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सचिन और मेसी का है एक सरीखा सफर।

1983 के बाद भारत का क्रिकेट विश्व कप ट्राफी के लिए तरस रहा था ।इसके कुछ सालों बाद एक लड़का जो बाद में विश्व क्रिकेट का सरताज बना भारतीय टीम का हिस्सा बना ,नाम था सचिन तेंदुलकर।सचिन धीरे-धीरे साधारण पुरुष से भगवान के दर्जे तक पहुंच गए।सालों तक वे भारतीय क्रिकेट को अपने कंधों पर ढोते रहे।सचिन के पास सबकुछ था सोहरत थी,नाम था, आईसीसी रैंकिंग की टॉप पोजिशन भी रही लेकिन एक विश्वकप ट्राफी का अभाव सालों तो उनकी संपूर्णता में कमी बना रहा।
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डियोग माराडोना के बाद अर्जेंटीना नें लियोनल मेसी को अपना सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी एक स्वर में स्वीकारा।यह बात पूरी दुनिया नें भी मानी।मेसी का खेल देखने वाले बखूबी जानते हैं की वे पैरों के कितने बड़े जादूगर हैं।सचिन की तरह उनके पास भी खेलने की अद्भुत प्रतिभा है।लेकिन सचिन की ही तरह उनके कैरियर में भी कोई बड़ी इंटरनेशनल ट्राफी नहीं थी।
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आप कभी भी किसी खिलाड़ी की प्रतिभा को इस आधार पर नहीं आंक सकते की टीम गेम मसलन क्रिकेट, फुटबॉल आदि में कोई कितने मैच जीता और कितने हारा।सचिन और मेसी दोनों ही अपने-अपने क्षेत्र में निर्विवाद रूप से बड़े खिलाड़ी है दोनों नें अपनी-अपनी टीमों के लिए बड़े-बड़े कारनामे किये हैं।ऐसे में एक ट्राफी के अभाव में इनकी प्रतिभा को नकारा नहीं जा सकता था।हाँ एक टीस जरूर रह जाती।
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लेकिन लगन,मेहनत और धैर्य कभी बेकार नहीं जाती।अपने कैरियर के आखिरी दिनों में विश्वकप ट्राफी (2011)सचिन के हाथों में थी।उनके टीम मेट्स और भावुकता में बहते आंसू ट्राफी के महत्व को इंगित कर रहे थे।

मेसी के लिए भी आज एक बड़ा दिन था।अर्जेंटीना नें कोपा अमेरिका इंटरनेशनल ट्राफी जीत ली थी ।ट्राफी जीतने के बाद मेसी के इर्द गिर्द भी वही दृश्य था जो विश्वकप जीतने के बाद सचिन के इर्द गिर्द था।दोनों एक अजेय योद्धा की तरह आखिरी किले को फतह करने का जश्न मना रहे थे।
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इन ट्राफियों के अभाव में इतिहास कह सकता था सचिन और मेसी महान कैसे थे ?क्योंकि इतिहास और दुनिया परिणाम देखती है कोशिसे नहीं। लेकिन मेहनत,लगन,जज्बे और समय नें इस छोटे अवसर को बनने से रोक लिया।दोनों अपने-अपने क्षेत्र के कोहिनूर बनकर निकले…

 

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