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हमारे मानव जीवन निर्माण में योग की भूमिका एवं महत्व

हमारे मानव जीवन निर्माण में योग की भूमिका एवं महत्व

“विक्रमजिर्तस्त्वस्य स्वयमेव मृगेंद्रता सद्भाव” अर्थात साहस और सामूहिक प्रयासों द्वारा इस संकटकाल पर हम विजय प्राप्त कर सकते हैं। अतः अपने विचारों को शुद्ध और दिव्य रखें। एक आशावादी दृष्टिकोण, मज़बूत इच्छाशक्ति और आध्यात्मिक  मानसिकता हमें कठिन से कठिन चुनौतियों को पार करने में सहयोग प्रदान करती है। 

दुःख का मूल कारण अज्ञानता है। वर्तमान युग में लोग धर्म से दूर होते जा रहे हैं। जितना हम सुख की तरफ दौड़ रहे हैं, उतना ही जीवन में दुखी होते जा रहे हैं। हमें अपने व्यस्त जीवन में से कुछ समय परमात्मा की भक्ति करने के लिए अवश्य निकालना चाहिए।

योग हमारे लिए रामबाण औषधि की तरह है

कोरोना संक्रमण काल के दौर में मानव जीवन के लिए योग रामबाण औषधि की तरह है। योग मानवता की न्यूनतम जीवनशैली होनी चाहिए। मानव को पूर्णमानव बनाने का यही एक सशक्त माध्यम है। योग की एक किरण ही काफी है, भीतर का तम हरने के लिए, दुनिया में शांति एवं सौहार्द स्थापित करने के लिए।

बस शर्त एक ही है कि उस किरण को पहचानने वाली दृष्टि और दृष्टि के अनुरूप पुरुषार्थ का योग हो। भारतभूमि अनादिकाल से पूरे विश्व में योग भूमि के रूप में विख्यात रही है, जिसका लाभ अब सम्पूर्ण विश्व को मिल रहा है।

योग द्वारा वैदिक ऋषियों एवं महर्षियों की तपस्या साकार हुई

भारत का कण-कण, अणु-अणु ना जाने कितने योगियों की योग-साधना से आप्लावित हुआ है। तपस्वियों की गहन तपस्या के परमाणुओं से यह माटी धन्य है और धन्य है यहां की हवाएं, जो साधना के शिखर पुरुषों की साक्षी हैं। इसी भूमि पर कभी वैदिक ऋषियों एवं महर्षियों की तपस्या साकार हुई थी, तो कभी भगवान महावीर, बुद्ध, गुरुनानकदेव एवं आद्य शंकराचार्य की साधना ने इस माटी को पवित्र किया था। 

यही धरा रामकृष्ण परमहंस की परमहंसी साधना की साक्षी है। यहां का कण-कण विवेकानन्द की विवेक-साधना का साक्षी है। क्रांत योगी से बने अध्यात्म योगी महर्षि अरविन्द की ज्ञान साधना और महात्मा गांधी की कर्मयोग-साधना का यह पवित्र स्थल है।

योग साधना की यह मंदाकिनी ना कभी यहां अवरुद्ध हुई है और ना ही कभी अवरुद्ध होगी। इसी योग मंदाकिनी से प्रधानमंत्री आदरणीय श्री नरेन्द्र मोदी जी के प्रयत्नों एवं उपक्रमों से आज समूचा विश्व आप्लावित हो रहा है, निश्चित ही यह सम्पूर्ण मानवता और सम्पूर्ण विश्व के लिए एक शुभ संकेत है। भारत आज पूरे विश्व में एक रक्षक की भूमिका में उभर कर आया है।

इसलिए सुधरे व्यक्ति, समाज व्यक्ति से, विश्व मानवता का कल्याण हो, सबकी सोच सकारात्मक हो, लोगों का जीवन योगमय हो, इसी से युग की धारा को बदला जा सकता है और कोरोना महासंकट से मुक्ति पाई जा सकती है।

