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हैपी होली भाई साहब…..

कुछ दिनो पहले शाम को बस स्टाप पर बस का इंतेज़ार कर रहा था। कोरोना के वजह से बसों में संतुलन बनाए रखने हेतु, मिनटों पहले गुजरी दो बसों से रिजेक्ट होने के कारण काफ़ी फ़्रस्ट्रेटेड था। तभी मेरे सामने आकर एक ऑटो रुक गया। ऑटो वाला चिल्ला रहा था “ तगरी कानपुर, तगरी कानपुर…….” उसे सुनते ही मेरे दिमाग़ में जो पहला सवाल आया वो था कि जिस सहर का प्रमुख भोजन ‘गुटखा’ हो वहाँ की जनता कब से इतनी तगरी हो गयी। और दूसरा ये की जिस समय में पेट्रोल का भाव आइ.ए.एस बने लड़के के दहेजिया भाव से भी ज़्यादा बढ़ चुका है उस समय में ये ऑटोवाला कानपुर तक सवारी ढ़ोने की हिम्मत कैसे कर पा रहा है। मुझे संदेह हुआ, मैंने उसके लपलपाते होठों पर गौर किया और फिर गौर से सुनने की कोसिस की, फिर उसके मुख से निकले अव्यवस्थित ध्वनि तरंगों को प्रॉसेस किया, और फिर जाकर जो चीज़ सामने आयी वो थी “तिग्री, खानपुर, खानपुर, तिग्री……”।ये दोनो इलाक़े हैं तो दिल्ली में ही स्थित पर मिज़ोरम से भी ज़्यादा जनसंख्या को कोंचने की हैसियत रखते हैं। 

इतने में ऑटो से एक हटा-कट्टा युवक निकला। उसने बिना नीचे ज़मीन पर देखते हुए, अपना 15 के.जी का पैर वहाँ रख दिया, पैर के साथ-साथ उसके सरीर के शेष 80 के.जी का भार भी उसी स्थान पर केंद्रित हो गया। बदक़िस्मती से उसके पैरों और ज़मीन के बीच मेरा पैर वैस ही फँस गया था जैसे क्रूर और कपटी नेताओं के बीच फँस गए बेचारे राहुल गांधी।

पैर टमाटर के तरह पिचकने ही वाला था की मैंने प्रतिरोध किया “ भाई साहेब! तोड़ दोगे क्या?”। निफिक्र अन्दाज़ में जनाब ने जवाब दिया “ अरे भई टूटा तो नहीं न! टूट जाता तब कोई बात होती” 

मैंने खीज कर कहा “ अजीब बदतमीज़ आदमी हो यार! तोड़ देते तभी चैन मिलता तुम्हें?” 

उसने माहौल को ठंढा करने की कोशिश की “ सारी भाई साहेब !” 

मेरा ग़ुस्सा चरम पर था। मैंने फ़्रस्ट्रेशन मिश्रित ग़ुस्से के साथ कहा “ क्या सारी यार! पहले पैर तोड़ दो फिर सारी बोल दो, मेरा पैर है किसी फ़िल्मी बॉलीवुड गाने वाला दिल नहीं है जो फ़िल्म के बीच में टूट कर तुरंत जुड़ भी जाए”। 

मैं पत्थर से चोट खाए हुए भौंकते कुत्ते सा बड़बड़ा रहा था और वो ‘कुत्ता भौंके हज़ार, हाथी चले बाज़ार’ वाले सिद्धांत से जिस ऑटो से उतारा था वापिस उसी में बैठ गया। ऑटो चलने ही वाला था की उसने ज़ोर से कहा “ हैपी होली भाई साहब ”। 

मैं बड़बड़ा रहा था पर उसके इस वाक्य ने मेरे चेहरे पर मंद-मंद मुस्कान ला दी। मैं समझ नहीं पाया क्या हुआ, पर जैसे ही ऑटो थोड़ा आगे बढ़ा मैंने मुस्कुराते हुए कहा “ हैपी होली भाई ”। 

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