डाॅ. मनीष गौतम रांची के वरिष्ठ दंत चिकित्सक हैं और रिम्स रांची के दंत संस्थान में कार्यरत हैं। इसके साथ सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में निरंतर अपनी सेवाएं दे रहे हैं। हाल के दिनों में लोगों द्वारा चिकित्सकों पर हो रही क्रूरता और अमानवीय हिंसा पर उन्होंने अपनी राय व्यक्त की है।
डॉ. मनीष गौतम ने बताया कि कोरोना संक्रमण की पहली लहर में 748 एवं दूसरी लहर में 624 चिकित्सक लोगों की जान बचाते हुए, हम सब को छोड़ कर चले गए। जिसमें ज़्यादातर चिकित्सक युवा वर्ग के ही थे और अपनी पीजी की पढ़ाई कर रहे थे।
फिर भी वर्तमान समय में भी हर चिकित्सक हर व्यक्ति को बचाने के लिए पूरी मेहनत और समर्पण भाव से लगा हुआ है। डॉक्टर मनीष बताते हैं कि जहां एक ओर इस कोरोना में लोगों के पारिवारिक रिश्ते भी अंतिम समय में साथ छोड़ रहे थे। वहीं अस्पतालों में चिकित्सक इलाज के साथ-साथ उनके अंतिम पलों के साथी बनकर उनके आखिरी पलों को यादगार बना रहे थे।
लेकिन इसी बीच असम से आई एक खबर ने पूरे डॉक्टर समुदाय के मन को गहरी ठेस पहुंचाई। एक युवक डॉक्टर को ड्यूटी के दौरान मरीज़ों के परिजनों द्वारा उग्र भीड़ इकट्ठा कर बेरहमी से पिटाई कर लहूलुहान कर दिया गया।
कोरोना मरीज़ों के परिजनों एवं डॉक्टर्स में बढ़ता टकराव
यह घटना कोई पहली घटना बिल्कुल नहीं थी, बल्कि कई दिनों से चलती आ रहे घटनाक्रमों में से सबसे ताजा थी। इस दुखद खबर ने मानो सभी चिकित्सकों को, जो कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी अपना योगदान दे रहे थे, उन सभी को अंदर तक झकझोर कर रख दिया। विभिन्न स्तरों पर कई चिकित्सा संगठनों द्वारा इसके विरोध में प्रदर्शन शुरू हुए और असम सरकार ने दोषियों पर सख्त कार्रवाई के आदेश दिए।
इस एक घटना ने इस ज्वलंत मुद्दे को फिर से राष्ट्रीय स्तर पर ला दिया था, लेकिन आज देश के कोने-कोने में रोज़मर्रा में ऐसी छिटपुट घटनाएं होना बहुत आम बात हो गई है। डॉक्टर मनीष का कहना है कि इन घटनाओं को बंद करने के लिए इस पर पूरे समाज में एक गहन चर्चा की ज़रूरत है।
समाज एक तरफ डॉक्टरों को मान प्रतिष्ठा और कई बार भगवान का दर्ज़ा देता है, वहीं दूसरी तरफ ऐसी घटनाएं हो जाती हैं। लोगों को यह समझने की ज़रूरत है कि चिकित्सा-विज्ञान, किसी गणित के फार्मूले पर आधारित नहीं है, जो हर बार एक समान परिणाम दें, बल्कि हर इंसान का शरीर हर इलाज के प्रति अलग-अलग प्रतिक्रिया देता है।
ऐसी घटनाएं एक डॉक्टर को किसी भी जोखिम भरे इलाज करने से रोकेंगी और डॉक्टर गंभीर मरीज़ों के इलाज से बचेंगे, क्योंकि यह डर उन्हें सताएगा कि अगर उनका इलाज सफल नहीं हुआ, तो उनके साथ भी ऐसी घटनाएं हो सकती हैं और अगर ऐसी सोच अपनाकर चिकित्सक जोखिम लेना बंद कर दें, तो उससे नुकसान आम जनता को ही होगा फिर चिकित्सक केवल ऐसे ही मरीज़ों का इलाज करेंगे जिसमें वह इलाज के शत प्रतिशत सफल होने की संभावना व्यक्त करते हों।
हमारे देश का स्वास्थ्य तंत्र बुरी तरह से जर्जर है
