अस्सी के दशक में चंबल के बीहड़ों में ‘बैंडिट क्वीन’ के नाम से मशहूर हुई फूलन देवी की मौत को आज 25 साल पूरे हो चुके हैं। 40 साल पहले बेहमई गाँव में, उन्होने 22 लोगों को लाइन में खड़ा करके गोली मार दी थी। ऐसा उन्होंने अपना बदला लेने के लिए किया था। दरअसल, ये सभी लोग ठाकुरों की उस गैंग का हिस्सा थे, जिसने फूलन का अपहरण कर बेहमई में उसके साथ 3 हफ्ते तक सामूहिक बलात्कार किया था।
फूलन देवी का जन्म उत्तर प्रदेश के जालौन के पास बने एक गाँव पूरवा में 10 अगस्त 1963 में हुआ था। 11 साल की उम्र में फूलन देवी के चाचा मायादीन ने उनकी शादी बूढ़े आदमी पुट्टी लाल से करवा दी थी। फूलन इस शादी के खिलाफ थी और उन्होने आखिर में अपने पति को छोड़ दिया था। वह अपने पिता के घर आकर रहने लगीं, लेकिन इस दौरान ही उनके साथ छेड़छाड़ और उन्हें परेशान करने की घटनाएं सामने आने लगीं। फूलन का 15 साल की उम्र में गाँव में रहने वाले ठाकुरों ने उनके साथ गैंगरेप किया था।
वह न्याय के लिए दर-बदर भटकती रहीं, लेकिन उन्हें कहीं से भी न्याय नहीं मिला। ऐसे में उन्होंने डाकुओं की गैंग में शामिल होना बेहतर समझा और बदला लेने के लिए हथियार उठा लिए। इस दौरान फूलन की मुलाकात विक्रम मल्लाह से हुई, जिसके बाद दोनों ने मिलकर डाकूओं का एक अलग गैंग बनाया। अपने गैंग के ज़रिये 1981 में फूलन देवी ने बेहमई गाँव को 14 फरवरी को घेर लिया और 22 ठाकुरों को एक लाइन में खड़ा करके गोलियों से छलनी कर दिया।
इस हत्याकांड से पूरे इलाके में फूलन देवी का खौफ फैल गया। फूलन देवी पर लिखी गई किताब फूलदेवी के मुताबिक फूलनदेवी को नग्न अवस्था में 2 सप्ताह से अधिक समय तक एक कोठरी में बंद रखा गया था। जहां हर रोज़ उसके साथ गैंगरेप किया जाता था। इस हत्याकांड के बाद उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश पुलिस ने फूलन देवी को पकड़ने की बहुत कोशिश की, लेकिन दोनों राज्यों की पुलिस फूलन को पकड़ने में नाकाम रहीं।
आखिर में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1983 में फूलन देवी से सरेंडर करने को कहा जिस पर वह सशर्त राजी हुईं कि उन्हें या उसके सभी साथियों को मृत्युदंड नहीं देने, उसके गैंग के सभी लोगों को 8 साल से अधिक की सजा ना देने जैसी शर्तों के साथ शामिल थीं। उन शर्तों को इंदिरा सरकार ने मान लिया था, लेकिन फूलन देवी को 11 साल तक बिना मुकदमे के जेल में रहना पड़ा। हालांकि, बाद में मुलायम सिंह की सरकार ने 1993 में उन पर लगे सारे आरोप वापस लेने का फैसला किया और वह 1994 में जेल से बाहर आ गईं।
इसके बाद उनकी समाजवादी पार्टी से राजनीति में एंट्री हुई और वो मिर्जापुर सीट से जीतकर सांसद बनीं लेकिन साल 2001 में खुद को राजपूत गौरव के लिए लड़ने वाला योद्धा बताने वाले शेर सिंह राणा ने दिल्ली में फूलन देवी के आवास पर उनकी हत्या कर दी। फूलन देवी के जीवन पर बॉलीबुड फिल्म ‘बैंडिट क्वीन’ भी बन चुकी है, जिसे बॉलीवुड के मशहूर डायरेक्टर शेखर कपूर ने डायरेक्ट किया था, लेकिन बाद में सरकार ने इस फिल्म पर बैन लगा दिया था।