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व्यंग: कोरोना काल में स्वर्ग की यात्रा

कोरोना काल में स्वर्ग की यात्रा (व्यंग्य)

स्वर्ग में हमें उस कक्ष के द्वार पर लेकर जाया गया, जहां कोरोना से मृत लोग ठहरे थे। चित्रगुप्त जी, हमें यहां तक लेकर आए थे, उन्होंने हमें इंतज़ार करने को कहा, तब तक वो जाकर यहां रहने के नियमों के कागज़, एग्रीमेंट लेटर आदि लेकर आ रहे हैं।

एग्रीमेंट, मैंने सोचा कि अब यहां रहने के लिए भी नियम हैं। कहीं भी हम स्वतंत्रता से नहीं जी सकते हैं, छोड़ो जब एग्रीमेंट आएगा, तो पढ़ कर देखेंगे। फिर मैंने आसपास नज़र घुमाई, तो मेरी नज़र द्वार की एक ओर एक खड़ी बड़ी भीड़ पर पड़ी। वहां सभी को बांध कर रखा गया था। 

मैं उनके समीप गया और उनसे उनके साथ हो रहे इस विशिष्ट और खास व्यवहार का कारण पूछा, तो उन में से एक ने थोड़ा गुस्से में और थोड़ा दुखी होकर कहा की यहां उन पर धरती पर कोरोना और वैक्सीन के बारे में झूठी जानकारी फैलाने का झूठा आरोप लगा दिया गया हैं।

हमें यह कहा गया है कि हम वैक्सीन को लेकर लोगों के बीच झूठा डर पैदा करते थे, बल्कि हम तो वैक्सीन के साइड इफेक्ट जैसे चुंबकीय हो जाना, मृत्यु हो जाना से लोगों को परिचित कराते थे और लोगों को कोरोना के घरेलू उपचार बताते थे। 

लेकिन हमारी समाज सेवा के लिए हमें गुनाहगार घोषित कर दिया गया और यहां लाकर ऐसे बांध दिया गया है। हम ही हैं जिन्होंने PM का हाथ मतलब कि कमल को मज़बूत किया है और असल मायनों में आत्मनिर्भरता बढ़ाई है। 

मैंने याद किया कि किस तरह वो झूठ में डुबोए हुए सन्देश हमारे फोन पर आया करते थे और किस तरह हमारे पड़ोसी हमें घरेलू उपचार बताते थे। जब मैं उन्हें कहता था कि यह सब बकवास है, तो वो मुझे शहरी बुलाते थे और कहते थे कि मैं अंग्रेज़ों की गुलामी में अपनी देश के उपचार को नकार रहा हूं।

फिर मैंने उनकी संख्या देखी और पूछा की बस इतने ही हैं, तो उन सज्जन समाजसेवक जी ने जवाब दिया कि नहीं , हम तो बहुत छोटा सा हिस्सा हैं। असल भीड़ तो अंदर जमा हैं, हम तो वो हैं, जो थोड़े शांत हैं और चुपचाप उनके कहने पर बाहर आ गए। नहीं, तो बाकी के अन्य लोग वहां तुरंत ही हल्ला करने लगे।

हम कमज़ोर थे, तो हमारे साथ पक्षपात कर दिया गया। मैंने बांधने का विशिष्ट कारण पूछा, तो उन्होंने बतलाया की हम में से कोई अंदर ना जाए, इसलिए बांध दिया गया है। उसने मुझसे कहा की जब भी आप को चित्रगुप्त जी मिलें, उनसे हमारे लिए गुहार लगा दीजिएगा।

मैं उनकी बातें सुन ही रहा था कि एक सज्जन कक्ष के दरवाजे से बुदबुदाते हुए बाहर निकले। मेरा पूरा ध्यान उनके ऊपर आकर्षित हुआ और मैं भगा-भगा उनके पास गया। मैंने पूछा कि आप को कोई परेशानी है क्या? उन्होंने तुरंत ही गुस्से में कहा कि मैं सिस्टम से इन कल के आए लोगों की शिकायत करने जा रहा हूं। 

