरू की जाए और उस में जीत हासिल करने की 100% क्षमता वाले लोगों को उसके जिम्मेदारी दी जाए तभी सत्ता में बने रहने का कार्य हो सकता है।

 

 

हाथ का साथ छोड़ने वालें कौन है..?

हाथ का साथ छोड़ने वाली यह वह लोग हैं जिनको कांग्रेस के आलाकमान के नजदीक होने का सबसे ज्यादा कम उम्र में फायदा हुआ है ऐसे लोग ही कांग्रेस का दामन छोड़ रहे हैं।

जब जब कांग्रेस सत्ता में नहीं रहती है तब तक यह लोग कांग्रेस में रहकर भी कुछ नहीं करते थे। सिर्फ सत्ता में होते हुए ही अपने आप की मौजूदगी और आलाकमान से वफादारी साबित कर पदों पर विराजमान हो ना जिनके खून में था वह लोग हाथ का साथ छोड़ रहे।

पूरी उम्र अपने आप को सेकुलर बताने वाले बड़े बड़े घरों में पले और ऊंचे ऊंचे महलों में रहने वाले अपने आप को कांग्रेसी कहने वाले जब हाथ का साथ छोड़ रहे हैं तब वह कह रहे हैं कि मेरे ऊपर अन्याय हो रहा था। हालांकि यह बात बिल्कुल ही सच नहीं है कि किसी के ऊपर अन्याय हो रहा था जबकि उसके साथ ही न्याय किया गया था लेकिन उसकी सत्ता की लालच और उसके खुद बहुत बड़ा जातिवादी होने के कारण वह हाथ का साथ छोड़ रहा है। कांग्रेस पार्टी का भविष्य और नेतृत्व के अभाव के कारण भी हाथ का साथ छोड़ने में युवा देर नहीं लगा रहे हैं। संगठन में राजनीतिक सूज भुज और काम करने की तैयारी अगर आलाकमान की ही नहीं है तो हमारा भविष्य क्या होगा यह सोचकर जाति के नाम, पर धर्म के नाम पर अपने आप को ढालकर सेक्यूलर से कम्युनल इमेज बनाकर अपना वोट बैंक बचाकर रखने में कामयाब होने की कोशिश जारी है इसलिए हाथ का साथ छोड़ रहे हैं। 

बहुत से ऐसे लोग हैं जिनके बहुत बड़े-बड़े कारोबार है और वह कारोबार बरकरार और बचा कर रखने के लिए भी हाथ का साथ छोड़ा जा रहा है। यह वही लोग हैं जब कांग्रेस सत्ता में थी तब अपने आप के कारोबारियों को बड़ा बनाने में अपने पद का इस्तेमाल करते थे।

 

हाथ का साथ छोड़ बीजेपी का दामन क्यों पकड़ते हैं युवा

बीजेपी एक राजनीतिक ऐसी पार्टी बन गई है जो कांग्रेस के आलाकमान के नजदीक रहने वाले सभी युवाओं को अलग अलग तरीके से लालच देकर उनके भविष्य का प्लेन बताकर उनको अपने सपने साकार करने के लिए हर मुमकिन कोशिश सिर्फ बीजेपी ही कर सकती है इस बात का एहसास दिला कर साथ ही साथ उनका राजनीति का सफर कैसे तय किया जाए इसके बारे में उनको साम,दाम,दंड,भेद,जातिवाद,धर्म और इसी तरह के बहुत से लालच देकर अपनाती है इसीलिए युवा भाजपा की तरफ सिर्फ सत्ता के लिए आकर्षित हो रहे हैं। लेकिन एक बात यह जरूर समझनी चाहिए कि जिस दिन भाजपा की सत्ता से विदाई होगी उस दिन यही हाथ का साथ छोड़ने वाले हर एक युवा अपने आपको मैं जन्म से ही कांग्रेसी हूं और मैं अब घर वापसी करने वाला हूं ऐसा कहकर कांग्रेस की सत्ता जब आएगी या आने के आसार नजर आएगी तब यह भाजपा का दामन छोड़ कांग्रेस में शामिल जरूर होगी और कांग्रेस भी इनको शायद उस समय अपने ही घर मैं फिर से शरण दे।

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