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बाल मज़दूरी करते थे कन्हैया, अब संचालित करते हैं बाल आश्रम

Chind labour in india

Representational image.

नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी जी की धर्मपत्नी सुमेधा कैलाश राजस्थान के जयपुर ज़िले के विराट नगर में बच्चों का एक पुनर्वास केंद्र संचालित करती हैं। इस पुनर्वास केंद्र का नाम ‘बाल आश्रम’ है। वो इस आश्रम की संस्थापिका भी हैं।

बाल आश्रम के ही एक कार्यकर्ता हैं कन्हैया जी, जो कि पूर्व में बाल मज़दूर रहे हैं। कैलाश सत्यार्थी जी से प्रभावित होकर वो बाल आश्रम आ गए और पिछले 20 सालों से बाल आश्रम में रहकर बाल मज़दूरों की मुक्ति के सर्वागीण  विकास में अपना योगदान दे रहे हैं।

कन्हैया जी ने सत्यार्थी जी के कार्यों पर एक मार्मिक कविता भी लिखी है। कविता में वर्णित बच्चे ओम प्रकाश, किंशु, अमरलाल, मनन, राजेश, आदि सभी मुक्त बाल मज़दूर हैं। ये बच्चे सत्यार्थी जी द्वारा बाल मज़दूरी से मुक्त कराए गए थे फिर बाल आश्रम में रहकर ही इन सभी ने शिक्षा ग्रहण की।

आज ये बच्चे कामयाब ज़िंदगी गुज़ार रहे हैं। इनमें ही एक हैं पायल जंगिड़, जिन्होंने बाल आश्रम की प्रेरणा से ना केवल खुद का बाल विवाह रुकवाया, बल्कि अपने क्षेत्र की अनेक बच्चियों के भी बाल विवाह रुकवाए। पायल जंगिड़ को अमेरिका के प्रतिष्ठित चेंज मेकर अवॉर्ड से सम्मानित किया गया है।

वहीं, इनकी ही तरह तारा बंजारा बाल आश्रम की प्रेरणा से बंजारा समुदाय की बच्चियों की शिक्षा के लिए काम कर रही हैं। कन्हैया जी एक बहुत अच्छे आर्टिस्ट हैं, वो बहुत अच्छे चित्र भी बनाते हैं। संगीत में भी उनकी गहरी रुचि है।

कन्हैया जी की कविता इस प्रकार है

  मैंने भगवान को देखा है!

साबों की वो चित्कार पढ़ी हैं मैंने
मैंने सुना है कि गुलाबो आपकी गोदी में
हमेशा के लिए सो गई।

रामगंज मंडी को कैसे भूल जाऊं?
कैसे भूल जाऊं वो बेरहम मार
आदिवासी बहनों की यौन शोषण की गाथा।

सत्यार्थी ऐसे ही नहीं कहलाए
दलित-अछूत माताओं  के हाथों से
भोजन करते सुना है मैंने।

दम तो सब में है, अस्पतालों में खून देने का!
वो आप ही हैं, जो सर्कस में खून दे आए
हज़ारों बंधुआ बच्चों, परिवारों की
मुक्ति की गाथा है ये।

आपने लाखों बच्चों के हाथों से
आतिशबाजी छीनी है,
क्योंकि छीना है आतिशबाजी ने लाखों बच्चों के
हाथ! पैर! सिर! आंख! कलेजा!
दाह संस्कार का हक भी छीना है आतिशबाजी ने
कालीन मालिक के मार से।

नागेश्वर-लक्ष्मी सदा को गूंगा होते सुना है मैंने
आपको नागेश्वर का घाव पोछते देखा है मैंने
और नाचते लक्ष्मी सदा को।

भूखे अशरफ को दूध चुराते सुना है मैंने
गरम चिमटे का निशान
उसकी आंखों के ऊपर देखा है मैंने।

आपकी गोदी में खेलते
अशरफ को देखा है मैंने
मेरे ढोलक के ताल पर नाचते
अशरफ को देखा है मैंने।

कालू का वो दर्द याद है
जब कालीन मालिक द्वारा ज़ख्म पर
दवा के बजाए माचिस की तीली
बारूद का जलना याद है।

याद है क्लिंटन के साथ
कालू का फोटो भी याद है।

ओमप्रकाश कभी चरवाहा हुआ करता था
मुझे पता है ‘चिल्ड्रेंस पीस प्राइज़’
अब वो एमबीए हुआ करता है।

 उका सफर, सफर में  बीता करता था
अब सफर ऐसा हुआ कि
मेरा बॉस बना बैठा है।

गज़ब की निगाह है आपकी
चलते हुए भी पत्थर से हीरा तराश लाए,
अमर से वकील तराश लाए।

शुभम के जिन हाथों को
जूठे प्लेट धोते देखा है,
वही हाथों को ताल ठोकते
इंजीनियर होते देखा है।

किसको पता था!
अभ्रक के खदानों से सरगम सुनाई देगा
वो धुन पहचानने वाले आप हैं।

जिसको मनाने से मास्टर बनाया
राजेश के वो हाथ,
जो कभी ईंट पाथा करता था
जब चूमा आपने उसके घिसे हुए हाथ
अब वो लैपटॉप जीता करता है।

पायल को मोदी जी के साथ
खड़े होते देखा है मैंने,
देखा है मैंने तारा बंजारा को
शाहिद कपूर के साथ सेल्फी लेते।

एक माँ को रोते हुए देखा है
जब नाहिद को खोया,
एक माँ को तब भी रोते हुए देखा है
जब नाहिद को पाया।

और मेरा
मेरा तो अंदाज़ ही अलग है
मैं नहीं अब मेरा ब्रश (कला) बोलेगा
अब आप भी देख लो!

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