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मॉब लिंचिंग, न्याय की लड़ाई और उसके पर्दे के पीछे का सच

मॉब लिंचिंग, न्याय की लड़ाई और उसके पर्दे के पीछे का सच

मॉब लिंचिंग वो टर्म है, जो हाल के समय में हमें आम तौर पर सुनने को मिल रहा है। अगर देखा जाए, तो सन 2015 में मोहम्मद अखलाक की भीड़ द्वारा बेरहमी से हत्या कर देने के बाद ये टर्म लोगो के बीच ज़्यादा आम हुआ है। लोग अपने आर्टिकल्स में, अपने इंटरव्यूज में इस टर्म का इस्तेमाल करने लगे जैसे उन्होंने एक वक्त में असहिष्णुता का किया था। 

मॉब लिंचिंग क्या है?

अगर टर्म मॉब लिंचिंग के अर्थ (भीड़ द्वारा सामूहिक हिंसा कर व्यक्ति विशेष की हत्या कर देना ) की व्याख्या की जाए, तो वो देश में हो रहे किसी और जुर्म की तरह ही प्रतीत होगा लेकिन अगर आंकड़ों पर नज़र डालें, तो महसूस होता है कि यह एक धर्म विशेष और कुछ जाति विशेष के लोगों के साथ घटित होने वाला जुर्म है।

अगर हम 2010 से 2020 के मॉब लिंचिंग के आकंड़ों पर नज़र डालें, तो इसमें लगभग 33 लोगों की मौत हुई और 130 लोग बुरी तरह से घायल हुए हैं, जिसमें से 90% घटनाएं मुसलमानों के विरुद्ध हुई हैं और 10% दलितों के विरुद्ध और अब भी दिन-प्रतिदिन इन आंकड़ों में बढ़ोतरी जारी है।

यह तो थी, आंकड़ों की बात पर अगर हम बात करें मॉब लिंचिंग के बाद सामाजिक विरोध की तो इसमें कोई शक-सुबह नहीं कि लोगों ने इसका विरोध नहीं किया है, बेशक किया है आर्टिकल्स लिखे, पैनल डिस्कशन हुआ, ट्विटर पर हैशटैग ट्रेंड किया, कुछ दिनों तक सड़कों पर प्ले कार्ड भी लेकर खड़े हुए, लेकिन अफसोस फिर कोई नई घटना हुई, नया मुद्दा आया और हम वक्त के साथ आगे बढ़ चले।

खून में लथपथ हर दिन, छप रहे अखबार हैं
गाय के आगे हाथ जोड़े, मुल्क की सरकार है।

क्या इन हादसों के बीत जाने के बाद हम में से कोई भी उन पीड़ित परिवार का हालचाल पूछने गया है? उनकी निजी ज़रूरतों में, उनके लीगल केसेस में कभी हाथ बढ़ा कर उनकी मदद की है?

ट्रेन में सीट के मामूली विवाद पर मॉब लिंचिंग 

आज के ही दिन (22 जून 2017)  मथुरा जा रही एक ट्रेन में 15 साल के जुनैद खान को मॉब लिंचिंग शिकार होना पड़ा था। तब उस वक्त इस घटना के बाद कई राजनैतिक संगठन, मुस्लिम सामाजिक संगठन आगे आए और जुनैद के परिवार के साथ खड़े होने की बात कही और उन्हें मदद करने का भरोसा दिया और सोशल मीडिया पर अपनी तस्वीर लगा कर अपना फर्ज पूरा करने का दावा भी किया। 

पर आज उस घटना के 4 साल बीत जाने के बाद जब मैं पीछे मुड़ कर देखता हूं, तो मुझे महसूस होता है कि शायद हमने अपना फर्ज़ निभाने में कहीं चूक की है।

पिछले दिनों जब मेरी बात मरहूम जुनैद खान के बड़े भाई मोहम्मद कासिम से हुई, तो उन्होंने बताया कि उनके वालिद जलालुद्दीन खान उस सदमे से आज तक पूरी तौर पर उभर नहीं सके हैं और इंसाफ ना मिलने का दर्द उन्हें अंदर-ही-अंदर तोड़ रहा है पर इन सब के बावजूद उनका कहना है कि वो अपनी आखिरी सांस तक अपने बेटे को इंसाफ दिलाने के लिए लड़ेंगे।

मोहम्मद कासिम ने हमें बताया कि उस हादसे के बाद कई लोग और कई मुस्लिम सामाजिक संगठन हमारे लिए आगे आए थे और पूरी मदद का भरोसा दिलाया था, पर आज जब 4 साल बाद वो अपने आस पास देखते हैं, तो उनमें से कोई भी उनके साथ खड़ा नहीं दिखता है और ना ही इस दौरान उन्होंने उनकी किसी भी रूप से मदद की है।

सरकार द्वारा घोषित मुआवज़ा महज़ खोखला झूठ 

मोहम्मद कासिम बताते हैं कि उस हादसे के बाद हरियाणा की खट्टर सरकार ने 10 लाख का मुआवज़ा देने की बात कही थी, पर जब हम खट्टर साहब से मिलने गए, तो उन्होंने यह बोल कर हमें लौटा दिया के ये सब सिर्फ बोलने की बातें हैं। सरकार के पास इतना पैसा कहां है? कासिम कहते हैं कि केस लड़ने में भी हमें कई मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है, लेकिन हम इंसाफ के लिए लड़ते रहेंगे।

इतनी मुश्किलों के बावजूद जुनैद खान का परिवार, तो इंसाफ के लिए लड़ रहा है पर हम अपने फर्ज़ को भूल कर आगे बढ़ते चले जा रहे हैं। आज भी अगर सोशल मीडिया और गूगल पर जुनैद खान का नाम सर्च करो, तो ऐसी कई लोगों की तस्वीरें और पोस्टें दिख जाती हैं, जिन्होंने उस वक्त हमारे साथ खड़े होने की बात कही थी, पर उनमें से आज तक कोई उनके पास सहायता करने नहीं आया। 

न्याय की लड़ाई में अकेला है जुनैद का परिवार 

आज मैं समाज के एक हिस्से के तौर पर इस बात को मानने से जरा गुरेज़ नहीं करूंगा कि हम इन घटनाओं के कुछ वक्त बीत जाने के बाद उन पीड़ित परिवारों का हाल नहीं लेते और ना ही उनकी कोई मदद करते हैं।

हमें यह सवाल खुद से करना चाहिए कि जो दर्द उन पीड़ित परिवारों के लिए हमारे अंदर उस वक़्त होता है, वो महीने या साल बीत जाने के बाद क्यों नहीं रहता है? क्या तब और अब हमारे लिए इंसाफ के पैमाने बदल चुके होते हैं? या फिर हम फिर इस इंतज़ार में रहते हैं कि कोई और ऐसी घटना हो तब फिर हम आवाज़ उठाएं।

जिस इंसाफ की लड़ाई की इब्तिदा हम करते हैं, उसे अंजाम तक क्यों नहीं पहुंचा पाते हैं? बस इस सवाल के साथ  आपको छोड़े जा रहा हूं, यह सवाल आप एक बार खुद से ज़रूर कीजिएगा।

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