Site icon Youth Ki Awaaz

जनेश्वर ने सुनाया फरमान, बनाओ ‘टीपू’ को ‘सुल्तान’

जनेश्वर ने सुनाया फरमान, बनाओ ‘टीपू’ को ‘सुल्तान’

समाजवादी पार्टी के सीनियर नेता, सांसद जनेश्वर मिश्र अपने निजी सचिव एस एस तिवारी के साथ तत्कालीन सपा सरकार के एक प्रभावी मंत्री के लखनऊ स्थित आवास पर पहुंचे थे… मंत्री जी का आग्रह था कि मिश्रा जी उनके आवास पर एक चाय उनके साथ पी लें, तिवारी बताते हैं कि जनेश्वर मिश्र खुद गाड़ी चलाकर और तिवारी जी को बगल में बिठाकर मंत्री जी के आवास पहुंचे… तो मंत्री महोदय विदेशी नस्ल के कुत्ते के साथ अपने घर के गार्डेन में खेल रहे थे, मिश्रा जी को देखते ही बोले, ‘पंडित जी ये कुत्ता हमने विदेश से मंगाया है, किनारों पर रखे सजावटी गमले दिखाते हुए मंत्री जी मिश्रा जी को घर के अंदर ले गए… और आलीशान सोफे पर बैठने के लिए कहते हुए बोले- ये सोफा बहुत महंगा है… और उस सोफे में लगी लकड़ी की खासियत बताने लगे… मिश्रा जी भी विनम्रता से हर चीज का रेट पूछते रहे… विदा लेते वक्त जनेश्वर मिश्र बोले- ‘यार तुम नेता तो नहीं हो… और समाजवादी तो बिल्कुल नहीं हो… इतना पैसा और वक्त अपने आराम पर खर्च करते हो, जनता के लिए क्या करते होगे ?’ मिश्रा जी की ये बात सुनकर मंत्री महोदय खामोश हो गए ।

जनेश्वर मिश्र यानि ‘छोटे लोहिया’ ऐसे ही थे… लोहिया की सियासत की शुरुआत होती है एक हार से… और हार भी छोटी मोटी नहीं… बल्कि देश के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की बहन विजय लक्ष्मी पंडित से.. सीट थी फूलपुर और साल था 1967 ।

आंदोलन की वजह से जनेश्वर जेल में थे.. और उनके साथियों छुन्नन गुरू और सालिगराम जायसवाल ने उन्हें चुनाव लड़ने को कहा… चुनाव से महज़ 7 दिन पहले ही जनेश्वर जेल से बाहर आ सके थे… लेकिन सिसायत कुछ और ही चाहती थी… 1969 में विजय लक्ष्मी पंडित के राजदूत बनने के बाद फूलपुर सीट पर उपचुनाव हुआ, और जनेश्वर चुनावी जंग जीत गए… वो सोशलिस्ट पार्टी से सांसद बने

सदन पहुंचे तो उन्हें छोटे लोहिया का नाम राजनारायण ने दिया (राजनारायण ने रायबरेली से इंदिरा गांधी को चुनाव हराया था)
बलिया में जन्मे… जनेश्वर भारत के विकास के सपने देखते थे, समाजवादी राह के साथ देखते थे… जनेश्वर मिश्रा कई बार लोकसभा के सदस्य रहे, राज्यसभा के सदस्य रहे… और तो और मोरारजी देसाई, चौधरी चरण सिंह, वी पी सिंह, चंद्रशेखर, एच डी देवगौड़ा और इंद्र कुमार गुजराल की सरकारों में उन्होंने अहम मंत्रालय संभाले….

अगर मंत्रालयों का जिक्र करें तो पेट्रोलियम रसायन एवं उर्वरक, विद्युत परंपरागत ऊर्जा, खनन, परिवहन, संचार, रेल, जल संसाधन जैसे अहम मंत्रालय रहे…

 

लेकिन आप हैरत करेंगे जनेश्वर मिश्रा ने ना तो अपने लिए कोई घर खरीदा और ना ही कोई गाड़ी….. जनेश्वर मिश्रा ने हमेशा दिग्गजों को धूल चटाई… 1972 के चुनाव में कमला बहुगुणा, 1974 में इंदिरा गांधी के अधिवक्ता रहे सतीश चन्द्र खरे, 1978 में इलाहाबाद से लड़कर पंडित जी ने विश्वनाथ प्रताप सिंह को हराया… इसके बाद वो बीमार रहने लगे… 1984 में सलेमपुर सीट से वो चन्द्रशेखर से चुनाव हार गए…. 1989 में जनता दल के टिकट पर लड़कर इलाहाबाद से कमला बहुगुणा को हराया… 1992 से लेकर 2010 तक वो राज्यसभा सदस्य रहे…… मतलब जीते भी दिग्गजों से और हारे भी दिग्गज से…..

