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“21वीं सदी के परिप्रेक्ष्य में दलितों के मानवाधिकार एवं दमनकारी पुलिसिया क्रूरता”

21वी सदी के परिप्रेक्ष्य में में दलितों के मानवाधिकार एवं दमनकारी पुलिसिया क्रूरता

आज़मगढ़ के पलिया गाँव में दलित समाज के प्रधान मुन्ना पासवान पर पुलिसिया अत्याचार के खिलाफ हर ओर से विरोध की आवाज़ें उठने लगी हैं। खासतौर पर दलित समाज ने इस मामले को गंभीर बताते हुए इंसाफ की मांग शुरू कर दी है। सोशल मीडिया पर इस घटना की पुरजोर चर्चा है और इस मामले को एक संपन्न दलित का विरोधियों की आंखों में खटकने के मामले के रूप में देखा जा रहा है।

इस मामले में तमाम राजनीतिक दलों ने भी अपनी प्रतिक्रिया दी है। बीएसपी अध्यक्ष मायावती ने भी इस घटना के दोषियों पर कड़ी कार्रवाई करने की मांग की है। इस मुद्दे पर अपनी प्रतिक्रिया में उन्होंने पलिया गाँव में दलितों पर की गई पुलिसिया कार्रवाई को शर्मनाक बताया और इसके साथ ही इस मामले में उन्होंने सरकार से दोषी पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई करने और पीड़ितों को आर्थिक भरपाई करने की भी मांग की है लेकिन यहां सवाल यह है कि क्या मुन्ना पासवान के घर को इसलिए तोड़ा गया है, क्योंकि उसका रसूख और रहन-सहन कथित अगड़ों से आगे था? इस बात पर चारों ओर बहस छिड़ गई है।

हालांकि, सुश्री मायावती ने ट्वीट करते हुए कहा है कि पुलिस ने पलिया गाँव के पीड़ितों को इंसाफ देने की बजाय उनके साथ ज्यादती की और उन्हें आर्थिक नुकसान पहुंचाया। ये घटना बहुत ही निंदनीय है। एक अन्य ट्वीट में उन्होंने कहा कि घटना की गंभीरता को देखते हुए बीएसपी का एक प्रतिनिधिमंडल पीड़ितों से मिलने ज़ल्द ही पलिया गाँव जाएगा।

29 जून को आजमगढ़ ज़िले के पलिया गाँव में छेड़छाड़ की एक घटना की जांच करने दो पुलिस वाले आए। उन पर आरोप है कि उन्होंने वहां के ग्राम प्रधान को थप्पड़ मार दिया। इसके जवाब में प्रधान पक्ष से कुछ लोगों ने पुलिसकर्मियों से मारपीट की।

ग्रामीणों का आरोप है कि रात में दबिश देने आई पुलिस ने JCB से मुन्ना पासवान और पासी समाज के कुछ मकानों को बुरी तरह से तहस-नहस कर दिया और उनके जेवर और कीमती सामान लूट ले गए। पुलिस पर ग्रामीणों से लूटपाट और घर की महिलाओं के साथ बदतमीजी करने का आरोप है। इस मामले में 11 नामजद और 135 अज्ञात लोगों के खिलाफ केस दर्ज़ किया गया है।

इस मामले में कांग्रेस महासचिव और उत्तर प्रदेश की प्रभारी प्रियंका गांधी वाड्रा, भीम आर्मी के चंद्रशेखर आजाद के अलावा समाजवादी पार्टी भी इस मामले को लेकर आक्रामक है। यूपी में आगामी विधानसभा चुनावों को लेकर यह मुद्दा राजनीतिक दलों के लिए एक अच्छा मौका है लेकिन यहां सवाल यह है कि आखिर मुन्ना पासवान पुलिस-प्रशासन के निशाने पर क्यों आए? क्या इसलिए कि वह एक संपन्न दलित थे और इसकी वजह से गांव की अगड़ी जातियां उनसे जलती थीं?

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