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“आज के परिदृश्य में किसी की निजता में हस्तक्षेप करना कितना उचित-अनुचित है”

आज के परिदृश्य में किसी की निजता में हस्तक्षेप करना कितना उचित-अनुचित है

सोशल मीडिया पर इन दिनों आमिर खान और किरण राव के तलाक का मुद्दा चारों ओर काफी चर्चा का विषय बना है। कुछ लोग इसे तीन तलाक जैसे काले कानून की संज्ञा दे रहे हैं, तो कुछ इस मुद्दे को महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों की श्रेणी में रख रहे हैं। 

जो भी हो, परंतु आज के परिदृश्य को देखते हुए इसका एक सकारात्मक पहलू भी हो सकता है, क्योंकि ज़िंदगी में जब शादी की अहमियत है तो अलग हो जाने के रास्ते भी खुले होने चाहिए। एक-दूसरे के साथ ज़बरदस्ती के रिश्ते निभाए नहीं अपितु ढोये जाते हैं, लेकिन फिर भी शादी के बाद अलग होना उन महिलाओं का विशेषाधिकार होता है, जो प्रिवलेज्ड होती हैं। 

 एक साधारण महिला का सम्पूर्ण जीवन, शादी के बाद यदि उन पति-पत्नी के आपस में रिश्ते खराब हो रहे हैं तो उन्हें संवारने में ही निकल जाता है। इस देश में अकेली औरत का जीना किस कदर मुश्किल होता है, जिसका अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि किराये का घर मिलने में सिर्फ मुसलमानों को ही दिक्कत नहीं होती है बल्कि समाज में सर उठा कर आंख-में-आंख डालकर जीने वाली महिला को भी उतनी ही परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

इस देश में अकेली महिलाओं को हमेशा संदेह के घेरे में रखा जाता है। इससे बेहतर होता कि यदि हम इस बात पर चिंतन करते जिससे समाज में ऐसी महिलाओं के संघर्ष का रास्ता आसान किया जा सकता तो शायद बात अच्छी लगती। जब दो लोग प्रेम करते हैं, फिर विवाह, उसके उपरांत इस रिश्ते को एक अर्से बाद आपसी सहमति से समाप्त करने का फैसला लेते हैं। वो ऐसा करते हुए एक-दूसरे पर कोई आक्षेप नहीं लगाते बल्कि जीवन में और किस तरह से संग-साथ मुमकिन है, इसकी राह तलाशते हैं। 

उनके इस निर्णय से समाज के सोशल बुद्धिजीवी वर्ग को इतनी टीस क्यों? क्या आपसे पूछकर उन्हें शादी करनी चाहिए थी? आपकी इजाज़त से वे बच्चे जनते? आप नाराज़ ना हो जाएं इस डर से उन्हें जबरन साथ बने रहना चाहिए था?

इस आधुनिकतावादी समाज में विवाह करना, ना करना, उसे जारी रखना, ना रखना, बिन विवाह यानी लिव-इन में रहना, ना रहना, समलैंगिक रिश्ता रखना, ना रखना यह सब आपकी अदालत से बाहर की बात है। आप इस पर अपना कीमती समय बर्बाद ना करें। ऐसा करके आप केवल अपनी कुंठा को मज़बूत कर रहे हैं।

समाज के इस प्रकार के व्यवहार से वो महिलाएं जो उत्पीड़न का दम्भ झेल रही हैं, वो भी अलग होने का फैसला करने में संकोच करेंगी, क्योंकि उनको इस उत्पीड़न से अधिक पीड़ा समाज के सवालों से होगी, समाज में अपने अस्तित्व को तलाशने में होगी और समाज की नज़रों में खुद को सही साबित करने में होगी। 

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