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“वर्तमान में मीडिया का बदलता स्वरूप एवं संकुचित होती प्रेस की स्वतंत्रता”

"वर्तमान में मीडिया का बदलता स्वरूप एवं संकुचित होती प्रेस की स्वतंत्रता"

हमारा देश भारत, विश्व में कई मायनों में लोकतंत्र का सबसे मज़बूत उदाहरण माना जाता है। यहां जितनी सामाजिक व आर्थिक स्वतंत्रता है, उतनी स्वतंत्रता हमें किसी और मुल्क में देखने को नहीं मिलती है। लोकतंत्र को संभालने के लिए मुख्यतः चार स्तम्भ हैं न्यायपालिका, कार्यपालिका, विधायिका और मीडिया। मीडिया देश के आम जनमानस को बाकी तीन स्तम्भों की हकीकत से रूबरू कराती है।

मीडिया का काम यह होता है कि अगर कोई भी घटना हो तो उस पर अपनी बेबाक एवं निष्पक्ष राय रखे और सरकार से सम्बन्धित सारी-की-सारी सूचनाओं को लोगों तक पहुंचाए ,ताकि उसके बाद लोग खुद तय करें कि क्या सही है और क्या गलत? अत: मीडिया अगर अपनी सकारात्मक भूमिका अदा करे तो किसी भी व्यक्ति, संस्था, समूह और देश को आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनीतिक रूप से समृद्ध बनाया जा सकता है।

वर्तमान समय में भारत की मीडिया का स्वरूप 

वर्तमान समय में मीडिया की उपयोगिता, महत्त्व एवं भूमिका निरंतर बढ़ती जा रही है। कोई भी समाज, सरकार, वर्ग, संस्था, समूह व्यक्ति मीडिया की उपेक्षा कर आगे नहीं बढ़ सकता है। आज के जीवन में मीडिया, आम जनमानस के जीवन के लिए एक अपरिहार्य आवश्यकता है। अगर हम देखें कि समाज किसे कहते हैं? तो यह तथ्य सामने आता है कि लोगों की भीड़ को हम समाज नहीं कह सकते हैं। समाज का अर्थ होता है कि संबंधों का परस्पर ताना-बाना, जिसमें पढ़े-लिखे विवेकशील व्यक्ति वाले समुदायों का अस्तित्व होता है।

मीडिया के समाज पर पडने वाले प्रभाव पर गौर करने पर हमें यह स्पष्ट होता है कि मीडिया की समाज में शक्ति, महत्ता एवं उपयोगिकता में वृद्धि से इसके सकारात्मक प्रभावों में काफी अभिवृद्धि हुई है लेकिन साथ-साथ इसके नकारात्मक प्रभाव भी उभर कर सामने आए हैं जैसे पुलिस किसी मामले में शक के आधार पर किसी व्यक्ति को गिरफ्तार कर ले तो, आज की मीडिया, उस व्यक्ति को न्यायालय पहुंचने से पहले ही उसे बलात्कारी, आतंकी, देशद्रोही, हत्यारा घोषित कर देती है। यहां तक कि कुछ मीडिया चैनल तो न्यायालय से पहले ही अपना फैसला सुना देते हैं। यदि वह व्यक्ति न्यायालय में न्यायिक कार्यवाही में दोषी साबित नहीं होता है तो उसके बाद उस व्यक्ति की सामाजिक प्रतिष्ठा को क्षति पहुंचाने के लिए उससे माफी भी नहीं मांगते हैं।

जनता के दिलो-दिमाग में ज़हर घोलती आज की मीडिया 

आज सरकार की छत्रछाया में मीडिया इस तरह से कार्य कर रही है कि लोग इसे गोदी मीडिया, बिकाऊ मीडिया और ना जाने ऐसे कितने नामों से इसे पुकारते हैं। आज इनका सबसे महत्वपूर्ण काम रह गया है कि खबरों को अपने अनुसार बता कर लोगों के मन मे ज़हर भरना और न्यूज़ के नाम पर किसी धर्म से जुड़े टॉपिक पर 4 लोगों को बैठा कर बहस करवाना, कुछ ना मिले तो पाकिस्तान और चाइना को गाली देना।

आज देश की मीडिया बेरोजगारी, एजुकेशन, इकोनॉमिक्स, नेशनल सिक्योरिटीज़ जैसे मुद्दों पर नाम मात्र के लिए भी अपना मुंह नहीं खोलती है। आज ज़्यादातर न्यूज़ चैनलों में सिर्फ नकारात्मकता की खबरें ही दिखाई जाती हैं। अगर एक शब्द में कहें तो TRP के पीछे पागल मीडिया TRP के लिए आज कुछ भी करने को तैयार है।

आपको बता दें कि कोबरा पोस्ट ने 36 न्यूज़ चैनलों पर एक स्टिंग ऑपेरशन किया था, जिसमें उन्होंने पैसे देकर भड़काऊ न्यूज़ चलाने को कहा और यह अचंभित करने वाली बात सामने आई कि इंडिया के सभी न्यूज़ चैनल इस कार्य को करने के लिए तैयार हो गए थे, जिसमें इंडिया टीवी, ज़ी न्यूज़, दैनिक भास्कर, अमर उजाला जैसे मीडिया हाउस भी शामिल थे।

सोचिए अगर आज जैसी मीडिया अंग्रेज़ों के ज़माने में होती तो देश का क्या होता? 

