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कविता : हमें लीडरों से खतरा है

कविता : हमें लीडरों से खतरा है

कुछ लोग कह रहे हैं हमसे कि एक हो जाओ, तुम्हें खतरा है

दूजी कौम से खतरा है, दूजे धर्म से खतरा है

उठाओ हथियार और दूजे धर्म पर वार करो

एक रंग हो देश के, दूजे रंग पर वार करो

 

झूठ की बुनियाद पर लाशों का महल बनाना है

ख्वाब से इस देश को खून के छीटों से सजाना है

एकता में दोष है, एकरूपता का राज हो

ये हमारी ज़मीन है, हमारे सिर पर ही ताज हो

 

सड़ कर कटे गालों का होगा नाश जब

तुम्हारे हर खतरे का होगा विनाश तब

तो इन अंधभक्तों तक मेरा एक पैगाम है

ज़रा सोचना खतरे को तुम, ये तुम्हारे लीडरों का काम है

 

ये रोज़ के कत्ल, ये आप जो खून की नदिया बहा रहे हैं

आपके लीडर किसी पूंजीपति के तलवे चाट, नोटों की बारिश में नहा रहे हैं

मौलिक ज़रूरतें भूल जाओ इसलिए आपको दंगे-फसादों में उलझा रहे हैं

सांप्रदायिकता का अफीम चटा, आपकी समझदारी चुरा रहे हैं

 

आपके लीडरों की एक बात सच है कि खतरा है

उनसे खतरा है, हर नफरती विचार से

हमारे देश की पहचान को खतरा, हमारे संविधान को खतरा है

कट्टरता छोड़ हम वापस से तर्क-वितर्क को स्थान दें

आओ आप और हम मिल इस खतरे को टाल दें।

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