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आइए जानते हैं इम्पोस्टर सिंड्रोम के लक्षणों एवं उपचार के बारे में

आइए जानते हैं इम्पोस्टर सिंड्रोम के लक्षणों एवं उपचार के बारे में

इम्पोस्टर सिंड्रोम, कहीं आप भी, तो इस से पीड़ित नहीं हैं? इंपोस्टर सिंड्रोम क्या है? दरअसल, यह एक ऐसी अवधारणा है जिसका इंग्लिश लेखक काफी ज़्यादा उपयोग करते हैं, क्योंकि यह थ्योरी एक इंग्लिश राइटर द्वारा ही दी गई है और इसका साहित्य अधिकांशत: इंग्लिश में ही उपलब्ध है।

ऐसा माना जाता है कि कोई व्यक्ति जो यह मानता है कि मुझे सफलता बाई चांस या किस्मत या तुक्के से मिली हुई है और उसमें मेरा कोई योगदान नहीं है। मैं इस लायक हूं ही नहीं जिस सफलता पर मैं हूं, ऐसे व्यक्ति को इंपोस्टर सिंड्रोम का पीड़ित माना जाता है।

ऐसा नहीं है कि यह कोई ऐसी बीमारी है, जिसके लिए आपको घबराने की ज़रूरत हो, जैसे किसी के पुराने अनुभव के डर को किसी फोबिया के नाम से बीमारी बताया जाता है, लगभग यह ऐसा ही है। इसे सकारात्मक रूप में भी माना जाता है, क्योंकि ऐसे व्यक्ति हमेशा वह होते हैं, जो हर चीज़ में परफेक्शन लाना चाहते हैं और जब तक परफेक्शन नहीं आता उन्हें लगता है कि कुछ कमी है।

कैसे जानें कि हम भी पीड़ित हैं 

यदि आपको अपने ही द्वारा प्राप्त की गई किसी उपलब्धि पर संदेह होने लगे कि मैंने इसे कैसे प्राप्त कर लिया, तो आप इस सिंड्रोम से पीड़ित हैं। ऐसे लोग कई उपलब्धियों और उसको प्राप्त किए गए तरीकों को फ्रॉड समझने लगते हैं और उन्हें डर लगता है कि कहीं हम एक्सपोज ना हो जाएं। उन्हें लगता है कि यह जो सफलता है, वह हमें गलती से मिली है।

शुरू में यह माना जाता था कि यह सिर्फ महत्वाकांक्षी महिलाओं में देखने को मिलता है, लेकिन बाद में कुछ सायकोलॉजिस्ट ने देखा कि यह सभी मे होता है। यह अवधारणा सिर्फ 40 वर्ष पुरानी है, इसलिए अभी भी इस पर नए-नए अनुभव व प्रयोग देखने को मिलते रहते हैं।

यदि इसे हम अपने देश या समाज के संदर्भ में देखें, तो ऐसे कई लोग हैं जिनका यह मानना है कि मेरी सफलता भाग्य या किस्मत के कारण है,पर ऐसे लोग इस सिंड्रोम के पीड़ित नहीं हैं, क्योंकि यदि हम उन्हें गहराई से ऑब्सर्ब करें, तो पाएंगे कि वह अपने चारों तरफ की परिस्थितियों को आभार स्वरूप यह कहते हैं, क्योंकि वह जानते हैं कि सफलता एकांकी नहीं मिलती इसमें कई लोगों या अनुभवों की श्रृंखलाओं का योगदान होता है।

लेकिन, यदि आपको सफल होने के बाद भी किसी भी काम को करने से पहले मन में डर लगता है या हमेशा खुद पर संदेह होता है या ज़्यादातर आप सोच में डूबे रहते हैं या हमेशा नकारात्मक बातें करते हैं या मन में हारने की उम्मीद करते हैं या सफल होने पर भी खुश नहीं होते हैं, तो आप भी इसके पीड़ित हो सकते हैं ।

इससे बचने के लिए क्या करें?

यदि आपको यह पता चल गया कि आपके साथ यह समस्या है, तो आप इससे निबटने के रास्ते पर चल चुके हैं, क्योंकि आधा रास्ता हम उसी समय तय कर लेते हैं, जब हम इससे परिचित होते हैं और इसे स्वयं से दूर करना चाहते हैं। इसके अलावा इससे बचने के लिए हमें खुद में बदलाव लाने की ज़रूरत है, कोशिश करें हमेशा सकारात्मक रहने की, यदि ऐसा नहीं हो पा रहा है, तो अपना ध्यान अपनी हॉबी पर ले जाएं या  किसी भी चीज़ पर खुल कर बात करें। 

आप अपने विचारों को साझा करते रहें, यदि सबसे नहीं, तो अपने किसी करीबी से ही और योग या माइंडफुलनेस को अपने दिनचर्या का अनिवार्य हिस्सा बनाएं। कुल मिलाकर अपने प्रति सचेत रहें और ऐसी भी कई समस्याएं हैं, जिनसे आप खुद ही जीत सकते हैं।

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