Site icon Youth Ki Awaaz

कविता : गोलियों से विचार नहीं मरते

कविता : गोलियों से विचार नहीं मरते

 

एक आलीशान महल है

और उस महल के आगे एक शोर है

यह चिल्ला रही थी आवाम

कि महाराजा ही चोर है (जो जानते है वो जानते हैं)

 

राजा ने मंत्री से कारण पूछा

बोला मंत्री, इनके कुछ सवाल हैं

बैठा है राजा कैसे अमन-चैन से

जब उसकी प्रजा का हाल बेहाल है

 

सवाल? ऐंठ के राजा जोर से बोला

क्या यह मेरे कदम चूमती भीड़ से नहीं डरते?

नहीं महाराज, वे तो यह बोल रहे हैं कि

विचार गोलियों से नहीं मरते

 

वे पूछते हैं कि आप क्यों पढ़ाते सच का पाठ

जब खुद ही सच सुन सकते नहीं

हज़ारों सड़क पर रोज़ मर रहे हैं

पर आपके कान खुद की तारीफ सुनने से थकते नहीं

 

चकित हुए महाराज, कि सच पहुंचा कैसे इन तक

मीडिया, तो हमारे सांस से बजने वाला शंख है

और जो नहीं बजे, जो ख्वाब जिए

उनके तो हमने कटवा दिए पंख हैं

 

ऐसे भी कमबख्त हैं राजन, जो सोचते हैं ऐसे

इन्होंने बहुत सी सच कहती हुईं किताबें पढ़ी हैं

यह जानते हैं गांधी, भगत सिंह और आज़ाद ने कैसे

हमारी आज़ादी की पुरज़ोर जंग लड़ी है

 

ये हमारा प्रॉपगैंडा, झूठा इतिहास नहीं पढ़ते हैं

ना ही ये हमारे चमकीले विकास के इश्तिहार से फसते हैं

यह तो, वो हैं जो, हम पर बेबाक व्यंग्य करते हैं

हमसे आंखें मिलाकर, हम पर ही तंज़ कसते हैं

 

यह सुन कर चौंक कर बोले राजन, ये तो हमारे राज्य के विकास में रोड़ा हैं

जल्दी ही इन सबको जेलों में बंद कर दो

जो भी कदम हमारे खिलाफ दौड़ रहे हैं

जो भी आवाज़ हमारे विरोध का प्रतीक है

उन्हें देशद्रोही साबित करके बिना किसी वजह के नज़रबंद कर दो

 

हमारी मीडिया में यह बात पहुंचा दो

कि अब से राजविरोध ही देशविरोध है

क्रांति की भीख मांगने वालों को सज़ा देना ही

देश के हर गद्दार के खिलाफ मेरा प्रतिशोध है

 

ना जाने क्यों हमारे चहुंओर विकास के प्रचार के बीच

यह हर बार खड़े करते बवाल हैं

दबा देना है ऐसी हर उस आवाज़ को

क्योंकि यह हमारी इमेज का सवाल है

 

जेल में जाने से पहले, वो नौजवान ज़ोर से बोला

हम क्रांतिकारी जेल की कैद से नहीं डरते

एक गिर कर अपने बलिदान से, सौ क्रांतिकारी उठाएगा

क्योंकि तुम नहीं जानते कि

विचार गोलियों से नहीं मरते।

Exit mobile version