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“दानिश सिद्दीकी की मौत पर सरकार की नफरती राजनीति लोकतंत्र के मूल्यों की हत्या है”

"दानिश सिद्दीकी की मौत पर सरकार की नफरती राजनीति लोकतंत्र के मूल्यों की हत्या है"

देश के जाने माने फोटो पत्रकार दानिश सिद्दीकी नहीं रहे। उनकी अफगानिस्तान में उस समय मृत्यु हुई, जब वह अफगानी सेना और तालिबानियों के बीच चल रहे युद्ध को कवर कर रहे थे। दानिश एक विख्यात पत्रकार थे, जिनके काम को पूरी दुनिया में लगातार सराहा गया है। उन्हें पुलित्जर सम्मान से भी सम्मानित किया गया था।

भारत में उनके द्वारा हिंदू कट्टरपंथी ‘राम भक्त गोपाल’ की दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के बाहर गोली चलाती हुई तस्वीर काफी चर्चा में रही। उन्होंने साल 2020 के दिल्ली दंगे, लॉकडाउन में मज़दूरों का पलायन और बांग्लादेश के रोहिंग्या समाज की समस्याओं को भी अपने कैमरे से दुनिया के समक्ष रखा था। भारत में कोरोना की दूसरी लहर में, जलती चिताओं का उनके द्वारा लिया गया ड्रोन शॉट भारत सरकार के कई झूठे दावों की सच्चाई पूरी दुनिया के सामने ले आया था।

दानिश की मौत ने भारत में बढ़ते कट्टरपंथ को एक बार फिर पूरी दुनिया के सामने उजागर कर दिया है। इस घटना के बाद भारत में बढ़ते फासीवाद, जिसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी चला रहे हैं, को दुनिया के सामने बेनकाब कर दिया है। जैसे ही दानिश सिद्दीकी की मौत की खबर मीडिया में आई, उसी समय संघ द्वारा चलाई जा रही ट्रोल आर्मी ने इंटरनेट पर खुशियां मनानी शुरू कर दीं। वह उस हत्या का जश्न मना रहे थे, जिसे कथित तौर पर एक इस्लामिक कट्टरपंथी संगठन ने अंजाम दिया था। 

 इस मौत को “कर्मा” का नाम दिया गया और इन अदृश्य ट्रोलर्स का कहना है कि दानिश ने अपने देश भारत की दुनिया के सामने बेइज्जती की थी। दानिश ने भारत सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विफलताओं और उनके झूठे वादों के सच को दुनिया के सामने रख दिया था। उन्होंने सरकार के दावों की पोल अपनी तस्वीरों से खोली थी।

जब सूचना और प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर (जो साल 2020 में अपने ‘गोली मारो गद्दारों को’ वाले बयान को लेकर काफी चर्चा में रहे थे) ने अपनी संवेदनाएं ट्विटर के माध्यम से जताई, तो इन ट्रोलर्स ने उन्हें भी नहीं बख्शा। हालांकि, मोदी सरकार ने आधिकारिक तौर पर सिद्दीकी की मौत पर अपना विरोध जताया है। भारत सरकार के विदेश सचिव हर्षवर्धन सिंगला ने इस मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा काउंसिल के सामने उठाया लेकिन संघ पोषित ट्रोल्स ने, जो उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले धार्मिक सौहार्द बिगाड़ने की कोशिश में लगे हुए हैं, दानिश को नीचा दिखाने और उनकी मौत का मज़ाक बनाने का कोई मौका नहीं छोड़ा।

इंटरनेट पर चलाए गए ट्रेंड्स द्वारा भाजपा और संघ के लोगों ने यह बात साबित कर दी है कि उन्हें तालिबान द्वारा इस पत्रकार की हत्या किया जाने से कोई एतराज नहीं है, क्योंकि उसने मोदी सरकार की खामियों को पूरी दुनिया के समक्ष उजागर किया था।

तालिबान और अन्य प्रतिक्रियावादी संगठनों के साथ आरएसएस की वैचारिक समरूपता उसके समर्थकों के साथ सिद्दीकी की हत्या के जश्न मनाने और इसे सही ठहराने के साथ उजागर होती है। इस घटना से यह भी देखने को मिलता है कि मुक्त पत्रकारिता खतरे में है, चाहे वह अफगानिस्तान हो या हिंदुस्तान। इसका प्रमुख कारण है सत्ताधीशों और उनके भक्तों द्वारा सरकार और अपने स्वामियों की कमियों, आलोचनाओं को दबाने की कोशिश करना।  

दानिश सिद्दीकी मर चुके हैं, उनके खिलाफ फैली नफरत अभी भी ज़िंदा है। सिद्दीकी लोकतंत्र की रक्षा के लिए निष्ठा से अपना काम करते हुए मरे, जो कि विश्व में हो रहीं विश्वव्यापी घटनाओं की ताज़ा तस्वीरें खींचना था। उन्हें उन तस्वीरों से याद किया जाएगा, जिसने दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की सत्ता में बैठे व्यक्ति के हर झूठ को पकड़ लिया था। 

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