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कोरोना वायरस की मन की बात को जानने का मौका ना चूकें (व्यंग्य)

कोरोना वायरस की मन की बात को जानने का मौका ना चूकें (व्यंग्य)

हैंड्स बिहाइंड माइ सक्सेस: स्पीच बाइ कोरोना

फर्स्ट,

‘आई वुड लाइक टू थैंक्स मोदी जी एंड हिज एंटायर मंत्रिज फॉर ए वार्म वेलकम इन इंडिया’ जब पूरी दुनिया हमें यहां-वहां जाने से रोक रही थी, तब मोदी जी ने ही हमारे लिए एयर इंडिया और एयर फोर्स के जहाजों की व्यवस्था की थी, जिससे बस कुछ ही समय मे हम पंद्रह लाख “ह्यूमन कंटेनर” के सहारे भारत की धरती पर आ पहुंचे। चीन की तरह यहां हमारे “ह्यूमन होस्ट” को रोका-टोका नहीं गया। यहां हमें भारत भ्रमण की पूरी आज़ादी दी गई। 

इस उपलब्धि के लिए हम अपने अमीर “ह्यूमन होस्ट” के भी शुक्रगुज़ार हैं, जिन्होंने भारत लौटने के बाद घर में शांति से बैठने और कोरोना ट्रैवेल प्रोटोकॉल (क्वारेन्टीन) जैसे कोरोना-विरोधी नियमों एवं बातों की फिक्र किए बिना पूरे देश मे घूमते-फिरते रहे, शॉपिंग मॉल गए, बाज़ारों में तफरी की, बेधड़क लोगों से मिलना जुलना, पब-डिस्को में खूब सारी पार्टियां करते रहे। 

ऐसी ही एक पार्टी के कारण हमें प्रेसिडेंट हाउस में प्रेसिडेंट के साथ ब्रेकफास्ट करने का गौरव भी प्राप्त हुआ, जिसके बाद हम लाइम लाइट में आ गए। मीडिया में हमें प्राइम टाइम स्लॉट मिला, फिर पूरा स्लॉट यानी के दिन-रात हमारी ही बातें होने लगीं। हम रातों-रात फेमस हो गए।

मोदी जी और हमारे एलीट दोस्तों के सहयोग के बिना हमें इतनी ख्याति प्राप्त करना मुमकिन नहीं था। हमें चंद दिनों में जो शोहरत हासिल हुई है, उसके लिए हमारे मित्र तपेदिक (टी.बी.) और दूसरे संक्रामक साथी वर्षों से तरस रहे हैं। हमारे मित्र तपेदिक, तो इतने क्षमतावान हैं कि पिछले कई वर्षों से लगातार भारत में प्रतिवर्ष पच्चीस-तीस लाख लोगों को अपना अनुयायी बना रहे हैं, जिसमें से चार-पांच लाखों को तो प्रतिवर्ष मुक्ति धाम भेज देते हैं। भारत की मृत्युदर में अभूतपूर्व योगदान देने के बावजूद हमारे असंख्य बिरादर आज तक गुमनामी में जी रहे हैं।

इसका एकमात्र कारण अपने सही ह्यूमन होस्ट को ना चुन पाना है। अगर हमारी तरह इन्होंने पासपोर्ट वालों के साथ सह-संबंध स्थापित किए होते, तो इस शोहरत का स्वाद वे भी चख रहे होते जिसके शिखर पर हम आज बैठे हैं।

उनके नाम से भी, हमारी तरह हॉलिडे (लॉकडाउन) की घोषणा होती। मगर हमारे बंधु लाल-पीले राशन कार्ड वालों का साथ छोड़ते ही नहीं। राशन का सरकारी घुन्न लगा अनाज खाने वाले और गंदी बस्तियों में रहने वाले, देखने से तो आदम से ही लगते हैं। मगर असल में ये दोयम दर्ज़े के नागरिक, मज़दूर हैं, जिन्हें कोई पूछता नहीं है।

 स्वयं मोदी जी, प्रधानमंत्री होने के बावजूद भी इनका हाल-चाल लेने से बेहतर, मोर के साथ अपना ‘क्वालिटी टाइम स्पेंड (टाइम पास)’ करना ज़्यादा पसंद करते हैं। इनके लिए नियम साफ हैं, जो बच गए हैं, वे अगली बार वोट करेंगे। जो निपट गए, सीधे ‘गंगा जी में ठाआआआ’।

हमें सफलता दिलाने और हमसे घनिष्ठ प्रेम रखने के लिए हम हमेशा मोदी जी के आभारी रहेंगें, क्योंकि जहां दूसरे लोगों ने हमें संकट समझा और कोसते रहे। वहीं मोदी जी को हममें पॉजिटिव वेव नज़र आई।

उन्होंने बाकी देशों की तरह परेशान होने, चीखने-चिल्लाने के बजाय अपनी आपदा को अवसर में बदल दिया और पहले से डूब चुकी अर्थव्यवस्था की उपलब्धि भी हमारे हिस्से कर दी।

 बेरोजगारी, भुखमरी, स्वास्थ्य-व्यवस्था की कमज़ोरी और तमाम दिक्कतें हमारे आने से पहले ही भारत में चरम पर थीं। मगर मोदी जी एंड हिज मंत्रिज आर जस्ट ऑसम, ये तमगा भी हमारी छाती में घुसेड़ दिया, जिससे हमारी चर्चाओं में नई उपलब्धियां जुड़ीं। जो लव एंड अफेक्शन मोदी जी शॉज फॉर अस, उसके लिये वी ऑर ऑलवेज थैंकफुल टू हिम।

कोविड के आंकड़ों में जो रोज़ उछाल आप सब देख रहे हैं, उसके कॉन्ट्रिब्यूशन में मोदी जी का, तो हमसे भी बड़ा हाथ है। मगर उनका यह बड़प्पन है कि वे कभी सार्वजनिक रूप से इसे स्वीकार नहीं करेंगे। यू आर ऑलवेज इन अवर हार्ट मोदी जी, लव यू!

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