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“जब मेरी माँ ने मुझे चीटियों के माध्यम से सिखाया कि अहिंसा ही हमारी संस्कृति है”

भारत क्या है? भारत गीता ज्ञान है, भारत जगद्गुरु है, भारत सोने की चिड़िया है, भारत तप है, भारत मान है, भारत स्वाभिमान है, भारत तपस्वियों का गुणगान है, भारत मीरा के पद है, भारत रसखान की साखी है, भारत कबीर के दोहे है, भारत युगों-युगों का वैभव है, भारत इंक़लाब है, भारत गंगा जमुनी तहज़ीब है, भारत गाँधी का दर्शन है, भारत नेता सुभाष की फौज है, भारत भगतसिंह का साहस है, भारत अब्दुल हमीद का सिरमौर है, भारत विक्रम बत्रा की ज़िद्द है, भारत दिव्यता का परिचायक है।

भारत अनुपम है, वह स्वरूप है जिसके कण-कण में करोड़ो लोग का विश्वास रहता है और सिर्फ रहता ही नहीं पलता भी है तथा भारत निर्माण में सहायक भी होता है।

शांति का संदेश देते लोग

हम अपनी अहिंसा की संस्कृति भूल रहे हैं

आज हम उन वैभवशाली इतिहास को खोने के कगार पर खड़े हैं। भारत उन ऋषियों, मनीषियों, सूफी संतों की धरती रही है, जहां व्यक्ति तो व्यक्ति पशुओं के साथ भी हिंसा की जाने की मनाही थी।

मैं छोटा था तब मेरी माँ अक्सर चींटियों को देखकर शक़्कर डाल दिया करती थी। मैं पूछता था माँ यह किसलिये? ये तो महज़ चीटियां हैं, इनका इतना आदर क्यों? इनको मार देना चाहिए क्योंकि ये हमको काट भी लेती हैं। तब माँ ने कहा था कि ये हमारे संस्कार व संस्कृति नहीं है कि हम किसी को मारें। मैं उस दिन समझ गया था। तब से आज तक जब भी मैं चींटियों को देखता हूं, तो शक्कर मैं भी डाल दिया करता हूं । माँ ने मुझे बचपन से ही अहिंसा का पाठ पढ़ाया है और उसको मैंने सदैव आत्मसात करने का प्रयास किया है ।

जब मैं बड़ा हुआ तब किताबो को पढ़ने की दिलचस्पी हुई। तब मैंने अपने घर के पास की लाइब्रेरी में महात्मा गाँधी के जीवन वृत्त पर लिखी सभी किताबों को पढ़ा था। उनका अहिंसा पर दिया गया दर्शन देश दुनिया के लिए आईना है। उनकी अहिंसा ने कभी कायर नहीं बनाया। उन्होंने यह सिखाया कि हर समस्या का हल हिंसा नहीं अहिंसा हैं।

सिटीज़नशिप कानून के खिलाफ असम में विरोध, फोटो साभार- सोशल मीडिया

अहिंसा कठिन विषय को आसान बना देती है

मीठी वाणी और हिंसा ना करना हर कठिन विषय को आसान बना देती है।

मैं जब दिल्ली मुखर्जी नगर में पढ़ाई किया करता था, तब मेरे गुरु मुझसे कहा करते थे कि गाँधी जी को समझने के लिए आत्मिक रूप से पवित्र होना ही पड़ेगा। गाँधी जी को पढ़ो और हिंसा का विचार मन मे रखो तो यह दोनों कार्य एक साथ नहीं किये जा सकते।

आज के महाविद्यालयीन विद्यार्थियों को देखता हूं कि उनके अंदर गाँधी दर्शन कोसों दूर है। जो भारत अहिंसा की धरती कहा जाता था, आज हिंसा की धरती होता जा रहा है। बात-बात पर आगजनी, दंगे, उपद्रव हमारी पहचान बनते जा रहे हैं।

गाँधी जी के अहिंसा के आह्वाहन रूपी कथन लोगों ने भुला दिए हैं। जिस देश मे दरवाज़े पर आए किसी फकीर या संत को खाली हाथ नहीं जाने दिया जाता था, आज वही देश हिंसा के मार्ग पर कदम ताल करता दिखाई पड़ रहा है। गंगा जमुनी तहज़ीब सिर्फ किताबो में ही रहकर दम तोड़ रही है।

धार्मिक उन्माद इस स्तर तक लोगों मे फैल चुके हैं कि वे किसी भी व्यक्ति को अपशब्द कहने में कोई संकोच नहीं करते। नेताओं की भाषा शैली का स्तर कितना गिरता जा रहा है, यह किसी से छिपा नहीं है। मंचों से गोली मारो जैसे वाक्यांश का उच्चारण कराया जाना, गाँधी के देश में स्वीकार योग्य नहीं है। ऐसे लोगों के प्रति कठोरतम कार्यवाही की जानी चाहिए।

मैंने सदैव व्यक्ति को महत्व दिया है। मैंने कभी जाति, धर्म, वर्ण,समुदाय के आधार पर मानवता को विभक्त नही किया है।

कुछ दिन पहले जब हमारे यहां के एक बड़े साहब रुपये के लेन देन में सामने आए थे, तब मैंने उनको आड़े हाथ लिया था। तब उन्होंने मुझे याद दिलाया था कि मैं ब्राह्मण हूँ।  मैंने जब उनको ईमानदारी का पाठ सिखलाया था और चेतावनी देते हुए कहा था कि आपकी शिकायत उच्च स्तरीय की जाएगी तब उन्होंने जातिगत कार्ड मेरी ओर खेला था। उन्होंने कहा कि आप भी ब्राह्मण और मैं भी ब्राह्मण, चलो बात को यही निपटा लेते हैं। मैंने कहा था भ्रष्टाचारी, बेईमान और हिंसक व्यक्ति की कोई जाति नहीं होती। ऐसे लोग समाज मे रहने के योग्य ही नहीं है ।

यदि हर व्यक्ति इसी रवैये को अख्तियार कर ले कि वह पहले भारत का नागरिक है; जाति , धर्म , सम्प्रदाय इंसानियत के आगे बौने हैं, तो हम कभी भी हिंसक नहीं हो सकते। अहिंसा का मार्ग अपनाए जाने से पूर्व व्यक्ति का मानसिक रूप से स्वस्थ होना बेहद आवश्यक है।

गाँधी

कल गाँधी जी की पुण्यतिथि थी। उस महान व्यक्ति की पुण्यतिथि, जिसने जीवन भर अहिंसा का पाठ सिखलाया और स्वयं हिंसा को झेल गए। क्या हम आज ऐसे महापुरुष को याद करते हुए यह सौगन्ध ले सकते हैं कि भारत अहिंसा की धरती है, हम इसे कभी हिंसक खूनी धब्बों से अपवित्र नहीं होने देंगे।

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