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जनसंख्या नियंत्रण कानून

जनसंख्या क़ानून !

जनसंख्या क़ानून का एकमात्र उद्देश्य यह है कि कोरोना में हुई मौतों को लोग देश का बोझ कम होना समझे और इस मुद्दे पर लोग नाराज़ ना हो । भागवत जी पहले ही बोल चुके हैं कि जो लोग मरे हैं वो मुक्त हो चुके है ।

जनसंख्या ऐसेट है या बोझ , इस पर व्यापक बहस हो सकती है । लोगों के विचार इस मुद्दे पर अलग अलग हो सकते हैं । जनसंख्या पर भाजपा का स्टैंड सदा से व्यावहारिक ना होकर राजनीतिक ही रहा है । एक तरफ़ विश्व हिंदू परिषद , बजरंग दल और दूसरे संघ द्वारा पोषित संगठन चार बच्चे , आठ बच्चे और दस बच्चे पैदा करने का आह्वान करते हैं और दूसरी तरफ़ उनकी राजनीतिक शाखा भाजपा चुनाव से ठीक पहले जनसंख्या क़ानून जैसे ढकोसला करके इसे हिंदू मुस्लिम बहस बनाने की कोशिश करती है ।

आमतौर से हिंदू हो या मुसलमान , सिख हो या ईसाई , अगर पढ़े लिखे होते हैं तो उनके यहाँ बच्चे कम होते हैं और अनपढ़ होते हैं तो बच्चे ज़्यादा होते हैं । प्रॉपगैंडा में माहिर संघ ने देशव्यापी प्रॉपगैंडा चलाया कि मुसलमान चार बीवी और चालीस बच्चों में यक़ीन रखते हैं लेकिन डेटा बताता है कि दो से ज़्यादा बच्चों वाले जोड़ो में 83% हिंदू और 13% मुसलमान है , अन्य धर्म के लोग केवल 4% हैं । आँकड़े यह भी बताते हैं कि जैसे जैसे देश में शिक्षा लोगों तक पहुँची है वैसे वैसे देश की जनसंख्या वृद्धि की दर भी कम हुई है ।

चीन ने जनसंख्या क़ानून बनाया जो उसे वापस लेना पड़ रहा है क्यूँकि चीन बूढ़ों का देश होता जा रहा है , जापान में भी यही समस्या है । पश्चिम के कई देश अपने जोड़ो को बच्चे पैदा करने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं क्यूँकि वहाँ के जोड़े बच्चों की ज़िम्मेदारी से डरकर बच्चे कम पैदा कर रहे हैं ।

जनसंख्या पर एक स्पष्ट नीति बने , वो किसी चुनाव को जीतने के लिए या किसी समाज से नफ़रत के आधार पर ना बने बल्कि देश विदेश के एक्स्पर्ट से राय मशवरा करके बने और पूरे देश के लिए बने। उसमें इस पर भी विचार हो कि आदिवासी , दलित , मुस्लिम , पिछड़े वर्ग में यह समस्या ज़्यादा क्यों है और इन लोगों की सोच में इसके लिए बदलाव कैसे आएगा ?? चीन ने अधिक जनसंख्या को ऐसेट में कैसे बदला और क्या हम भी कुछ ऐसा कर सकते हैं ??

बहस तो वैसे ही होगी जैसे सरकार चाहेगी क्यूँकि मीडिया और सरकार एक दूसरे के पूरक बन चुके है । लेकिन इतना तय है कि चुनावी फ़ायदे के लिए लाए गए इस बिल से किसी समाज को कोई फ़ायदा नहीं होगा ।

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