हमारे देश की ज़्यादातर जनता शासकीय अस्पतालों पर अपने इलाज के लिए निर्भर रहती है और ऐसे अस्पतालों में कैसी सुख-सुविधा मौजूद रहती है, यह सबको अच्छे से सर्वविदित है। ज़्यादातर अस्पतालों में मूलभूत सुविधाएं नदारद होने के अलावा मैन पावर की भी भारी किल्लत रहती है।
कई नियुक्तियां सरकारी फाइलों में फंसी रहती हैं, तो कई स्वास्थ्य कर्मी संविदा पर नाम मात्र की तनख्वाह पर अपनी ड्यूटी कर रहे होते हैं, लेकिन इन सब का गुस्सा ड्यूटी पर काम कर रहे चिकित्सकों पर ही फूटता है। ऐसे में सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में काम कर रहीं महिला डॉक्टरों की सुरक्षा भी संदेह के घेरे में रहती है।
अभी हाल ही में डॉक्टरों ने इंडियन मेडिकल सर्विसेज (आई एम एस) कैडर की मांग की है, जो आईएएस अधिकारियों की जगह स्वास्थ्य संबंधित विभाग को संचालित करने के लिए बनाया जाए। डॉक्टरों का कहना है कि स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं, समाधान एवं संचालन डॉक्टर्स ही बेहतर तरीके से कर सकेंगे।
डॉक्टरों ने साथ ही दोषियों के खिलाफ सरकार से कड़े नियम बनाने का आग्रह किया है और सरकार इसके लिए लगातार निर्देश भी जारी कर रही है लेकिन जब तक लोग इन ज़मीनी समस्याओं के प्रति और डॉक्टरों के प्रति संवेदनशील नहीं होंगे, तब तक ऐसी घटनाओं पर रोक लगना मुश्किल है।
हमें चिकित्सकों पर हमला नहीं, उनके अप्रितम साहस को मज़बूती देनी चाहिए
लोगों को यह समझना होगा कि डॉक्टर कई बार चाह कर भी प्रशासनिक बाधाओं के कारण वह इलाज मुहैया नहीं करा पाता, जो वह कर सकता है और हमें यह भी समझना होगा कि किसी भी इलाज के बाद इंसानी शरीर में उस इलाज की प्रतिक्रिया एक जैसी नहीं हो सकती और विपरीत परिणाम की संभावना के लिए भी हमेशा तैयार रहना चाहिए और संयम से काम लेना चाहिए।
चिकित्सक को अकेला पाकर हिंसा करना और कानून को हाथ में लेने जैसी अमानवीय कृत्य, तो बिल्कुल नहीं करना चाहिए। एक चिकित्सक को अपनी पूरी पढ़ाई समाप्त करते-करते सालों लग जाते हैं और तब तक उनके ज़्यादातर साथी कोई ना कोई नौकरी शुरू कर देते हैं, जहां उनके साथी विदेशों में जाकर विदेशी जीवनशैली और अच्छी सैलरी में काम करते हैं।
वहीं यहां डॉक्टरों को सुदूर गाँवों में अपनी सेवाएं देनी होती हैं, जहां मूलभूत एवं आधारभूत सुविधाएं भी नदारद रहती हैं और फिर उस पर यह हिंसा का प्रकोप भी झेलना पड़ता है। पूरा चिकित्सा जगत हमारे इस समाज से भी यह अपेक्षा रखता है कि जब कभी एक चिकित्सक पर इस तरह की कोई अमानवीय हिंसा या घटना होती है, तो सभी को आगे आकर चिकित्सक और उसके परिवार के साथ खड़े होना चाहिए और दोषियों पर कड़ी से कड़ी कार्रवाई के लिए मांग करनी चाहिए।
क्योंकि, अक्सर यही देखा गया है कि चिकित्सकों को अपने हक की लड़ाई अकेले ही लड़नी पड़ती है। इस पर सिविल सोसायटी के लोगों को और विभिन्न संस्थाओं को आगे आकर काम करना चहिए, ताकि आने वाली पीढ़ी में कोई अभिभावक अपने बच्चे को चिकित्सक बनाने में संकोच ना करे।
नोट- डॉ. मनीष गौतम, रिम्स हॉस्पिटल रांची (झारखण्ड) में डेंटिस्ट के रूप में कार्य करते हैं।