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“देश में सच को छुपा दो”

देश में सच को छुपा दो (कविता)

छुपा दो

ऑक्सीजन की कमी छुपा दो

लाशों की नदी छुपा दो

गिरती अर्थव्यवस्था छुपा दो

देश की बिगड़ी व्यथा छुपा दो

हम पर उठ रहा, हर सवाल छुपा दो

विपक्ष के तुम हर कमाल छुपा दो

किसानों की हर मांग छुपा दो

एकता का हर पैगाम छुपा दो

गरीबी, बेरोजगारी छुपा दो

जनता की लाचारी छुपा दो

हम पर चढ़ा कर्ज़ा छुपा दो

पर्यावरण का घटा दर्ज़ा छुपा दो

इतिहास की किताब छुपा दो

हमारे फंड का हिसाब छुपा दो

रोज़ बढ़ते दाम छुपा दो

जुमला बोलेगा अब काम छुपा दो

डाल दो इन सब पर नफरत की चादर

इसमें सांप्रदायिकता का बीज तुम रोप दो

मेरी छवि बचाने के खातिर ही सही

ज़रूरत पड़े, तो अपनी जान तुम झोंक दो

पर छुपा दो

काम हो ना हो, मगर हमारे बड़े इश्तेहार हों

हमारे नाम का व्यापार हो, हमारे नाम का प्रचार हो

विरोध में उठ रही हर आवाज़ को छुपा दो

हर आवाज़ को डरा दो, हर आवाज़ को दबा दो

छुपा दो।

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