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कविता : असली खुशी है, प्रकृति की गोद में

कविता : असली खुशी है, प्रकृति की गोद में

यहां एक अलग दुनिया बसती है

कमाने की दौड़ में भागते हैं, सब वहां
एक पल यहां ठहर कर देखो
खुशी कितनी सस्ती है

शहर की रफ्तार, गाड़ियों की लम्बी कतार
मशीनों से निकलता ज़हरीला धुआं
चंद पल भी जीने का सुकून कहां है, वहां
अथाह शांत इस घाटी में
ये नन्ही सी चहकती चिड़िया
हवा से खेलती रंगीन तितलियां
सुकून और बस सुकून है यहां

हां, एक अलग सी दुनिया बसती है
रुको एक पल, महसूस करो,
खुशी कितनी सस्ती है।
ये शांत समां, बादलो से भरा खुला आसमान
घूम के देखो चारों ओर
बस यहीं है सारा जहां
कहीं और जाने की ज़रूरत क्यों पड़ेगी?
जब ज़िंदगी इस एक ही जगह पर मिलेगी
पूछो, अपने मन से चाहता क्या है?
और बस इस चाहत की सुनो
बाकी दुनिया तो सब पर ही हंसती है
भूल जाओ उन्हें,
अपनी शर्तो पर जीकर देखो
खुशी कितनी सस्ती है।
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