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उधम सिंह ने उठाई थी अत्याचारियों के खिलाफ आव़ाज, दुनियाँ को भारतीय वीरता का दिया संदेश

 

31 जुलाई को भारत मां के वीर सपूत उधम सिंह की पुण्यतिथि मनाई जाती है। जिन्होंने बड़ी ही बहादुरी से दुश्मन को उसी के घर में घुसकर मारा और जलियांवाला बाग नरसंहार का बदला लिया। सरदार उधम सिंह का नाम भारत की आज़ादी के इतिहास में एक महान क्रांतिकारी के रूप में दर्ज किया गया है। उधम सिंह गदर पार्टी के सदस्य थे और भारत में पंजाब के पूर्व उपराज्यपाल माइकल ओ’ ड्वायर की हत्या को लेकर भारत की आज़ादी की लड़ाई के इतिहास में उनका नाम दर्ज हैं। उधम सिंह का जन्म पंजाब के संगरूर में हुआ था। तब इनका नाम शेर सिंह रखा गया था। कहा जाता है कि साल 1933 में उन्होंने पासपोर्ट बनाने के लिए ‘उधम सिंह’ नाम रखा था। हालांकि कच्ची उम्र में ही उधम सिंह के सर से माँ-बाप का साया उठ गया। जिसके बाद उनका पालन-पोषण सेंट्रल खालसा अनाथालय, पुतलीघर में हुआ। कई इतिहासकार ऐसा भी मानते हैं कि अनाथालय में शामिल होने के बाद उनका नाम उधम सिंह रखा गया था।

उधम सिंह को सन् 1940 में फांसी की सजा सुनाई गयी थी, माना जाता है कि उधम सिंह ने 13 मार्च 1940 को ड्वायर की हत्या 1919 में हुए जलियांवाला बाग हत्याकांड का बदला लेने के लिए की थी। जिसके बाद उधम सिंह पर मुकदमा चलाया गया और ड्वायर की हत्या के लिए उधम सिंह को 1940 में दोषी ठहराया गया और उन्हें फांसी दे दी गई। दरअसल 13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग नरसंहार हुआ था। उस दौरान उधम सिंह वहां मौजूद थे और उन्होंने अपनी आंखों से ड्वायर की करतूत देखी थी। जिनमें हजारों लोगों (क्रांतिकारियों) की मौत हुई थी। वे उन हज़ारों भारतीयों की हत्या के गवाह थे, जो जनरल डायर के आदेश पर गोलियों से भून दिए गये थे। उस क्रूर नज़ारे के बाद उधम सिंह पूर्ण रूप से आक्रोशित हो चुके थे और उन्होंने जलियांवाला बाग की मिट्टी हाथ में लेकर जनरल डायर को सबक सिखाने की प्रतिज्ञा ली। इसके बाद वो देश के क्रांतिकारियों के साथ आज़ादी की लड़ाई में शामिल हो गए।

 

सरदार उधम सिंह जलियांवाला बाग नरसंहार का बदला लेने के लिए तैयारी करने लगे थे। वे अपने सभी साथियों और क्रांतिकारियों से मदद लेते रहे और उनके मदद से कुछ पैसे इकट्ठा कर देश के बाहर चले गए। इसके बाद उन्होंने विदेश यात्रा कर क्रांति के लिए पर्याप्त धन इकठ्ठा किया लेकिन इस दौरान आज़ादी की लड़ाई में उनके कई सारे क्रांतिकारी साथी शहीद हो चुके थे। ऐसे में उनके लिए आंदोलन चलाना दिन-प्रतिदिन मुश्किल हो रहा था लेकिन उधम सिंह ने हार नहीं मानी और अपनी प्रतिज्ञा पर कायम रहते हुए लगातार मेहनत करते रहे। एक लम्बे संघर्ष और समय के बाद उधम सिंह जनरल डायर का सामना करने के लिए तैयार थे लेकिन उधम सिंह के लंदन पहुंचने से पहले जनरल डायर की बीमारी के चलते मृत्यु हो गयी थी। जनरल डायर की मौत सन् 1927 में ब्रेन हेमरेज और कई अन्य बीमारियों से हुई थी।

जनरल डायर की मौत के बाद उधम सिंह के अंदर दहकती हुई आग शांत नही हुई थी। ऐसे में उधम सिंह के आक्रोश का निशाना जलियांवाला बाग नरसंहार के वक़्त पंजाब के गवर्नर रहे माइकल फ्रेंसिस ओ’ ड्वायर बने । दरअसल माइकल फ्रेंसिस ओ’ ड्वायर ने जलियांवाला बाग नरसंहार को उचित ठहराया था। वहीं सरदार उधम सिंह जलियांवाला बाग नरसंहार से आक्रोशित थे, ऐसे में उधम सिंह का निशाना अब ड्वायर था ।

