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कौरव और पांडवों की तरह, वर्तमान में सच और झूठ की समकालीन लड़ाई

कौरव और पांडवों की तरह, वर्तमान में सच और झूठ की समकालीन लड़ाई

महाभारत दुनिया का सबसे बड़ा ग्रंथ है। हिंदू धर्म की नींव इसी ग्रंथ पर टिकी है। महाभारत ना केवल धार्मिक शिक्षा देता है, बल्कि हमें आम जीवन में किस तरह जीवन जीना है, उसकी भी सीख देता है।

महाभारत केवल एक ग्रंथ ही नहीं, ज्ञान का एक अथाह भंडार है। यह हमेशा हमें सोचने पर मज़बूर करता है कि भगवान कृष्ण ने युद्ध क्यों नहीं रोका? क्या वजह थी कि यह जानने के बाद भी इस युद्ध में लाखों जाने जाएंगी, उन्होंने एक बार भी कौरवों एवं पांडवों में होने वाले इस भीषण युद्ध को रोकने का प्रयत्न नहीं किया। क्या वजह थी कि भाई-भाई महज़ राजपाट के लिए युद्ध करने के लिए उतारु हो गए?

समय के साथ मैंने यह जाना कि यह कुछ और नहीं, बल्कि सही और गलत का युद्ध था। यह युद्ध था, नैतिकता और अनैतिकता के बीच का। एक तरफ अहंकार, झूठ, भ्रम से ग्रसित कौरव थे, जो कि वर्तमान में आज की भाजपा पार्टी है और एक तरफ नैतिक, शालीन, गौरवमय इतिहास से भरी कॉंग्रेस पार्टी है। 

जिस तरह साम, दाम, दंड, भेद की नीति से कौरवों ने सिंहासन पाया था, ठीक आज उसी तरह आम जनमानस से झूठे कल्याणकारी वादे करके भाजपा ने सत्ता पाई है। वर्तमान में देश की सत्तारूढ़ सरकार झूठ, हिंसा का साथ लेते हुए जनता का ना सोच कर स्वयं के हितों की पूर्ति में लगी हुई है।

देश में जनता हाहाकार मचाये हुए है पर भाजपा सरकार अपने ही कर्म में मस्त है। उसे फर्क ही नहीं पड़ता कि जनता किन परिस्थितियों से गुज़र रही है। वह अपनी एक स्वच्छ भारत की तस्वीर बनाकर बैठी है, जहां मन की बात की जाती है और आम जनमानस को सपनों का न्यू इंडिया दिखाया जाता है। काश, वो चश्मा हम सब के पास भी होता जिससे हम सब भी उनकी ही तरह बेफिक्र जीवन व्यतीत कर पाते।

आज के युग में मुझे कई समानताएं नज़र आती हैं। त्रेता युग से अन्धे, लाचार एवं सत्ता के लालच मे बैठे धृतराष्ट्र नज़र आते हैं, जिस तरह आज आडवाणी सब जानते हुए भी अपनी दोनों आंखें मूंद बैठे हैं। हमें धृतराष्ट्र की याद दिलाते हैं, जो चाहते ना चाहते हुए भी मूकदर्शक बन कर बैठा रहा। वहीं मुझे भाजपा के कई ऐसे नेता नज़र आते हैं, जो भीष्म पितामह के रूप में अपना सर्वस्व न्योछावर करने के बाद भी खुश नहीं हैं, जो पार्टी में मार्गदर्शक मंडल के रूप में हैं। 

मुझे लालच, द्वेष से भरे दुर्योधन के रूप में कोई और नहीं, बल्कि हमारे प्रधानमंत्री नज़र आते हैं, जिनका लालच और अहंकार आज के भारत में व्याप्त शीत युद्ध का वातावरण बनाए हुए है। आप विडंबना देखिए, जिस तरह से दुर्योधन लालच और नाइंसाफी के लिए महाभारत के युद्ध का कारण बना ठीक उसी तरह हमारे देश के प्रधानमंत्री किसी भी तरह से सत्ता के सिंहासन पर काबिज होने के लिए आज देश को युद्ध के माहौल में धकेल दे रहे हैं।

नित नई योजनाएं बनाते हुए अमित शाह किसी शकुनी से कम नहीं नज़र आते हैं, जिस तरह पांडवों को सत्ता से दूर रखने के लिए शकुनी ने कई षडयंत्र किए ठीक उसी प्रकार अमित शाह प्रतीत होते हैं, जो किसी भी तरह के षडयंत्र रचने से कोई परहेज़ नहीं करते हैं।

वहीं दूसरी ओर राहुल गांधी हैं, जो मुझे पल-पल अर्जुन की याद दिलाते हैं। वह कुछ और नहीं चाहते बस उनकी चाह यही है कि देश को नैतिकता से चलाया जाए ठीक युद्ध से पहले जो अर्जुन की स्थिति थी, वही स्थिति आज मुझे राहुल गांधी की नज़र आती है, जो न्याय प्रिय हैं। वह अपने आदर्शों और उसूलों पर चलकर देश को चलाना चाहते हैं। वह बिलकुल अर्जुन की तरह युद्ध नहीं चाहते, उन्हें भाजपा में भी अपने ही बंधुगण नज़र आते हैं।  

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