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वो लड़की और एक सामूहिक शर्म की रिवायत

उस तीस साल की लड़की ने मेरी मां से कहा ,बड़े हक से कि वो उनसे चिपक के सोएगी ।उनके हाथों की बनी कचौरी जिसे वो पिछले बार नहीं खा पाई थी , वो खाएगी -जब वो आएगी इस रविवार । मेरे और मेरी बहन की आंखों में आंसू डबडबा आए । फिर मम्मी के प्यार से यह पूछने पर कि बच्चे और क्या क्या खाएगी तू, तो वो कहने लगी नहीं बस आपके साथ दिल हल्का करना है । मम्मी ने कहा ,बेटा तू बस खुश होकर जाना यहां से ।  वो हमारे यहां सिर्फ एक बार आई है ,अपनी दुधमुंही बच्ची और पति और सास के साथ । उस एक बार में वो हमसे और हम उससे और उस के  प्यारे दिल से लगाव महसूस करने लगे थे । वो है ही इतनी प्यारी । डेढ़ महीने पहले उसने अपनी पूरी दुनिया याने मां  को खो  दिया कोरोना से ।पिता के जाने के बाद वो और उसकी पच्चीस साल की बहन ही तो उसकी दुनिया थी. और वो मां जो पहले से मानसिक रूप से बीमार थीं पिता की मौत के बाद । बहन डायबिटीज़ की मरीज़  और बमुश्किल कोरोना से बचकर निकली लड़की है , जिसके घर में अब सिर्फ तन्हाईयां बाकी हैं ।  

 मुझे लगा हम अपनी ही मां के साथ चिपक के सोने को कभी वैल्यू नहीं करते क्योंकि हम उनके साथ होते हैं । पर इन दोनों लड़कियों का इस भरे पूरे संसार में अपना कहने को हमारी मां और हक से हमारे घर आकर एक दिन बिताने को कहते देख मन आंसू के साथ बहने लगा । 

उसकी शादी एक ऐसे आदमी से हुई है जो कहने को तो डिप्टी कलेक्टर है पर 10 साल पहले टूटी शादी के बाद हुई दूसरी शादी के बाद  भी अपनी पत्नी को इंसान नहीं समझता , उसपर हाथ उठाता है । जिस 74 साल की सास  को मां बनकर प्यार देना था वो निर्मम होकर उसे ताने देती है , पति के अत्याचार में अपने बेटे का साथ देती है । बिटिया के जन्म के चार दिन बाद कहती है बस बेटा हो जाए भले ही अपनी बहू का गर्भावस्था के समय रत्ती भर ध्यान ना रखा हो ।  मायके भी  नहीं जाने देती थी जब कहने को मायका तो था ,अब तो वो भी नहीं बचा । बहन का  ऑक्सीजन सिलेंडर हटाए और मां को जलाए हफ्ता  भी नहीं हुआ था कि इस लड़की के पति और सास  ने उसकी बहन की  शादी की बात करना शुरू कर दी । और बीमारी में उसे ज़बरदस्ती उसके  वीरान मायके में भिजवा दिया । अगर खुदा और भगवान की इस दुनिया में कर्मफल है तो ऐसे लोगों को इसका फल क्यूं नहीं मिलता ? 

पिछली बार जिस लड़की की ज़िंदगी खराब हुई ,वो आज खुश है अपनी ज़िन्दगी में, एक सफल डेंटिस्ट बनकर , एक बेहद प्यार करने वाले  नए जीवनसाथी के साथ ।कई   साल कोर्ट के चक्कर और रो रोकर भीगी पलकों के साथ बिताई रातों के बाद , तलाकशुदा के टैग के साथ जीने के बाद । पर इस तीस साल की लड़की और इसकी नन्ही बिटिया को इन  लोगों के इर्द गिर्द रहकर कैसा महसूस होता होगा ? वो एक छोटी सी नौकरी करती है ,  सब समझती है , पर दिल बांटने को कोई नहीं है । कभी कभी सोचती हूं , काश रिश्तों से परे हम सही गलत के गणित को दिल से सोच पाते।

काश ऐसे तमाम लोगों को कोई लड़की मजबूर होकर नहीं चुनती, पद से प्रभावित होकर या एक सुखद भविष्य की कल्पना नहीं करती , काश ऐसी सासों को भगवान यूं ही बुढ़ापा अकेले भुगतना देता । काश लड़कियों के माता पिता  बेटियों को ये आज़ादी देते कि वो इस घरेलू हिंसा और मानसिक दिवालियेपन को नहीं सहेंगी । काश लड़कियों को पैतृक संपत्ति में उनका हिस्सा मिलता , या वो ज़्यादा से ज़्यादा आर्थिक और मानसिक रूप से आत्मनिर्भर होती । काश मैं रिश्तों से परे जाकर ,सिर्फ विचलित होकर लेख लिख देने से ज़्यादा चुपके से उस तीस साल की लड़की का आर्थिक और वास्तविक  साथ दे पाती । काश सही गलत की सीमाओं से  ऐसे  रिश्तों की सीमाएं  तोड़ दी जा सकतीं। दूर से मैं उसे गले लगाने और साथ का भरोसा दिलाने की कोशिश कर सकती हूं । मेरी हमउम्र ही तो है वो । क्या ये और तमाम लड़कियों के साथ होने वाला काला सच नहीं है ?

उस तीस साल की और पच्चीस साल की बीमार  लड़की को इन पद ,पैसे और परवरिश के घटिया ‘प्रॉडक्ट्स’ के परिणाम को फिर भुगतना नहीं पड़ता । घरेलू हिंसा एक अपराध है पर उससे ज़्यादा ये एक औरत जो सास बनती है उसकी नाकामी है  । पति जो बराबरी का छोड़िए ,  इंसानियत का रिश्ता भी ना निभाए और एक समाज जो मजबूर होकर ऐसे लोगों का बॉयकॉट नहीं कर पाता । सबकी सामूहिक शर्म की रिवायत है । 

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