आज आप जिस समाजवादी पार्टी को देखते हैं… जिसने यूपी में सरकार बनाई है… मुलायम और अखिलेश दोनों मुख्यमंत्री रह चुके हैं… उस समाजवादी पार्टी की नींव जनेश्वर मिश्रा हैं…

90 के दशक में राज्य और केन्द्र दोनों जगह मुलायम और जनेश्वर की जोड़ी का सिक्का चलता था…. लखनऊ से लेकर दिल्ली तक जनेश्वर मिश्रा ने समाजवादी विचारधारा को मजबूत किया… मुलायम भी अपने संघर्ष के साथी जनेश्वर मिश्रा को कभी नहीं भूले… जनेश्वर पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रहे… राज्यसभा भेजे गए…

तो अखिलेश ने लखनऊ में करीब 376 एकड़ में एशिया का सबसे बड़ा पार्क बनाया…. जिसका नाम जनेश्वर मिश्रा पार्क रखा गया… बहुत से लोगों को ये लगता है कि अखिलेश को राजनीति में रामगोपाल लाए… किसी को लगता है आजम लाए… किसी को लगता है अमर सिंह लाए… लेकिन हकीकत ये है कि 1999 में मुलायम सिंह संभल और कन्नौज दोनों सीटों से सांसद बने थे… मुलायम ने कन्नौज सीट से इस्तीफा दे दिया….

और अब तलाश थी ऐसे प्रत्याशी की… जो कन्नौज की सीट जीत सके…. सपा कार्यालय में मुलायम और जनेश्वर मिश्रा मंथन कर रहे थे…. मुलायम ने एक एक करके कई नाम सुझाए…. नामों को सुनकर जनेश्वर मुस्कुराने लगे… तो नेता जी बोले कि पंडित जी आप कुछ छिपा रहे हैं… आपने हमसे सारे नाम पूछ लिए…. अब आप ही बताइए कि कन्नौज से कौन जीत सकता है ?

जनेश्वर मिश्रा बोले- टीपू

टीपू सुनकर नेता जी बोले- टीपू यानि अखिलेश….. मुलायम ने ना में सिर हिलाते हुए कहा कि पंडित जी अगर हमने अखिलेश को टिकट दिया तो पुत्रमोह और परिवारवाद के आरोप लगेंगे….

इस पर जनेश्वर ने कहा कि- ये लड़ाई सत्ता के परिवारवाद की नहीं बल्कि संघर्ष के परिवारवाद की है… बना दो ‘टीपू को सुल्तान’.. और इस तरह अखिलेश की पॉलिटिक्स में एंट्री हुई ।

ये कहना बिल्कुल गलत होगा कि सपा ने पंडित जी को भुला दिया, सपा ने हमेशा जनेश्वर मिश्रा का मान रखा… असल में ऐसा आपको इसलिए भी लग सकता है क्योंकि जनेश्वर मिश्रा के परिवार का कोई भी राजनीति में नहीं है…

अगर होते तो शायद आपको ये लगता है कि हां सपा ने पंडित जी का सम्मान किया… लेकिन छोटे लोहिया अलग मिज़ाज के थे… वो अखिलेश में सपा का भविष्य भांप चुके थे… मुलायम भी जनेश्वर को नहीं भूले तो अखिलेश भी नहीं भूले… जनेश्वर मिश्रा की बेटी मीना तिवारी को अखिलेश अपनी बहन मानते हैं.. और उनसे राखी बंधवाते हैं….

 

अब 5 अगस्त को जनेश्वर मिश्रा की जयंती के मौके पर सपा साइकिल यात्रा निकालने जा रही है… कवायद ब्राह्मणों के दिलों तक पहुंचने की है…. सपा की कोशिश कितनी कामयाब होगी… वक्त बताएगा….

-चन्द्रकान्त शुक्ला, पत्रकार

Exit mobile version