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बिहार की सुशासन की सरकार भ्रष्टाचार और नौकरशाही में लिप्त है

बिहार की सुशासन की सरकार भ्रष्टाचार और नौकरशाही में लिप्त है

बिहार में बाढ़ का समय है, कोरोना का दौर भी है। लोगों में बेरोजगारी अपने चरम पर है और स्वास्थ्य सेवाओं शिक्षा की हालत पहले से वर्तमान में बेहद ज़्यादा खराब है। वैक्सीनेशन को लेकर लोगों में जागरूकता की कमी है। वहीं दूसरी ओर सरकार के अपने खोखले और झूठे दावे हैं।

सरकार की तरफ से की जाने वाली कोशिशों की बातों को मान भी लें, तो आम जनमानस पर अफसरशाही इस कदर हावी है कि जो सेवाएं लोगों को मिलनी चाहिए थीं या उन तक समय रहते हुए पहुंचनी चाहिए थीं, वो नहीं पहुंच पा रही हैं।

पिछले 10 सालों से GDP विकास दर का नाम बिहार में बहुत लिया जाता रहा है। इसी सिलसिले में मेरी बात पिछले दिनों सहरसा के एक स्थानीय नेता से हो रही थी, उन्होंने वर्तमान सरकार को विज्ञापनों की सरकार कहा। इसकी वजह थी, सरकार अगर बिहारवासियों के लिए कुछ कर रही है, तो बिहार में उस काम का ना दिखना और ना ही इस बात की कोई खबर बनना।

लेकिन, ऐसे उस कार्य के लिए जो बिहार में हुआ ही नहीं और सरकार को महाराष्ट्र में उस कार्य के लिए सम्मानित किया जाता है और अगले दिन वो खबर राज्य के प्रमुख समाचार पत्रों में प्रमुखता से छपती है, तो ऐसी सरकार को विज्ञापनों की सरकार ही कहेंगे ना।

नीतीश कुमार की सरकार आम जन के विकास के पहलू पर असफल साबित हुई है

ऐसे ही एक युवा समाजसेवी कहते हैं कि नीतीश कुमार राज्य के ऐसे मुख्यमंत्री हैं, जो सक्सेसफुल फेल नेता हैं। उनका तर्क था कि राज्य में विकास नहीं हुआ है, लेकिन पूरे देश और राज्य में विकास का ढिंढोरा पीटा जा रहा है। नीतीश कुमार ने कुर्सी हथियाने के अलावा राज्य में कुछ नहीं किया है।

पत्रकार व लेखक पुष्यमित्र अपनी पुस्तक ‘रुकतापुर’ में लिखते हैं कि राज्य सरकार हर साल बाढ़ से बचाव के लिए की जाने वाली तैयारियों पर करोड़ों रुपय खर्च करती है, लेकिन आज तक उस बाढ़ का ना, तो कोई समाधान निकला है और ना ही इस से होने वाली क्षति में कोई कमी आई है।

बाढ़ के बारे में ही बात करते हुए गोपालगंज के एक स्थानीय किसान बताते हैं कि बिहार में सरकार के लिए बाढ़ एक दुधारू गाय है, जिस से सरकार से लेकर अफसरों तक की बाढ़ की तैयारी और रिलीफ फंड के नाम पर मोटी कमाई होती है।

सुशासन की सरकार के असफल होने की मुख्य वजह क्या है?

आखिर वजह क्या है? सुशासन बाबू के नाम से मशहूर होने वाले नीतीश कुमार उसी राज्य में इतने फेल साबित हो रहे हैं कि लोग उनकी बुराई करते नहीं थक रहे हैं? इसकी मुख्य वजह उनका बार-बार इधर-उधर यानी गुट बदलने वाली राजनीतिक सोच हो सकती है।

लेकिन, बिहार की सच्चाई आज यही है कि नीतीश कुमार ने बिहार में पिछले 16 सालों में सिर्फ कुर्सी की राजनीति ही की है। सड़क और बिजली को बेहतर बनाने के अलावा बिहार में किसी और क्षेत्र में कुछ खास नहीं दिखता है।

हालांकि, कुछ लोग यह कहते हुए भी पाए गए हैं कि सड़कें और बिजली दोनों केंद्र सरकार की योजना में शामिल थीं और बिहार सरकार ने उसमें भी कम ही काम किया है। लोगों ने आगे कहा कि बिहार सरकार जिस भी योजना में या जो भी अपना योजना लाती है, वो भ्रष्टाचार का अड्डा बन जाती है, उदाहरण स्वरूप सात निश्चय योजना।

आंगनबाड़ी केंद्र चलाने वाली एक सेविका ने बताया कि केंद्र पर आने वाली सरकारी सामानों का आधा यानी करीबन 50% ही बच्चों में बांटा जाता है, जबकि बाकी के 50% में ऊपर तक के लोगों की हिस्सेदारी होती है, जब मैंने उनसे पूछा कि अगर लोगों को उनकी हिस्सेदारी नहीं दी गई, तो क्या होगा? तो उन्होंने कहा कि उनके आंगनबाड़ी केंद्र को सामान मिलना बंद हो जाएगा।

