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राजनीति हमें बहुत कुछ सिखाती है, लेकिन हमारे जीवन में समाज की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है

राजनीति हमें बहुत कुछ सिखाती है, लेकिन हमारे जीवन में समाज की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है

आज़ादी के समय के बाद से ही हमारा देश भारत डॉ. भीमराव अंबेडकर जी द्वारा निर्मित भारत संविधान से ही चलता आ रहा है। आज भारत देश में सभी को स्वतंत्रता, समानता के अधिकार हैं और संविधान के अनुसार ही राजनीति में चुनाव लड़े जाते हैं। देश के प्रधानमंत्री से लेकर गाँव के प्रधान तक को मताधिकार से सभी वोटों द्वारा चयनित कर बहुमत से अपना पसंदीदा नेता चुनते हैं।

मताधिकार का महत्व

भारत का संविधान चलाने के लिए मताधिकार से चयन कर नेता चुना जाता है, जो अपने पद एवं संविधान के अनुसार लगभग पांच वर्ष तक शासन करता है। सामाजिक परेशानियों को हल करना उसका दायित्व होता है। संविधान के अनुसार, पहले 21 वर्ष की आयु में आम जनमानस को वोट डालने का अधिकार मिला था, लेकिन सन 1988 में 21 वर्ष की आयु को घटाकर मताधिकार की आयु 18 वर्ष कर दी गई।

 भारत में वोट का अधिकार महिलाओं एवं पुरुषों दोनों को मिला है। मताधिकार का महत्व इतना है कि आप अपना वोट डालकर देश का प्रधानमंत्री भी चुन सकते हैं।

सामाजिक एवं राजनीतिक अवधारणाओं में अंतर

बिल्कुल सही बात है सामाजिक एवं राजनीतिक अवधारणाओं में बहुत अंतर होता है। सामाजिक का मतलब है कि आप समाज में  उठने-बैठने के साथ-साथ समाज की बातों को समझते हैं और समाज आपके विचारों को समझता है लेकिन सामाजिक होना इतना आसान नहीं होता है।

समाज में सामाजिक होने के लिए आपको सभी की भावनाओं को समझकर अपने विचार समाज के सामने रखने पड़ते हैं और आप सामाजिक हैं या नहीं है, इसके बारे में भी समाज ही निर्णय करता है। समाज में सामाजिक कार्य करने से भी आपके विचार समाज के ऊपर बहुत प्रभाव डालते हैं। अगर आप समाज के अनुसार सही व्यक्ति हैं, तो आपको समाज द्वारा ही राजनीति में लाने का काम भी किया जा सकता है, जिससे आप समाज के लिए सामाजिक एवं जनहितकारी कार्य कर सकें।

राजनीतिक होने का मतलब यह नहीं है कि समाज के लिए कार्य नहीं करना, बल्कि राजनीतिक व्यक्ति समाज के कार्य सामाजिक व्यक्ति से ज़्यादा करेगा, क्योंकि ज़्यादातर राजनीतिक व्यक्ति का उद्देश्य मात्र चुनाव जीतने का रहता है। उम्मीदवार यह जानता है कि चुनाव जीतकर सामाजिक कार्य सही ढंग से करूंगा, तो समाज की सामाजिक परेशानियों के हल आसानी से निकाल सकूंगा।

हां, कुछ व्यक्ति चुनाव जीतने के बाद समाज को भी भूल जाते हैं, जो कि बहुत गलत है। चुनाव जीतने का मतलब है कि समाज ने आपको अपनी सामाजिक परेशानियों को दूर करने के लिए चुना है लेकिन ज़्यादातर राजनीतिक लोग चुनाव जीतने के बाद समाज के बारे में नहीं, बल्कि अपनी ज़रूरतों के बारे में सोचने लगते हैं। 

राजनीति भी बहुत कुछ सिखाती है, जो समाज भी नहीं सिखाता है

सामाजिक होना या ना होना भी राजनीति से कई बार अलग हो जाता है। कुछ लोग राजनीतिक लोगों से बचने लगते हैं, क्योंकि कुछ राजनीतिक होने के कारण समाज पर अपना प्रभाव दिखाते हैं, जिसके कारण समाज में  राजनीतिक लोगों के बारे में गलत विचार आने लगते हैं।

ऐसा नहीं है, हां, ज़्यादातर राजनीतिक लोग सभी अपने स्वार्थ की पूर्ति में भी लगे होते हैं, बल्कि कुछ ही लोग ऐसे होते हैं, जो सही मायनों में समाज एवं जनहितकारी कार्यों में लगे होते हैं। अगर आप राजनीतिक हैं, तो सामाजिक कार्य कीजिए, समाज की बातों को सुनिए और सही कार्य कीजिए जिससे समाज आपके बारे में सही विचार रखेगा। अगर आप समाज के बारे में सही विचार रखेंगे, तो समाज भी आपके बारे में सही विचार रखेगा और समाज मे सही विचारों को लेकर आपके बारे में चर्चा होगी।

समाज के लिए परिवार छोड़  राजनीतिक मुकदमों को भी लेना पड़ता है

समाज के लोगों के लिए राजनीतिक होना इतना आसान नहीं है, बल्कि समाज के अधिकारों के लिए जेल तक भी जाना पड़ता है। समाज के अधिकारों के लिए आंदोलन का भी हिस्सा लेना पड़ता है, जिसमे पुलिस की लाठियां भी खानी पड़ती हैं। आंदोलन का सामना करने से कई मुकदमे भी लग जाते हैं।

सामाजिक अधिकारों के लिए इन सभी परेशानियों को झेलना पड़ता है, जिससे समाज को किसी भी तरह की परेशानी ना हो और समाज सुरक्षित रहे। अगर राजनीतिक व्यक्ति ना हों, तो समाज के अधिकारों के लिए आखिर कौन आवाज उठाएगा? इसलिए राजनीतिक एवं सामाजिक होने में बहुत अंतर है। मुझे लगता है सामाजिक होना बहुत ही उत्तम है, लेकिन राजनीतिक होने से आप समाज के लिए बहुत से कार्य आसानी से कर सकते हैं।

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