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स्व सहायता समूहों से महिलाएं आत्मनिर्भर बनने के साथ कुपोषण को भी मात दे रही हैं

महिलाओं के स्व सहायता समूहों से महिलाएं आत्मनिर्भर बनने के साथ कुपोषण को भी मात दे रही हैं

देश में महिलाओं के उत्थान व सशक्तिकरण के लिए शिक्षा से बेहतर विकल्प क्या हो सकता है। शिक्षा जीवन में प्रगति का एक शक्तिशाली माध्यम है, लेकिन ग्रामीण भारत में ज़्यादातर महिलाएं शिक्षा से वंचित हैं। जो स्कूल जा सकीं, उनमें से बहुत कम महिलाओं ने ही उच्च शिक्षा तक का सफर तय किया है।

ऐसे में क्या ग्रामीण महिलाएं सामाजिक व आर्थिक रूप से सशक्त एवं समृद्ध बन सकती हैं? इस सवाल का बखूबी जवाब छत्तीसगढ़ के राजनांदगाँव ज़िला स्थित खुटेरी गाँव की 14 बहुएं दे रही हैं। महज़ प्राथमिक और माध्यमिक तक की शिक्षा प्राप्त की हुई इन ग्रामीण महिलाओं ने सफलता के लिए शिक्षा के निश्चित बेरियर को तोड़ते हुए स्वयं की इच्छा शक्ति और मेहनत के बल पर आज दूसरों के लिए प्रेरणास्रोत बनी हैं।

कुपोषण मुक्ति और जन जागरूकता के कार्यों में महिलाओं के सामूहिक कार्य-कौशल को देख भारत सरकार ने भी इन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया है।

जय माँ दुर्गा स्व सहायता समूह महिलाओं को आत्मनिर्भर बना रहा है  

राजनांदगाँव ज़िला मुख्यालय से 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित लगभग दो हज़ार की आबादी वाला गाँव खुटेरी है। जहां 2013 में ‘जय माँ दुर्गा स्व-सहायता समूह’ का गठन हुआ था। प्रारंभ में समूह की महिलाएं बचत के लिए सामूहिक रूप से पैसे जमा करने का ही कार्य किया करती थीं, लेकिन 2015 में ज़िला प्रशासन के द्वारा कुपोषित बच्चों तथा गर्भवती महिलाओं को पौष्टिक आहार उपलब्ध कराने के लिए रेडी-टू-ईट बनाने का कार्य सौंपा गया।

इस समूह की सभी 14 महिलाओं ने इसे अपनी सामाजिक ज़िम्मेदारी समझते हुए इसे एक चुनौती के रूप में लिया तब से लेकर अब तक जय मां दुर्गा स्व-सहायता समूह बड़ी मात्रा में पौष्टिक आहार बनाकर आसपास के 22 आंगनबाड़ी केन्द्रों में सप्लाई कर रहा है।

इस समूह के द्वारा प्रति माह लगभग 35 क्विंटल रेडी-टू-ईट का निर्माण किया जाता है, जिसमें प्रति किलो 42 रुपये की दर से 35 क्विंटल के निर्माण पर लगभग 1 लाख 47 हज़ार रुपये की लागत आती है। सप्लाई के एवज में 50 रुपये प्रति किलो की दर से 1 लाख 75 हज़ार रुपये का भुगतान प्राप्त होता है।

पूरे गाँव को कुपोषण मुक्त करने का जिम्मा उठाया 

इस प्रकार लागत घटाकर प्रतिमाह 28 से 30 हज़ार की शुद्ध आय प्राप्त हो जाती है। समूह की महिलाएं अपने इस कार्य से आत्मनिर्भर और सशक्त बनी हैं और अपने परिवार के भरण-पोषण, बच्चों की शिक्षा एवं अन्य कार्यों में भी अब आर्थिक सहयोग दे रही हैं। स्वयं में सशक्त बनने के बाद समूह की सभी 14 महिलाओं ने गाँव के 16 कुपोषित बच्चों को सुपोषित करने का जिम्मा भी उठाया है।

इस दौरान साल भर तक बच्चों को खिचड़ी, फल, दूध, मुर्रा लड्डू, चना एवं रेडी-टू-ईट से हलवा बनाकर खिलाया जाता है, जिसका परिणाम आज गाँव के सभी 16 बच्चे सुपोषित होकर अपनी ज़िन्दगी जी रहे हैं और गाँव में अब कोई भी बच्चा कुपोषित नहीं है।