बिना योग आदमी सिद्धान्तों को ढोता है, जीता नहीं

योग, चीज़ों को सही परिप्रेक्ष्य में समझने का विज्ञान है, अन्यथा बिना योग आदमी सिद्धान्तों को ढोता है, जीता नहीं। सत्य बोलता है, अनुभव नहीं करता। संसार को भोगता है, जानता नहीं। इसलिये योग सत्य तक ले जाने वाला एकमात्र राजपथ है। जो स्वदर्शी बनने की साधना साध लेता है, वह कालिदास की भाषा में ‘ज्ञाने मौनं, क्षमा शक्तौ, त्यागे श्लाघाविपर्यय’ की भूमिका में पहुंच जाता है। 

उसका चरित्र सौ टके का शुद्ध सोना बन जाता है। योग जीवन का अन्तर्दर्शन कराता है। इसके दर्पण में मनुष्य अपना बिम्ब देखता है, क्योंकि दर्पण से ज़्यादा जीवन का और कोई वक्ता नहीं होता। अतः प्रतिक्षण भारुण्ड पक्षी की तरह जागरूक बनें।

अप्रतिक्रियावादी बनें, अहिंसक एवं संतुलित बनें। सुख-दुःख, लाभ-हानि, प्रतिकूल-अनुकूल प्रसंगों में संतुलन रखें, क्योंकि सम्मत्तदंसी न करंति पावं’ अर्थात समत्वदर्शी पाप नहीं करता। बस यही योग जीवन में अवतरित करना है कि हम पुराने असत् संस्कारों का शोधन करें। नए अशुभ संस्कारों-आदतों को प्रवेश जीवन में ना होने दें।

योग मनुष्य में सकारात्मकता और प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। योग मनुष्य जीवन की विसंगतियों पर नियंत्रण का माध्यम है। विश्वभर में योग के साधक आलोक की यात्रा पर निकल चुके हैं। जिस दिन वे दीर्घश्वास का अभ्यास करते हैं, स्वयं से स्वयं का साक्षात्कार करते आलोक की पहली किरण उनके भीतर प्रवेश कर जाती है। उसके प्रकाश में कोई भी साधक अपने भीतर को देखने में सफल हो सकता है, बशर्ते उसका लक्ष्य अन्तर्मुखता हो।

आत्म-दर्शन की सोपान पर चढ़कर ही हम अपने स्वरूप को पहचान सकते हैं। अपने विकास की सार्थकता तभी होगी, जब हमें स्वयं का बोध होगा।

आत्मबोध का सबसे सरल उपाय है अभ्यास

आत्मबोध का सबसे सरल उपाय है, अभ्यास एवं एकाग्रता की साधना। जिस व्यक्ति का लक्ष्य महान होता है, वही अपनी प्रवृत्ति का उदात्तीकरण कर सकता है और अपनी और जग की समस्याओं का समाधान पा सकता है। योग मनुष्य को पवित्र बनाता है, निर्मल बनाता है, स्वस्थ बनाता है, कोरोना संक्रमण के दौर में योग रामबाण औषधि की तरह है। 

यजुर्वेद में की गई पवित्रता-निर्मलता की यह कामना हर योगी के लिए काम्य है कि ‘देवजन मुझे पवित्र करें, मन में सुसंगत बुद्धि मुझे पवित्र करें, विश्व के सभी प्राणी मुझे पवित्र करें, अग्नि मुझे पवित्र करे।’ इसलिए योग के पथ पर अविराम गति से वही साधक आगे बढ़ सकता है, जो चित्त की पवित्रता एवं निर्मलता के प्रति पूर्ण जागरूक हो, क्योंकि निर्मल चित्त वाला व्यक्ति ही योग की गहराई तक पहुंच सकता है। 

इस वर्ष यूएन के मुताबिक, पूरी दुनिया के लिए अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस 2022 की थीम ‘मानवता के लिए योग (Yoga for Humanity)’ रखी गई है।

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