उस समय में अगर आज के दौर वाली मीडिया होती तो हम आज भी अंग्रेज़ों के गुलाम होते, क्योंकि कुछ लोग महज़ चंद पैसों के लिए अंग्रेज़ों के हाथ बिक जाते फिर देश के आम जनमानस को अंग्रेज़ों की गुलामी करने के फायदे समझा देते। 

देश को आज़ादी किसी एक जाति और धर्म के लोगों ने नहीं दिलाई बल्कि सबने मिलकर देश को अंगेज़ों की गुलामी से आज़ाद कराया है। आज जैसी मीडिया, अगर उस ज़माने में होती तो वर्तमान की तरह ही देश के आम जनमानस को आपस में जाति-धर्म के नाम पर सभी को लड़वा देती। इससे ना हम तब एकजुट होते और ना ही आज हमारा देश आज़ाद होता।

जरा सोचिए जिस इंडस्ट्री में 99% लोग सरकार के हाथों बिके हुए हैं, उसमें 1% लोग चाह कर भी क्या कर सकते हैं? वह कुछ करते भी हैं तो उन्हें करने कहां दिया जाता है। उन्हीं को सबकी नज़रों में गलत साबित कर दिया जाता है। उन्हें काम से निकाल दिया जाता है और सोशल साइट्स पर खुल्ल्मखुल्ला गाली दी जाती है।

आईटी सेल वालों से बोल कर उसे धमकी दिलवाई जाती है, फिर भी ना हो पाए तो मरवा दिया जाता है। यह बातें खुद रविश कुमार, सागरिका घोष जैसे कई पत्रकारों ने कही हैं। पत्रकारों को सरकार के पक्ष में ना बोलने के कारण उनका उत्पीड़न करने, जान से मारने और बलात्कार की धमकी दी गई। यही नहीं सितंबर 2018 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हिन्दुतान टाइम्स अखबार की मालिक शोभना भरतिया से मुलाकात के तुरंत बाद ही हिंदुस्तान टाइम्स के एडिटर बॉबी घोष ने इस्तीफा दे दिया था। 

 प्रेस की स्वतंत्रता सूची में हमारे देश का विश्व में स्थान  

रिपोटर्स विदआउट बॉडर्स नामक एक संस्था ने प्रेस की स्वतंत्रता को लेकर अपनी एक वार्षिक रिपोर्ट जारी की है, जिसमें 180 देशों की लिस्ट में भारत 142वें स्थान पर है। वहीं नॉर्वे पहले स्थान पर है। आज अपनी खराब पत्रकारिता की वजह से इस लिस्ट में भारत लगातार पीछे की ओर टॉप पर बना है। आप आंकड़ों में भारत का स्थान खुद देख लीजिए।

1 . 2020 – 142 स्थान पर

2 . 2019- 140 स्थान पर

3 . 2018- 138 स्थान पर

4 . 2017- 136 स्थान पर

अब इससे आप सोच सकते हैं कि देश में किस तरह की पत्रकारिता हो रही है? यहां और देश के आम जनमानस को कितनी सही सूचनाएं मिलती हैं और यहां की प्रेस कितनी आज़ादी से अपना काम करती है।

क्या आपने कभी सोचा है, अगर आपको सूचना ही गलत मिले तो आपका फैसला सही कैसे होगा? आप जिस सूचना के आधार पर सही और गलत का आकलन कर रहे हैं, वह सूचना ही गलत हो तो आपका फैसला क्या होगा? आपका फैसला कभी सही नहीं हो सकता जैसे टीवी पर आपको किसी विशेष चीज़ के बारे में बार-बार बताया जा रहा है और आप उसे सुन रहे हैं। उस वक्त आपको लगता है, वो चीज़ सही है और आप उसको खरीद लेते हैं। उस वक्त आपका फैसला सही होता है लेकिन खरीदने के बाद आपको पता चलता है कि यह चीज़ अच्छी नहीं है।

वैसे, इस भागमभाग की ज़िन्दगी में इतना वक्त किसी के पास नहीं है कि वह न्यूज़ देखे और फिर रिसर्च करे कि क्या यह सूचना सही है या गलत? इसीलिए मीडिया को अपना काम सही तरीके से करना चाहिए और लोगों तक बिना किसी मिलावट के सही सूचनाओं का आदान-प्रदान करना चाहिए, क्योंकि अब हमें अपने अस्तित्व को बचाने के लिए मीडिया को सुधारने की ज़रूरत है।

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