मामला यहीं नहीं रुकता, बिहार में घूस देकर बहाल हुए शिक्षकों की तादाद बहुत ज़्यादा है। आप हर पंचायत में चले जाइए, वहां ऐसे लोग आपसे में ऐसी बातें करते हुए आसानी से मिल जाएंगे कि ‘इसकी बहाली नहीं हुई, क्योंकि इसने इतने पैसे नहीं दिए, इसका वहां हो जाता, लेकिन इसने उतने पैसे नहीं दिए।’

शिक्षकों की बहाली को लेकर ही मेरी बात भोजपुर के एक समाजसेवी से हुई। उन्होंने कहा कि राज्य के शिक्षकों से बिहार के कम ही बच्चों का भला होता है, उन्होंने आगे दो टूक शब्दों में कहा कि ऐसी बहाली से शिक्षकों के घर के अलावा किसी का कोई भला नहीं होता, ना ही समाज का और ना ही बच्चों का। शिक्षकों को तनख्वाह मिलती है व उनके परिवार का भरण-पोषण हो रहा है, बस सरकार इतना ही कर रही है।

कोसी क्षेत्र के एक किसान से बात करते वक्त उन्होंने बताया कि आज भी बिहार में बांस के चचरी को नाले के ऊपर रखने को विकास कहा जाता है। तमाम सरकारी दावों के बावजूद सड़क के टूटने के बाद उसके मरम्मत होने में 5-5 साल लग जाते हैं।

ऐसा ही एक मामला सीतामढ़ी का है, जहां करोड़ों की लागत से 2016 में एक पुल बनाया गया था, वह ठीक एक साल बाद 2017 की बाढ़ में पुल के आगे करीब 100 मीटर सड़क टूट गई,  अब तक उस घटना को 4 साल बीत चुके हैं, लेकिन सड़क नहीं बनी है और ना ही आज तक उसका काम शुरू हुआ है। 

एक स्थानीय मुखिया ने बताया कि मामला DPR में है, दोबारा जब टेंडर होगा तब इसके निर्माण का कार्य शुरू किया जाएगा। वहीं स्थानीय नेता, सांसद और विधायक को इस बात की कोई चिंता नहीं है।

सरकार के सरकारी तंत्र में भ्रष्टाचार और नौकरशाही व्याप्त है

भ्रष्टाचार किस कदर हावी है, वो इस बात से अंदाज़ा लगाया जा सकता है। कहानी थोड़ी फिल्मी है, लेकिन बिहार की धरती पर हो चुकी है। एक साहब ने कर्मचारी को घूस देकर बहुत दिनों से नदी में कट जाने वाली एक पुरानी सड़क को अपने नाम करवा लिया और जब 2014 में सड़क को बनाने के लिए कुछ कर्मचारी पहुंचे, तो उन साहब ने सड़क की सरकारी ज़मीन पर अपना दावा ठोक दिया और सड़क को बनने से रोकने पहुंच गए।

गनीमत रही कि गाँव के बाकी लोगों की मुस्तैदी व नकली कागज और फर्ज़ी चीज़ों की वजह से सड़क का निर्माण नहीं रूका, लेकिन मामला यहां सोचने वाली इस बात का है कि कोई सरकारी कर्मचारी दो पैसों के लालच में आकर, कैसे किसी सड़क को जो कि सरकारी सम्पत्ति है उसे अपनी निजी सम्पत्ति घोषित कर सकता है? क्या ऐसे कर्मचारी और ऐसा करवाने वालों के खिलाफ सरकार को धोखाधड़ी और भ्रष्टाचार का मामला नहीं चलाना चाहिए?

ऐसे ही मेरी बात राज्य में पिछड़ी जाति के नेता से हुई उन्होंने कहा कि सरकार पिछड़ी जाति के लिए कभी कुछ नहीं की है। पहले की अपेक्षा अब लोग थोड़े पढ़ और लिख ज़रूर लिए हैं, लेकिन गाँवों में आज भी हालत बहुत बदतर हैं। उन्होंने आगे कहा कि जो जिस जाति के नाम पर वोट लेता है, वो नेता उसी जाति का सबसे ज़्यादा शोषण करता है।

बिहार में लोकायुक्त महज़ नाम का है

अन्ना आंदोलन से जुड़े बिहार के एक कार्यकर्ता का कहना था कि नरेंद्र मोदी की सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई को लेकर बिल्कुल उदासीन है। केंद्र सरकार आज तक लोकपाल बिल पर कुछ भी कहने से कतराती रही है। हालांकि, बिहार में लोकायुक्त की नियुक्ति की गई है, लेकिन वो सिर्फ नाम मात्र के लिए है। उन्होंने आगे कहा कि एक बार जब वो शिकायत लेकर वहां पहुंचे, तो उन्हें ही गलत बता दिया गया। 

ऐसे ही राज्य के एक किसान नेता का कहना था कि राज्य में चकबंदी का ना होना किसानों के पिछड़ेपन की एक बड़ी वजह है। राज्य में व्याप्त भ्रष्टाचार का इससे भी पता चलता है कि राज्य में जो जितना सम्पन्न होता है, सरकार की तरफ से उसे उतना ही ज़्यादा सब्सिडी मिलता है।  

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