गाँव में पीरियड्स के बारे में जागरूकता एवं स्वच्छता रखने के लिए रैलियां 

इसी तरह गाँव की किशोरी बालिकाओं को पीरियड्स के दौरान साफ-सफाई रखने तथा सैनेटरी नैपकिन का उपयोग करने हेतु भी समूह की महिलाओं ने अभियान चलाया, तो वहीं राजनांदगाँव परियोजना ग्रामीण-1 के 8 समूहों के साथ मिलकर नज़दीक के भर्रे गाँव में 8 जोड़ों का सामूहिक विवाह भी करवाया।

दूसरी ओर यह महिलाएं आंगनबाडियों में गर्भवतियों की गोद भराई एवं बच्चों के वजन त्यौहार में सक्रियता से भाग लेती हैं। गाँव को ओडीएफ बनाने की दिशा में भी इनकी महत्वपूर्ण भागीदारी रही है।

वह गाँव में स्वच्छता, डबरी निर्माण एवं अन्य क्षेत्रों में कार्य कर रही हैं। स्वच्छ ग्राम बनाने के लिए स्वच्छता रैली भी समूह की महिलाओं द्वारा निकाली जाती है। इस प्रकार केवल एक समूह के ज़रिये खुटेरी गाँव की 14 बहुएं उस मिथक को तोड़ रही हैं, जहां ग्रामीण क्षेत्रों में प्राथमिक और माध्यमिक तक शिक्षित लड़कियां घर-परिवार चलाने को ही अपनी नियति समझती थीं।

जय माँ दुर्गा स्व-सहायता समूह की अध्यक्षा उमा साहू के अनुभव

इस संबंध में ‘जय माँ दुर्गा स्व-सहायता समूह’ की अध्यक्षा उमा साहू ने बताया कि हमारे समूह में कुल 14 महिलाएं हैं। हम हर माह 7 से 10 दिन में रेडी-टू-ईट बनाने का पूरा कार्य कर लेते हैं। उसके बाद बचे हुए दिनों में घर की खेती किसानी में लग जाते हैं। इस प्रकार रेडी-टू-ईट से हमारी 2000 से 2500 तक अतिरिक्त आय हो रही है और परिवार की आर्थिक समस्या भी दूर हो गई है।

समूह में इकलौती बारहवीं तक शिक्षित लोकेश्वरी साहू का कहना है कि शुरुआत में रेडी-टू-ईट बनाने में बहुत परेशानी होती थी। सबसे ज़्यादा दिक्कत पैसों की हो रही थी, लेकिन जब से बैंक के माध्यम से लोन मिला है तो हमारा कार्य आसान हो गया है। उन्होंने बताया कि हमारे कार्यों को देखकर पंचायत के द्वारा हमें एक भवन बनाकर दिया गया है, जहां से हम अपना सभी कार्य करते हैं।

इसी तरह समूह की अन्य सदस्य चंद्रिका साहू, ईश्वरी साहू, सुमन साहू और अनीता साहू रेडी-टू-ईट बनाने की प्रक्रिया पर बात करते हुए कहती हैं कि निर्माण में लगने वाले सभी सामग्री जैसे चना, सोयाबीन, तेल, रागी, दाल, मूंगफली को एक निश्चित अनुपात में मिक्स किया जाता है, जिसके बाद उनकी भुनाई करके पिसाई की जाती है और अंत में अलग-अलग मात्रानुसार पैकिंग की जाती है।

उन्होंने बताया कि तैयार रेडी-टू-ईट की गुणवत्ता जांच सुपरवाइज़र के द्वारा हर बार की जाती है, साथ ही हम सभी निर्माण में साफ-सफाई का भी विशेष ध्यान रखते हैं। इस प्रकार ग्रामीण क्षेत्र की यह महिलाएं अपनी जागरूकता एवं सक्रियता के चलते ना केवल स्वयं में, बल्कि समाज में भी परिवर्तन ला रही हैं।

जय माँ दुर्गा स्व-सहायता समूह का अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर हुआ सम्मान 

