Site icon Youth Ki Awaaz

जब सत्यार्थी जी चन्द्रशेखर आज़ाद की कुटिया और हरदौल की समाधि पर जाकर भाव-विभोर हुये

 

शिव कुमार शर्मा

अमर शहीद चन्द्र शेखर आज़ाद की जयंती पर नोबेल शांति पुरुस्कार विजेता श्री  कैलाश सत्यार्थी का विशेष संस्मरण  

नोबेल शांति पुरुष्कार से सम्मानित श्री कैलाश सत्यार्थी प्रसिद्धि के शिखर पर पहुँचकर भी अपने पुराने साथियों को नहीं भूले हैं। वे अपनी व्यस्तता के बावजूद हमेशा उनके सुख-दुख में सम्मलित होते रहते हैं, चाहे कोई शादी समारोह हो या किसी के घर में कोई दुखद घड़ी हो, वे अवश्य ही वहां जाते हैं। पिछले दिनों एक घटना का मैं चश्मदीद गवाह बना। सत्यार्थी जी के संगठन बचपन बचाओ आंदोलन के कोषाध्यक्ष लक्ष्मण मास्टर जी के बेटे राजकुमार की शादी थी। सत्यार्थी जी उन्हीं लक्षण मास्टर जी के बेटे की शादी में शामिल होने, अपने व्यस्तम समय में से कुछ समय निकाल कर दिल्ली से 550 किलोमीटर दूर मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले के गाँव बोदी (हरपालपुर) में अपने सहयोगियों के साथ पधारे थे। मैं भी इस शादी में निमंत्रित था इसलिए सौभाग्यबस मुझे सत्यार्थी जी का साथ मिल गया। पूरा विवरण इस प्रकार है-

कौन हैं लक्ष्मण मास्टर जीलक्ष्मण मास्टर एक पूर्व बाल बंधुआ मजदूर हैं जिनको श्री कैलाश सत्यार्थी ने फरीदाबाद की पत्थर की खदानों से मुक्त करवाया था। लक्ष्मण मास्टर शुरू से ही कुशाग्र बुद्धि के स्वामी रहे हैं। घर की माली हालत ठीक न होने तथा अशिक्षा आदि कारणों से, उनको बाल मजदूरी के दलदल में धकेल दिया गया था। 80 के दसक में जब सत्यार्थी जी ने अपने साथियों के साथ बाल मजदूरों की मुक्ति का अभियान छेड़े हुये थे तो हजारों बंधुआ मजदूरों के साथ लक्ष्मण मास्टर भी मुक्त होकर अपने घर चले गए! वे सत्यार्थी जी के विचारों से बहुत प्रभावित हुये! इसलिए घर से वापस आ गए और लग गए सत्यार्थी जी के मिशन में! लक्ष्मण जी थोड़े से पढे लिखे पहले से ही थे और कुछ उन्होने बाद में प्राइवेट पढ़ाई भी कर ली इसीलिए सत्यार्थी जी ने उनकी प्रतिभा को देखकर फरीदाबाद की पत्थर खदानों के मजदूरों के बच्चों को पढ़ाने के काम में लगा दिया था। बाद में लक्ष्मण जी ने अपनी लगन, ईमानदारी और मेहनत से सत्यार्थी जी के संगठन में एक सम्मानजनक स्थान प्राप्त कर लिया। संगठन के चुनावों में, सत्यार्थी जी की प्रेरणा से वे कोशाध्यक्ष पद के लिए खड़े हुये! लक्ष्मण जी ने इस पद पर निर्विरोध जीत हासिल की। उन्होने सफलतापूर्वक संगठन के इस महत्वपूर्ण पद को सम्हाला। लक्ष्मण जी की कुशल कार्यशैली, स्पस्टवादिता और मीठे व्यवहार के कारण कई सालों से लगातार इस पद पर उनका निर्वाचन हो रहा है। गौरतलब है कि आज सत्यार्थी जी के संगठन में लगभग 400 सहयोगी कार्यरत हैं जिनमें कई चार्टर्ड अकाउंटेंट, पूर्व आईएएस और आईपीएस भी शामिल हैं। सभी की सेलरी लक्ष्मण मास्टर जी के सिग्नेचर से ही निर्गत होती है।

शादी के माहौल में रच-बस गए सत्यार्थी– सत्यार्थी जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं। वे माहौल के अनुसार अपने आप को ढाल लेते हैं। लक्ष्मण मास्टर जी के बेटे की बारात में सत्यार्थी जी उस ठेठ देहाती माहौल में रच-बस गये। उनके चहरे पर खुशी साफ झलक रही थी। वे बारात की हर रस्म में रुचि ले रहे थे। गाँव के देहाती लोग अपने बीच में नोबेल शांति पुरुष्कार विजेता को पाकर खुशी से पागल हुये जा रहे थे। दोनों ही तरफ के लोग, क्या बाराती, क्या घराती दूल्हा- दुल्हन को छोडकर सत्यार्थी जी के साथ अपनी फोटो खिचवाने के लिए बेताब हो रहे थे। सत्यार्थी जी सादगी व विनम्रता के साथ सभी के साथ फोटो खिचवाने में व्यस्त थे। सत्यार्थी जी डॉक्टर की सलाह के कारण बिना मिर्च-मसाला का चिकनाई रहित भोजन करते हैं लेकिन बरातियों और घरातियों के आग्रह पर उन्होने मिर्च-मसालेदार स्पाइसी खाना खाया। ये सत्यार्थी जी की अपने प्रशंसकों के प्रति आस्था और प्रेम ही है जिस कारण वे उनके इस अनुरोध को ठुकरा नहीं सके!

