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कतार में खड़े, स्वर्ग के प्रवेशद्वार पर दो मृतकों का संवाद भाग- 2 (व्यंग्य)

कतार में खड़े, स्वर्ग के प्रवेशद्वार पर दो मृतकों का संवाद भाग- 2 (व्यंग्य)

भाई मुक्ति का प्रवेशद्वार अभी भी बंद पड़ा है। बाहर दरवाज़े पर एक नया बैनर चिपकाया गया है कि स्वर्ग के स्वास्थ्य मंत्रालय ने अपनी सीमा में प्रवेश को लेकर नए गाइडलाइंस जारी की हैं।

कौन से गाइडलाइंस? यही की बहत्तर घंटे पहले की आरटी पीसीआर टेस्ट रिपोर्ट ही अंदर प्रवेश के लिए मान्य होगी।

वाह! यहां की सरकार अपने नागरिकों के लिए कितनी सजग है। काश हमारी सरकार भी अपने नागरिकों के लिए इतनी ही सचेत रहती, तब हम यहां कतारबद्ध ना किए जाते। असमय अपनों के बीच से चले जाने का दुःख मरणोपरांत भी हमारा पीछा ना कर रहा होता।

कोरोना की भयावहता में चुनावी रैलियों में व्यस्त प्रधानमंत्री

तुम भी यार मज़ाक करते हो? गाइडलाइंस बाहर से अभेद किले जैसी ज़रूर लगती हैं, लेकिन बड़ी कुशलता से सरकार इस अभेद किले में एक चोर दरवाज़ा भी निकालती है। धूर्त व्यापारियों, अवसरवादी ठगों, त्राहिमाम में एकत्रित भीड़ देखकर अट्टहास करते सत्ता क्षुधित नेताओं और भ्रामक दवाएं बेचने वाले बाबाओं के बेरोकटोक आवाजाही के लिए विशेष पास पहले से ही तैयार कर लिए जाते हैं। इन ठगों के समूह के लिए गाइडलाइंस रद्दी का एक टुकड़ा होता है।

कोरोना की भयावहता में चुनावी रैलियों में व्यस्त गृहमंत्री

मास्क पहनना, एक-दूसरे से सोशल डिस्टेंसिंग, एक जगह दो व्यक्तियों से अधिक एकत्रित होने से बचना आदि की ज़िम्मेदारी आम जनमानस पर है, जबकि सरकार देश में लाखों की जनसंख्या लिए हुए चुनावी रैलियां गाजे-बाजे के साथ मृत्यु का खुला आयोजन करेंगी।

जबकि रैलियों में राजा बिना मास्क के ही निकलेगा और फिर मरने का दोष लोग स्वयं उठाएंगे। सरकार ने, तो अपनी पूरी ज़िम्मेदारी के साथ महामारी की गाइडलाइन्स जारी की थी, लोगों को चेताया था, मगर लोगों को भी तो समझना चाहिए कि विशेषाधिकार रेखा के पार कोई गाइडलाइंस लागू नहीं होती हैं।

क्या विशेषाधिकार लोगों को महामारी अपनी चपेट में नहीं लेती? विशेषाधिकार रेखा के पार महामारी का जाना भी वर्जित है?

नहीं, लेकिन यह विश्वास का दंभ आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव इस सीमारेखा को कभी नहीं लांघ पाएगा यानी धरती लोक की तरह यहां भी केवल दिखावा है?

देखो अभी अर्दली स्वर्ग के दीवारों पर जगह-जगह पोस्टर साट रहे हैं। स्वर्ग की सुंदरता को ध्यान में रखकर कुछ पोस्टरों को दीवारों से उतारा भी जा रहा है। सत्ता से जवाब-तलब होने की परंपरा को चलन से बाहर निकालकर ही राज्य स्वर्ग बनाए जाते हैं। सरकार द्वारा चुनावों के घोषणा पत्रों में प्रस्तावित सड़क, अस्पताल और स्कूलों की सुंदरता का यकीन दिलाते पोस्टर आम जनमानस को अपने दुखों को तनिक भी महसूस नहीं होने देते हैं।

इस कार्यवाही का कोई सकारात्मक पहलू भी तो होगा? हरदम नकारात्मक होने से भला आखिर क्या समाधान निकलेगा?

देश में रोज़ होती हज़ारों मौतों एवं आम जनमानस के लिए प्रशासन की जानलेवा लापरवाहियों की ओर से अपना मुंह फेरकर दूसरी तरफ मुड़कर यह कहना कि सब चंगा सी कौन सी सकारात्मकता है? वह क्या कहते हैं कि बी पॉज़िटिव?

अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी

राज्य में जीवन रक्षक दवाओं की किल्लत से रोज़ हज़ारों जाने जा रहीं हैं, अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी से आदमी बेबस छटपटाते हुए दम तोड़ रहे हैं। ऐसे में वैक्सीन, राजा के हठ से अपने झूठी शान के लिए दूसरे देशों को भेज दी जाएं, ताकि राजा के नाम का डंका दूर देशों तक बजता रहना रहे, क्योंकि हमारे देश में राजा ही देश है।

यह क्या कह रहे हो? राजा भला देश कैसे हो सकता है, प्रजा क्या है फिर?

प्रजा देश की परिभाषा में नहीं आती है।  पहले भी नहीं आती थी, अब ऐलानिया नहीं आती है। लाशों को ढोती गंगा और दहकते हुए श्मशान की राख उसकी सफेद कमीज़ तक नहीं पहुंचनी चाहिए।

गंगा में बहती लाशें

बिना शोर किए अस्पतालों से निकलकर बिल्कुल चुपचाप गंगा के कछारों में सो जाना देश के लिए बलिदान होना है, लेकिन राजा की सफेद कमीज़ को आदमी की लाश से मटमैला करना देश का अपमान है। इसलिए इस विकट परिस्थिति में उचित प्रबंधन और जनता की शिकायतों को कान लगाकर बड़े धैर्यपूर्वक सुनना ही एक कुशल शासक की पहचान है।

हमारे देश के राजा की शासन कुशलता इस बात पर निर्भर करती है कि कितनी कुशलता से लोगों का ध्यान असल मुद्दों से भटकाकर समाज के दो गुटों में तनाव की स्थिति बरकरार रखी जाए, क्योंकि असल मुद्दों पर चलने वाली सरकारें जनता के वाजिब सवालों के जवाब देते-देते अक्सर लड़खड़ा जाती हैं।

सवालों को कुचल कर ही पैर ज़मीन पर और कूल्हे गद्दी पर लम्बे समय तक टिकाए जा सकते हैं। यह बात हमारे देश भारत की तरह यहां के शासक भी बखूबी जानते हैं।

सेंट्रल विस्टा

“फोटोग्राफी इज स्ट्रिक्टली प्रोहिबिटेड,” ऐसा ही बैनर इंडिया गेट पर निर्माणाधीन “सेंट्रल विस्टा” के आगे लगाया गया है।

परंतु क्यों? आखिर क्यों उन्हें दुनिया से छिपाना है। प्रस्तावित स्वर्ग के नीचे हांफ रहे भारत की वीभत्स तस्वीर शासक को दुनिया के सामने नंगा करती है। गंगा की रेती में धंसी लाशों की यही नकारात्मकता सेन्ट्रल विस्टा की भव्यता को बिगाड़ रही है।

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