13 मार्च 1940 को रॉयल सेंट्रल एशियन सोसायटी की लंदन के काक्सटन हॉल में बैठक थी, वहां माइकल ओ’ ड्वायर भी स्पीकर्स में से एक था । ऐसे में उधम सिंह के पास एक अच्छा मौका था जब वह अपने अन्दर उठ रही ज्वाला को शांत कर सकते थे और अपने साथियों के क्रूर ह्त्या का बदला ले सकें। उधम सिंह उस दिन काक्सटन हॉल पहुंच गए ।

उधम सिंह बहुत ही चालाकी से एक किताब में अपनी रिवॉल्वर छिपाकर हॉल में पहुंचे थे और सही मौके का इंतज़ार करने लगे, क्योंकि वे आज किसी भी कीमत पर यह मौका अपने हाथ से गवाना नहीं चाहते थे। बैठक के बाद दीवार के पीछे से मोर्चा संभालते हुए उधम सिंह ने माइकल ओ’ ड्वायर को निशाना बनाया। उधम सिंह के बन्दूक से निकली हुई दो गोलियां सीधे ड्वायर को जा लगी और मौके पर ही ड्वायर की मौत हो गई। उधम सिंह ने वहां से भागने की बिल्कुल भी कोशिश नहीं की और अरेस्ट हो गए। इस प्रकार उधम सिंह ने अपना प्रण पूरा किया और जलियांवाला बाग नरसंहार का बदला लेते हुए दुनिया को भारतीय वीरता और दृढ़ता का संदेश दिया ।

माना जाता है कि अपने मुकदमे की प्रतीक्षा करते हुए, उधम सिंह 42 दिनों की भूख हड़ताल पर चले गए, फिर बाद में उन्हें जबरन खाना खिलाया गया। इसके बाद उधम सिंह पर मुकदमा चलाया गया और 4 जून 1940 को उन्हें हत्या का दोषी ठहराया गया। 31 जुलाई, 1940 को उन्हें पेंटनविले जेल में फांसी दे दी गई। इस तरह उधम सिंह भारत की आजादी की लड़ाई के इतिहास में अमर हो गए। अंग्रेजों को उनके घर में घुसकर मारने का जो काम सरदार उधम सिंह ने किया था। लोगों ने उसकी जमकर सराहना की और वह क्रांतिकारियों के लिए एक मिशाल बन गए। उस दौरान पंडित जवाहरलाल नेहरू ने उधम सिंह की तारीफ करते हुए कहा कि माइकल ओ’ ड्वायर की हत्या का अफसोस तो है, पर ये बेहद जरूरी भी था। इस घटना ने देश के अंदर क्रांतिकारियों को एक नई ऊर्जा दी है और आन्दोलान में तेजी आई है। ब्रिटेन ने उधम सिंह के अवशेष 1974 में भारत को सौंपा। उधम सिंह के अवशेष अमृतसर के जलियांवाला बाग में संरक्षित हैं। उधम सिंह को शहीद-ए-आज़म (महान शहीद) की उपाधि दी गई। वहीं उधम सिंह के हथियार, एक चाकू, एक डायरी और शूटिंग से एक गोली ब्लैक म्यूजियम, स्कॉटलैंड यार्ड में रखी गई है।

उधम सिंह, भगत सिंह को अपना गुरु मानते थे, क्योंकि उधम सिंह क्रांतिकारी भगत सिंह के विचारों और उनके काम से बेहद प्रभावित थे। उधम सिंह को देशभक्ति गाने गाना बहुत अच्छा लगता था। साथ ही वे राम प्रसाद बिस्मिल के भी फैन थे। यदि इतिहास के पन्नों को खंगाले तो हमें इस बात का भी जिक्र मिलता है कि उधम सिंह ने जलियांवाला बाग नरसंहार के दिन ही वहां की मिट्टी को हाथ में लेते हुए ठान लिया था कि इस इस क्रूरता और अत्याचार का बदला लेना है। मिलते-जुलते नाम के कारण बहुत से लोग यह भी मानते हैं कि उधम सिंह ने जनरल डायर को मारा। लेकिन ऐसा नहीं था इतिहासकारों का एक वर्ग यह भी मानता है कि ड्वायर की हत्या के पीछे उधम सिंह का मकसद जलियांवाला बाग का बदला लेना नहीं बल्कि ब्रिटिश सरकार को एक कड़ा संदेश देना और भारत में क्रांति भड़काना था। हालांकि उधम सिंह ने एक क्रांतिकारी के रूप में क्रूर शासकों को एक बड़ा सन्देश दिया था और दुनिया में भारतीय वीरता का परचम लहराया था। इस कारण आज भी वह इतिहास के पन्नो के साथ साथ लोगों के दिलों में क्रांति की आग बनकर ज़िंदा हैं।

 

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