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“हमें अपने भूत और भविष्य के बजाय वर्तमान पर अपना ध्यान केंद्रित करना चाहिए”

"हमें अपने भूत और भविष्य के बजाय वर्तमान पर अपना ध्यान केंद्रित करना चाहिए"

दुनिया भर की उलझनों से लदा मनुष्य शायद खुद को पहचानना ही भूल गया है, खुद को समय देने के लिए उसके पास समय ही नहीं है। अपनी ज़िंदगी से ज़्यादा हमें दूसरों की ज़िंदगी से लगाव है। हमारी उत्सुकता की झील दूसरों के जीवन में इतनी ज़्यादा खर्च हो जाती है कि हमारे खुद के ही जीवन के लिए पानी की एक बूंद तक नहीं बचती है।

गुलज़ार साहब ने भी क्या खूब कहा है कि ‘उम्र ज़ाया कर दी लोगों ने औरों के वजूद में नुक्स निकालते-निकालते इतना खुद को तराशा होता तो आज फरिश्ते बन जाते’

मैं यह स्पष्ट कर दूं कि खुद के लिए समय निकालने से यह तात्पर्य नहीं है कि आप बैठ कर मन में चल रहे अपने विचारों में उलझ कर ही रह जाएं। विचार आपको अतीत और भविष्य के बीच सैर कराने के अलावा और कुछ भी नहीं करेंगे। भले ही आप सिर्फ अपने बारे में ही क्यों नहीं सोच रहे हों, मगर आप भी अपने विचारों में अतीत या भविष्य में से ही किसी जगह पर खुद को पाएंगे।

आपका अस्तित्व वर्तमान में है, जीवन वर्तमान में है, आप वर्तमान में हैं। खुद को पहचानना है, खुद को समय देना है, तो वर्तमान में रहिए। सिर्फ वर्तमान ही एक ऐसा स्थान है, जहां आप खुद को पा सकते हैं। आप खुद को ख्यालों में नहीं ढूंढ सकते, जीवन आज इसी समय अभी और इसी पल घटित हो रहा है, लेकिन हम तो बस ख्यालों में खोए हुए हैं। हम जीवन जीना, तो भूल ही गए हैं।

आचार्य रजनीश कहते हैं कि तुम रास्ते पर चलते लोगों को देखो। वे उस रास्ते पर चल रहे हैं ऊपर-ऊपर भीतर दूसरे ही रास्ते हैं, जिन पर उनका मन चल रहा है। लोगों को खाना खाते देखो। कौर बना रहे हैं, मुंह में खाना डाल रहे हैं।

ज़रा गौर से उनके चेहरे को देखो, उनके भीतर कुछ और ही चल रहा है शायद उन्हें पता भी ना हो कि वे भोजन कर रहे हैं। वे किसी दूसरे लोक में किसी सपने में संलग्न हैं। उनके होंठ कांप रहे हैं, बात चल रही है किसी और से, जो वहां मौजूद ही नहीं है।

यह जीवन एक ऐसी पहेली है, जहां आप हर पल खुद को खो रहे हैं, कभी भविष्य के पीछे भाग कर, तो कभी अतीत की कैद में फंसकर परंतु इन विचारों के माध्यम से आ रहे अतीत और भविष्य की उलझनों से आखिर छुटकारा कैसे पाया जाए?

आपकी दिनचर्या में शामिल जितने भी कार्य हैं, उनको करें तो पूर्ण रूप से उस पल में मौजूद होकर करें। आप स्नान करें, तो आपके बदन पर पड़ रही पानी की हर एक बूंद के साक्षी हो जाएं। आप भोजन करें, तो आपका हर एक कौर पर ध्यान केंद्रित रहे। कुछ नहीं भी कर रहे हों, तो अपना ध्यान अपनी सांस पर लगाएं। खुद को ऐसे देखें जैसे किसी और को देख रहे हों।

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