ओरछा के नजदीक चन्द्र शेखर आज़ाद की कुटिया में सत्यार्थी दंपति। फोटो साभार; अरविंद कुमार कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फ़ाउंडेशन

सत्यार्थी जी औरछा के करीब स्थित शहीद चन्द्रशेखर आज़ाद की कुटिया में जाना नहीं भूलेजब सत्यार्थी जी लक्ष्मण मास्टर जी के बेटे की शादी समारोह में शामिल होने गए तो वे इस अवसर पर ओरछा के ऐतिहासिक स्थलों को भी देखा क्योंकि यहां से ओरछा बहुत नजदीक है। ओरछा में किसी ने उनको बताया कि यहां से छ किलोमीटर की दूरी पर एक स्थान है। अंग्रेजों से बचने के लिए अमर शहीद चन्द्रशेखर आज़ाद इस स्थान पर डेढ़ बर्ष तक साधु के भेष में रहे थे। उन्होने वहां पर एक छोटा सा मंदिर, एक कुटिया, एक कुआं तथा एक सुरंग अपने हाथों से बनाई थीं। सुरंग के अलावा सभी समरकों की हालत ठीक है। जब चन्द्रशेखर आज़ाद को भेद खुलने की आशंका हुई तो उन्होने वह स्थान छोड़ दिया था। जब सत्यार्थी जी ने इस स्थान के बारे में सुना तो वह वे सपत्नीक उस स्थान को रवाना हो लिए! गौरतलब है सत्यार्थी जी एक पक्के राष्ट्रवादी व्यक्ति हैं और आज़ादी के रणबांकुरों के प्रति उनकी गहरी आस्था है। सत्यार्थी जी व उनकी धर्मपत्नि घंटों उस कुटिया में बैठकर क्रांतिकारियों के बलिदान को याद करते रहे।

हरदौल की समाधि पर पहुँचकर मंत्र मुग्ध हुये सत्यार्थी– हरदौल का नाम बुंदेलखंड में बहुत आदर के साथ लिया जाता है। वे लोक देवता के रूप में पूरे बुंदेलखंड में पूजे जाते हैं। वे उस क्षेत्र की सांस्कृतिक धरोहर हैं। जब भी बुंदेलखंड में किसी की शादी होतीं है तो पहला निमंत्रण-पत्र हरदौल की समाधि स्थल पर ही पहुंचाया जाता है। जिस कन्या की शादी होती है वह कामना करती है कि हरदौल आकर उसकी लाज को बचाएगा और उसका भात भरेगा। शादी-व्याह में हरदौल की लीला के गीत गाये जाते हैं। जो इस प्रकार है-

अइयो-अइयो रे हजारी हरदौल,

तुम्हारे बल पै व्याह रचौ।

ओरछा में लोकदेवता हरदौल की समाधि पर मंत्र-मुग्ध अवस्था में सत्यार्थी जी । फोटो साभार; अरविंद कुमार कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फ़ाउंडेशन

शादी के बाद नव-विवाहिता जोड़े हरदौल की समाधि पर आते हैं और नतमस्तक होकर उनकी पूजा-अर्चना करते हैं। किवदंती के अनुसार हरदौल के भाई जुझार सिंह ओरछा के राजा थे। जुझारसिंह के छोटे भाई का नाम हरदौल था। जुझार सिंह की रानी ने बालक हरदौल का पालन पोषण बहुत लाड़-प्यार से किया था। वह हरदौल को पुत्रवत मानती थी और हरदौल भी मां की तरह अपनी भाभी का आदर करते थे। देवर-भाभी के प्यार को देखकर लोगों ने अफवाह फैला दी कि हरदौल और रानी के बीच में अवैद्य संबंध हैं। इस संबंध में राजा के नजदीकी रहे कुछ स्वार्थी लोगों ने राजा के कान भरे!  राजा लोगों की बातों में आ गया और हरदौल को अपनी ही रानी के हाथों ज़हरीली खीर खिलवाकर मरवा दिया हालांकि रानी हरदौल को जहर नहीं देना चाहती थी। जन-मानस में विश्वास है कि हरदौल ने मरोपरांत अपनी बहन कुंजावती का भात भरा था। सत्यार्थी जी ने लगभग एक घंटा हरदौल की समाधि पर बिताया। समाधि पर कुछ साधु-सन्यासी लोक संगीत की धुन बजा रहे थे। सत्यार्थी जी उनके पास बैठकर संगीत तन्मयता से संगीत सुनने लगे और मंत्र-मुग्ध हो गए। सत्यार्थी जी ने वाद्य-यंत्र साधुओं से ले लिए और उन वाद्य यंत्रों से खुद धुन निकालने लगे। वे संगीत की गहराइयों में डूब गए। सत्यार्थी जी के व्यक्तित्व का एक दूसरा पहलू भी है, कि उनकी इतिहास में गहरी रुचि है। उन्होने ओरछा के ऐतिहासिक भवनों को बारीकी से देखा और उनके  बारे में गाइड से विस्तारपूर्वक जानकारी हासिल की।

उपरोक्त तमाम तथ्यों से पता चलता है कि सत्यार्थी जी के व्यक्तित्व में बाल मजदूरी को जड़ से उखाड़ फेंकने जज़्वा तो कूट-कूट कर भरा है ही लेकिन उनके व्यक्तित्व के अन्य पहलू भी हैं जिनसे खास-ओ-आम शायद परिचित नहीं है।

(लेखक; प्रोग्रेसिव डेमोक्रेटिक पार्टी के अध्यक्ष हैं)    

Exit mobile version