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कोरोना की दूसरी लहर की भयावहता की कहानी, डॉ. मनीष गौतम की जुबानी

कोरोना की दूसरी लहर की भयावहता की कहानी, डॉ. मनीष गौतम की जुबानी

अब जब कोरोना महामारी की गति धीमी हुई है और एक बार फिर हम सब पुरानी दिनचर्या पर वापस लौट रहे हैं, ऐसे में पिछले 45 दिनों की अपनी कोरोना ड्यूटी के अनुभव को डॉ. मनीष गौतम ने साझा किया है।

डॉ. मनीष गौतम के खुद कोरोना से संक्रमित होकर ठीक होने के बाद उनको मरीज़ों को बेड आवंटन करने की ज़िम्मेदारी दी गई थी। उनकी ड्यूटी रात 9:00 बजे से सुबह 7:00 बजे तक रहती थी और पिछले महीने की 1 मई से लगातार 15 जून तक 45 दिनों तक उन्होंने यह ज़िम्मेदारी बखूबी निभाई।

डॉ. मनीष ने बताया कि यह कार्य कठिन होने के साथ-साथ बेहद भावुक भरा रहा, क्योंकि उन्हें रात भर झारखंड के अलग-अलग जगहों से कॉल आते थे, जिसमें कई मरीज़ों की स्थिति बहुत गंभीर होती थी और कई अस्पताल उन्हें इसके लिए जवाब दे चुके होते थे।

जब कोविड संक्रमण अपनी चरम सीमा पर था और हम सभी नियति के सामने लाचार हो रहे थे, तब भी यह सुनिश्चित करना था की हर मरीज़ को बेड उपलब्ध हो जाए। डॉ. मनीष ने बताया इस ज़िम्मेदारी को निभाने के क्रम में मुझे एक बार रात एक बच्ची का कॉल आया और उसने रोते हुए कहा कि ‘भैया मेरे पापा सांस नहीं ले पा रहे हैं, हम लोग रिम्स आ रहे हैं बेड मिल जाएगा ना।’ 

डॉ. मनीष ने कहा आप परेशान मत हों, मैं आपको तुरंत कॉल करता हूं। अगले ही पल जब डॉक्टर मनीष ने उस बच्ची को एलॉटेड बेड नंबर बताने के लिए फोन लगाया, तो उस बच्ची ने कहा कि थैंक यू वेरी मच भैया आपने इतनी ज़ल्दी बेड अरेंज किया, लेकिन मेरे पापा अब इस दुनिया में नहीं रहे, लेकिन आपको थैंक्यू आप मदद किए।

इस वाकये ने डॉ. मनीष को अंदर तक झकझोर कर रख दिया और उन्होंने बताया कि आज भी उनका मन उस बच्ची का दुख और पीड़ा का सोच कर दुख से भर जाता है।

डॉ. मनीष बताते हैं कि कोरोना की इस दूसरी लहर ने कई लोगों को समय और मौका ही नहीं दिया कि वह अस्पताल पहुंच पाएं और कई लोगों ने इसी तरह अस्पताल पहुंचने से पहले ही दम तोड़ दिया। वह समय हम सबके लिए बेहद कठिन था। सभी चिकित्सक स्वास्थ्य कर्मी और प्रशासन सरकार एक ऐसी परिस्थिति से लड़ रहे थे, जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी।

ऐसे में हम आज एक बार फिर ऐसी स्थिति में हैं, जब सब कुछ सामान्य सा लग रहा है, लेकिन हमें यह ज़रूर याद रखना चाहिए कि इस महामारी ने हमेशा हम पर अचानक वार किया है, जब हम थोड़े भी लापरवाह और बेफिक्र हुए हैं।

 इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि हमें भविष्य में इससे भी भयावह स्थिति का सामना करना पड़ सकता है, इसलिए हम सभी झारखंड वासियों को अपनी सूझबूझ और एक-दूसरे के प्रति सहानुभूति का परिचय देना होगा नहीं, तो आगे भी किसी बच्ची को अपने माता-पिता या भाई-बहन को खोना पड़ सकता है।

यह ज़िम्मेदारी हर एक व्यक्ति की है, क्योंकि इस महामारी से लड़ना अकेले सरकार प्रशासन और चिकित्सक एवं स्वास्थ्य कर्मियों के बस का नहीं है। इसमें जन सहयोग सबसे ज़्यादा ज़रूरी है। अब जब हम अनलॉक 3 की ओर बढ़ रहे हैं तब हमें फिर से कोविड एप्रोप्रियेट बिहेवियर एवं उन सारे नियमों को अपने जीवन का हिस्सा बना लेना चाहिए, जो मानवता की रक्षा के लिए बेहद ज़रूरी हैं वरना कई लोग अपने प्रियजनों को इसी तरह खोते रहेंगे।

नोट- डॉ. मनीष गौतम, रिम्स हॉस्पिटल रांची(झारखण्ड) में डेंटिस्ट के रूप में कार्यरत हैं।  

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