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क्या NEET में ओबीसी आरक्षण खत्म हो गया है?

 

NEET में ओबीसी आरक्षण का मामला आखिर है क्या?

यें सारा मामला ऑल इंडिया कोटा को लेकर है

आखिर यें ऑल इंडिया कोटा’ क्या है?

ये ऑल इंडिया कोटा राज्यों के मेडिकल कॉलेजों में सीटों का वो हिस्सा है जो राज्य के कॉलेज, केंद्र सरकार को सौंप देते हैं।

NEET परीक्षा में ओबीसी आरक्षण

सुप्रीम कोर्ट के एक निर्देश के अनुसार राज्य अपने मेडिकल कॉलेज की 15 फ़ीसदी अंडर ग्रेजुएट सीटें और 50 फ़ीसद पोस्ट ग्रेजुएट सीटें केंद्र सरकार को देते हैं।

केंद्र सरकार के हिस्से में आने वाली इन सीटों को ‘ऑल इंडिया कोटा’ का नाम दिया गया है। इन सीटों पर देश के किसी भी राज्य के छात्र छात्रा दाखिला ले सकते हैं। ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि ज़्यादातर राज्यों के कॉलेजों में स्थानीय छात्रों को तरजीह दी जाती थी।

ऑल इंडिया कोटा की सीटें बांटने और काउंसलिंग का काम केंद्रीय स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय (डीजीएचएस) करता है। इसके अलावा जो सीटें राज्य के हिस्से में होती हैं उन पर राज्य सरकार के अधिकारी काउंसलिंग करते हैं। ये सीटें ज़्यादातर राज्य के छात्रों को ही आवंटित की जाती हैं। साल 1985 से 2007 तक ऑल इंडिया कोटा की सीटों पर आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं था।

AIQ में आरक्षण 2007 में शुरू हुआ

साल 2007 में सुप्रीम कोर्ट ने ऑल इंडिया कोटा में आरक्षण लागू किया और राज्य सरकार की तरह ही केंद्र सरकार के हिस्से की सीटों पर भी आरक्षण लागू किया गया।

इसमें 7.5 फ़ीसदी आरक्षण अनुसूचित जनजातियों के लिए और 15 फ़ीसदी आरक्षण अनुसूचित जाति के लिए दिया गया। जबि ओबीसी को दिए जाने वाले आरक्षण का ज़िक्र तक नहीं किया गया। जबकि 2006 में केन्द्रीय स्तर पर दाखिले में ओबीसी आरक्षण लागू हो चुका था!

इसके बाद साल 2010 में मेडिकल काउंसिल ऑफ़ इंडिया नीट परीक्षा प्रणाली लेकर आई और नीट को 2017 में पूरे देश में लागू कर दिया गया। अब किसी भी छात्र को मेडिकल कॉलेज में दाखिला लेने के लिए नीट की परीक्षा देनी पड़ती है और इसके कटऑफ़ से ही ऑल इंडिया कोटा के में दाखिला मिलता है।

लेकिन ओबीसी छात्र छात्राओं को ऑल इंडिया कोटा में 27 फ़ीसदी आरक्षण का फ़ायदा नहीं मिलता है।

ओबीसी कर्मचारियों की अखिल भारतीय फेडरेशन का दावा है कि 27 फ़ीसदी ओबीसी आरक्षण साल 2017 से साल 2020 तक छात्रों को न मिलने के कारण 11 हज़ार से ज़्यादा ओबीसी समुदाय से आने वाले छात्र छात्राओं का दाखिला नहीं हो पाया। यें सीटें सामान्य कोटे के तहत भरी गई।

फैडरेशन का दावा है कि साल 2017 से लेकर 2020 के दौरान इन सीटों पर ओबीसी आरक्षण ना मिलने से

• पोस्ट ग्रेजुएट प्रोग्राम (मेडिकल-एमडी, एमएस) में 7,307

• अंडर-ग्रेजुएट प्रोग्राम (मेडिकल-एमडी, एमएस) में 3,207

• पोस्ट ग्रेजुएट प्रोग्राम (डेंटल) में 262 और

• अंडर-ग्रेजुएट प्रोग्राम में 251 छात्रों का दाखिला नहीं हुआ ।

यहीं समस्या इस साल भी है, इस साल भी ऑल इंडिया कोटा में ओबीसी छात्रों के लिए आरक्षण का प्रावधान नहीं है।

यहां सबसे जरूरी बात ये है कि केंद्र सरकार के मेडिकल कॉलेजों में अन्य पिछड़ा वर्ग को 27 फीसदी, अनुसूचित जाति को 15 फीसदी और अनुसूचित जनजाति को 7.5 फीसदी आरक्षण दिया जा रहा है।

सुप्रीम कोर्ट में 2015 से एक और मामले में सुनवाई चल रही है। ये मामला सलोनी कुमारी बनाम केंद्रीय स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय (डीजीएचएस) का है, जिसमें ऑल इंडिया कोटा में ओबीसी आरक्षण न मिलने को लेकर ही सवाल उठाया गया है।

केंद्र सरकार का मानना है कि इस वजह से ऑल इंडिया कोटा में ओबीसी आरक्षण पर कोई निर्णय तब तक नहीं लिया जा सकता जब तक सलोनी कुमारी केस में सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला ना आ जाए।

भारतीय न्याय व्यवस्था की इस कछुए वाली चाल का नुक़सान हमेशा इस देश के वंचित तबकों को झेलना पड़ा है और वहीं इस मामले में हो रहा है।

निष्कर्ष: ऐसा बिल्कुल नहीं है कि NEET में ओबीसी आरक्षण खत्म कर दिया गया है। बल्कि हकीकत यें है कि यें कभी दिया ही नहीं गया।

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