मैंने पूछा की भाई ऐसा क्या हो गया? उन्होंने बताया कि वो उन्हें बेवकूफ से लेकर देशद्रोही तक सब कह रहे हैं। मैंने पूछा आखिर क्यों? तो उन्होंने बताया कि पिछले बरस जब शराब के ठेके खुले थे, तो वो भी वहां लाइन में लगे थे और शराब ली थी। उसी वक्त उन्हें कोरोना हो गया था। मैंने कहा की गलत क्या कह रहे हैं? कोरोना के चरम पर आप अपने नशे पर नियंत्रण रख सकते थे।

उसने तुरंत कहा कि यह ठीक है भइया, जब 8 नवंबर के बाद लाइन में खड़े थे, तो बड़ा देशभक्त होने का सर्टिफिकेट खुद से खुद को दे रहे थे। उस समय बहुत बोल रहे थे कि सीमा पर हमारे जवान लड़ रहे हैं और आप लोग लाइन में नहीं खड़े हो सकते और हम जब देश की गिरती अर्थव्यवस्था को उठाने के खातिर लाइन में खड़े हुए, तो आपकी आंखों को बहुत खटक रहे हैं।

और हां, हम तो शराब की लाइन में भी पंक्तिबद्ध हुए थे, इनकी तरह दूसरी लहर में हॉस्पिटल और शमशान के आगे, तो पंक्तिबद्ध नहीं हुए थे। इतना पूरा वो एक सांस में बोल गया और फिर बोला की मेरा सर ना खाओ, जा कर मुझे सिस्टम से कम्प्लेन भी करनी है। देखते हैं यहां का सिस्टम सुनता है या धरती जैसा ही हाल है। ये बोल, वो वहां से चला गया। इतने पर चित्रगुप्त जी एग्रीमेंट लेकर आ गए और हमें थमा कर हस्ताक्षर करने को कहा। हम भी एग्रीमेंट पढ़ने लगे।

उस पर लिखा था कि भले ही आपकी मृत्यु सरकारी अव्यवस्था, मेडिकल सिस्टम की जर्जर हालत,ऑक्सीजन की कमी के वजह से, बेड ना मिलने की वजह से या मॉक ड्रिल के दौरान हुई हो ,आप अंदर जाकर सरकार और उसके खोखली व्यवस्था की निंदा ना करें, नहीं तो अंदर एक गिरोह है, जो सरकार पर उड़ती कालिख को चाट कर साफ करने में एक्सपर्ट है और सरकार की बुराई सुन वो आप पर टूट पड़ेंगे।

आप सिर्फ झूठी पॉज़िटिविटी का ढोंग कर सकते हैं। आप लोगों की परेशानी, चिंता सुन उन्हें सांत्वना दे सकते हैं, पर ये काम धीमे स्वर में भीड़ से दूर किया जाना चाहिए और कृपा कर किसी से मौत का कारण खुले में ना पूछें नहीं, तो आपके ज़ल्द ही निपट जाने की आशंका है, जिसके लिए सिस्टम बिल्कुल भी ज़िम्मेदार नहीं होगा।

आपको जल्द ही अपने कर्मों के लेखा-जोखा के अनुसार स्वर्ग और नर्क अलॉट कर दिया जाएगा। यह पढ़ कर मैं सहम सा गया, क्योंकि मुझे धरती के वो किस्से याद आ गए, जब सरकार की आलोचना करने पर मेरे साथी मुझ पर भड़क जाते थे या पान की गुमटी पर, तो कुछ लोग हमें पीटने ही वाले थे।

वो तो हम मौके पर वहां से खिसक लिए। सो मैंने चित्रगुप्त जी से कहा कि अंदर तक छोड़ दीजिए। वो हमारे साथ दरवाज़े तक चले और फिर वहां से गायब हो गए। हमें छोड़ गए जनतंत्र की जनता के बीच, सिस्टम से परेशान जनता, नहीं-नहीं, बस जनता के बीच।

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