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वो क्या चाहते हैं?

वो हमें तोड़ना चाहते हैं,
वो हमें बाटना चाहते हैं,
वो हमें झुकाना चाहते हैं,
वो हमसे हमारा घर हमारा देश हमारी आज़ादी छीनना चाहते हैं।

वो हमें अपने पाव तले रौंदना चाहते हैं,
वो हमें नफ़रत की आग में जलाना चाहते हैं,
वो हमें दंगो के ख़ून में बहाना चाहते हैं,
वो हमसे हमारा घर हमारा देश हमारी आज़ादी छीनना चाहते हैं।

वो हक के लिए उठने वाली हर आवाज़ को ज़िंदान में दबा देना चाहते हैं,
वो इंसाफ के लिए उठने वाले हर क़दम को रोक देना चाहते हैं,
वो इंकलाब लिखने वाली हर कलम को तोड़ देना चाहते हैं,
वो हमसे हमारा घर हमारा देश हमारी आज़ादी छीनना चाहते हैं।

वो चाहते हैं कि अगर हम जिये तो
सिर झुका कर जीये,
ग़ुलाम बन कर जीये,
होठ सिल कर जीये,
और हम ये होने नहीं देंगे।।

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