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कविता : हम ऊंची जाति के हैं

कविता : हम ऊंची जाति के हैं

हम बड़े हैं

इसका प्रमाण-पत्र हमें जन्म से मिला है
यह इनाम हमें
पिछले जन्मों के कर्म से मिला है

जो दबे हमारे पांव तले
वो हिस्सेदारी क्यों अब मांग रहे?
जिनका काम प्रताड़ित होना है
अब बराबरी क्यों मांग रहे?

मजलूम की हर गुहार
हर पुकार से मुंह मोड़ लिया है
हमने तो बस दूध की मलाई से
नाता जोड़ लिया है

किसी को उनका हक देने को
हम दान बता देते हैं
और कट्टर तो इतने हैं कि
अपने विशेषाधिकार को हम अपनी शान बता देते हैं

हर समय हमारा था
हर काल हमारा हो
सब हमारी जी हुजूरी करें
बस कमाल हमारा हो

सत्ता का हर यंत्र
हमारे संग में बजे
श्रृष्टि की हम नूर हैं
जहान हमसे ही सजे

देवालयों में हम पूजे
बाहर पूजा हमारी हो
हर आनंद, हर अधिकार के झूले की
हम पहली सवारी हों

हर कहानी के शीर्षक
में नाम हमारा हो
आने वाली हर पीढ़ी तक
हर पैगाम हमारा हो

तर्क-वितर्क भूल कर
तुम हमारी जय जयकार करो
जो नहीं ढले हमारे रंग में
उस हर विरोधी पर प्रहार करो

मत भूलो की हम बड़े हैं
इसका प्रमाण पत्र हमें जन्म से मिला है
यह इनाम हमें
पिछले जन्मों के कर्मों से मिला है।

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