इसके चलते ही पिछले दिनों अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर केंद्रीय ग्रामीण विकास राज्यमंत्री साध्वी निरंजन ज्योति ने वर्चुअल माध्यम से दीनदयाल अन्त्योदय योजना के अंतर्गत राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन, ग्रामीण आजीविका संभाग एमओआरडी द्वारा विज्ञान भवन, नई दिल्ली में आयोजित राष्ट्रीय सम्मान समारोह में बेहतरीन कार्य करने के लिए खुटेरी गाँव के इस ‘जय माँ दुर्गा महिला स्वसहायता समूह’ को सम्मानित किया है।

राष्ट्रीय स्तर पर अपने कार्यों के लिए सम्मानित होकर समूह की सभी सदस्या प्रसन्न हैं। वह कहती हैं कि इस सम्मान से हमें एक नई ऊर्जा मिली है। हम और बेहतर तरीके से अपने कार्य को संचालित करेंगे। राजनांदगाँव ज़िले की महिला स्व-सहायता समूहों की सफलता पर ज़िला पंचायत सीईओ अजीत वसंत कहते हैं कि ज़िले में स्व-सहायता समूहों की सहभागिता से गाँव-गाँव की तस्वीर बदल रही है।

गाँव में महिलाएं जब जागरूक एवं आत्मनिर्भर होती हैं, तो इसके परिणामस्वरूप ग्रामीण परिवेश में बदलाव आता है। उन्होंने ग्रामीण महिलाओं के कार्यों पर खुशी व्यक्त करते हुए कहा कि आगे भी वह इसी प्रकार सक्रियता पूर्वक कार्य करती रहें और सफलता प्राप्त करें।

जय माँ दुर्गा स्व-सहायता समूह से प्रेरित होकर गाँवों में बढ़ रहे हैं स्व सहायता समूह  

राजनांदगाँव ज़िले में बिहान योजना के तहत स्व-सहायता समूहों के गठन का कार्य वर्ष 2012-13 से शुरू हुआ था, तब से लेकर आज तक हर वर्ष ग्रामीण क्षेत्र की महिलाएं अपने सर्वांगीण विकास के लिए निरंतर संगठित होती जा रही हैं। हर वर्ष ज़िला स्तर पर हो रहे नए समूहों के गठन संख्या पर नज़र डालें, तो 2012-13 और 2013-14 में कुल 1441 समूह, 2014-15 में 989, 2015-16 में 1535, 2016-17 में 4501, 2017-18 में 4949, 2018-19 में 3108, 2019-20 में 1121, 2020-21 में 125 तथा 2021-22 में अब तब केवल 02 नए समूहों का गठन हुआ है।

इस प्रकार वर्तमान में ज़िले में कुल 17 हज़ार 771 महिला स्व-सहायता समूह हैं, जिनमें कार्य कर रहीं कुल महिलाओं की संख्या 1 लाख 95 हज़ार 375 है। इस प्रकार योजना का उद्देश्य ग्रामीण निर्धन परिवारों की महिलाओं को स्व-सहायता समूह के रूप में संगठित करके सहयोगात्मक मार्गदर्शन करना तथा समूह सदस्यों को रूचि अनुसार कौशल आधारित आजीविका के अवसर उपलब्ध कराना है, ताकि मज़बूत बुनियादी संस्थाओं के माध्यम से निर्धन परिवारों की आजीविका को स्थाई आधार पर बेहतर बनाया जा सके।

बहरहाल, ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा की कमी के कारण महिलाएं आगे नहीं आ पाती हैं, इसलिए उन लोगों में जागरूकता लाना बेहद ज़रूरी है, जब तक महिलाएं सशक्त नहीं होगी तब तक हमारा समाज समृद्ध नहीं होगा। समृद्ध समाज से ही विकसित भारत का निर्माण संभव है। इसलिए हमें अधिक-से-अधिक महिलाओं को सशक्त करने की ज़रूरत है।

छत्तीसगढ़ के राजनांदगाँव ज़िले के खुटेरी गाँव जैसे कई ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाएं स्व-सहायता समूहों से जुड़कर आज सम्मानपूर्वक जीवन-यापन कर रही हैं। उनके द्वारा ना सिर्फ आर्थिक बदलाव लाया जा रहा है बल्कि उनका सामाजिक सशक्तिकरण भी हो रहा है।

नोट – यह आलेख रायपुर, छत्तीसगढ़ से सूर्यकांत देवांगन ने संजॉय घोष मीडिया अवार्ड 2020 के अंतर्गत चरखा फीचर के लिए लिखा है। 

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